बच्चों के एडमिशन का समय आ रहा है। इसलिए स्कूल पर बात करना बहुत जरूरी है। स्कूल की बिल्डिंग नही स्कूल मे प्रबंधन और लोक व्यवहार पर बात करना बहुत जरूरी है।
एक स्कूल के कुछ बच्चे धार्मिक भाव के हैं। उन्होंने मुहल्ले मे हर साल की तरह हनुमान मंदिर मे भंडारे का आयोजन किया। जिसमे मोहल्ले मे रहने वाले सम्मिलित हुए और बच्चों की पहुंच इतनी थी कि सांसद महोदय भी पहुंच गए।
उत्साहित बच्चों ने सोशल मीडिया पर तस्वीर डाली और उन तस्वीर पर उनके स्कूल के प्रबंधक की नजर पड़ गई। उस प्रबंधक ने बच्चों की स्कूल मे क्लास ले ली।
प्रबंधक महोदय बच्चों को जमकर स्कूल मे डांटते हैं और कहते हैं कि ज्यादा राजनीति करनी हो तो मुझे बताओ , बड़े बड़े नेता मेरी जेब मे भरे रहते हैं। आगे बोलते हैं सारे नेता मेरी जेब मे भरे रहते हैं तो माता – पिता महसूस करें कि उनके बच्चों को स्कूल / कालेज मे कैसे सदमा पहुंचता है जो जीवन भर उनका पीछा शायद ही छोड़े।
इस तरह से बच्चों को प्रबंधक ने प्रताड़ित किया जबकि बच्चों के धार्मिक आयोजन की सराहना करनी चाहिए थी और उत्साहवर्धन के लिए भंडारे के खर्च मे योगदान करना चाहिए था।
इस तरह स्कूल मे बच्चों को कभी कोई शिक्षक प्रताड़ित करता है तो कभी प्रबंध समिति का मुखिया। अक्सर ऐसा होता है कि घर परिवार और समाज की अपनी कुंठा को एक शिक्षक बच्चों को प्रताड़ित कर निकाल रहा है।
इसलिए बहुत शानदार बिल्डिंग और जोरदार प्रचार के आकर्षण मे ना फंस कर अभिभावक वहाँ के शिक्षक का लोक व्यवहार पता करें और मीडिया इसमे सहयोग करे , प्रबंध समिति के संवेदनशील व्यवहार का पता लगाएं तब बच्चों का स्कूल मे एडमिशन कराएं और उस स्कूल मे अभिभावक समय-समय पर नजर रखें और कुछ भी गलत होने पर आवाज उठाएं।
चूंकि बच्चों के कोमल मन मे बचपन मे जो दाग लग जाता है वो जीवन भर नही जाता है।
Note : किस्सा स्कूल का इनपुट के आधार पर लिखा जा रहा है जो जन जागरूकता के लिए है , इसमे किसी एक स्कूल को ना टार्गेट किया गया है और ना ही ऐसा उद्देश्य है। शिक्षा व्यवस्था मे सुधार के लिए अगर आपके पास भी कोई किस्सा है तो हमे लिख भेजिए ताकि सरकार सुने और व्यवस्था मे सुधार हो।