एक ऐसा स्वप्न आया कि लिखने से भी डर लग रहा है , मुझे ! मैं विवाद से दूर रहना चाहता हूं किन्तु परमात्मा का संकेत बताना भी धर्म का कर्म है।
अचानक से भोर मे मेरी नींद खुलती है और पुनः वो स्वप्न मुझे झकझोर देता है कि अरे कंस्ट्रक्शन चालू लेकिन कहाँ और किसका ?
मैंने स्वप्न को याद किया तो रील बाई रील वो स्वप्न चलने लगा , एक बड़ी विशाल मूर्ति ब्लैक कवर से ढकी थी। और नींव भरी जा चुकी थी , पीछे एक कमरे का कंस्ट्रक्शन चल रहा था।
वहाँ सुन्दर कद – काठी का एक व्यक्ति बैठा हुआ था। जिनसे मैने पूछा कि ये किसकी मूर्ति है ? ये काहे का काम चल रहा है ? तो उन्होंने कहा कि ये चिरंजीवी भगवान परशुराम की मूर्ति है और ब्राह्मण धर्मशाला का काम चल रहा है !
ओह….. तो मैने कहा चलो बहुत अच्छा हुआ कि चित्रकूट धाम मे वर्षों का इंतजार खत्म हो रहा है अब ब्राह्मण धर्मशाला बनकर तैयार हो जाएगा और भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापना हो जाएगी , शीघ्र ही ब्राह्मणों सहित समस्त समाज को भंडारे की पूड़ी – साग का प्रसाद मिलेगा।
जैसे ही प्रसाद के नाम की लार जीभ मे टपकी वैसे ही नींद खुल गई तो मेरी आंखो के सामने सिर्फ और सिर्फ खंडहर नजर आया और पता चला अरे यह सिर्फ एक स्वप्न था जो अब भी स्वप्न है लेकिन बहुत सी घोषणाएँ याद आईं जो परशुराम भगवान साक्षी मानकर हुई थीं कि शीघ्र ही ब्राह्मण धर्मशाला बनकर तैयार होगा तो लगा कि यकीनन ये स्वप्न साकार होगा।
जय श्रीराम // जय परशुराम भगवान // हनुमंत लाल की जय
” लेखक / पत्रकार सौरभ द्विवेदी की कलम से “