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अक्सर एक बात सुनी गई। मर्द ऐसे होते वैसे होते मतलब कि ऐसे वैसे मर्द। ऐसे वैसे मर्द का मतलब यही ना कि वे हुक्मरान होते हैं। आवारा होते हैं, सीधी बात नो बकवास करते हैं। जननानियों कि नजरों में बिगड़ै़ैल छोरा। ऐसे ही जैसे कोई लड़का शाकाहारी ना होकर चिकन ही चिकन पसंद करता हो और शाकाहारी सब्जी अपनी बारी का इंतजार करती रह जाए और अंत में सूख साख कर बेकार हो जाए।
ऐसे मर्दों को जमाने भर की तोहमते बहुत मिला करती हैं। यहाँ तक की उन्ही के प्रजाति के लोग भी बुराई वाली ताली बजाकर आस पास में शोर शराबा कर देते हैं। बेशक ऐसे वैसे मर्दों को जनानी – जनाना खूब कोस लें।
ओह सीने के एक कोने में दर्द उठा है दर्द। उसी कोने में जहाँ दर्दे दिल की सत्ता हुआ करती है। जहाँ से धड़कने धड़क धड़क कर जिंदा होने का सबूत दिया करती हैं।
जमाने भर की जनानियों से कहना सिर्फ इतना था कि उन बेचारे मर्दों का क्या होगा ? , जो बेकसूर होते हैं। जो ऐसे वैसे मर्द नहीं होते फिर भी जिंदगी में वो खुशी नहीं मिला करती, जिसके वे हकदार होते हैं। ये तो मानना ही होगा कि हर लड़का वेल्ला नहीं होता, आवारागर्दी नहीं करता। राह चलती लड़की को छेड़ा नहीं करता। भद्दे कमेंट पास नहीं करता फिर भी जिंदगी में ब्याह से पहले व ब्याह के बाद वो आत्मीय सुख का हकदार नहीं हुआ करता।
जाने क्यों सीधेे – सादे लड़के के साथ एक लड़की की बना नहीं करती। आपका वाला वही लड़का जो पत्नी बनी लड़की को मारता – पीटता नहीं है। कड़क ऊंची दबंग दहाड़ का प्रयोग नहीं करता है। वही लड़का जिसकी जिंदगी के हसीन सपने होते हैं।
वही लड़का जो आमतौर पर मर्दानगी साबित करने के लिए शादी होते ही प्रेग्नेंसी बतौर गिफ्ट देना नहीं चाहता। आपका वही वाला लड़का जो पत्नी में प्रेयसी को देखना चाहता है और सबसे बड़ी बात दोस्त की तरह रहना चाहता है।
इससे बड़ी बात की जमाने भर की जाति – उपजाति धर्म वाली तमाम परंपराओं के अग्निपथ पर चलते हुए कम पढ़ी लिखी और यहाँ तक की अनपढ़ लड़की से शादी हो जाने के बावजूद उसकी जिंदगी संवारने के लिए बदस्तूर मौका देना चाहता हो। वही लड़का जो कस्बे से लेकर महानगर और मेट्रो सिटीज में घूमा फिरा हो और उच्च मानसिक स्तर का हो फिर भी घर परिवार की वजह से किसी गांव में या पुरवा (कबीले) की लड़की से ब्याह दिया जाए अर्थात दो तन का ब्याह ना कि दो मन का ब्याह और लड़के इज्जदारों के सामने एक ना चल पाए, वक्त के शय में फंस जाए।
ऐसा लड़का अर्थात ऐसा मर्द उसे मानसिक रूप से विकसित होने का अवसर देना चाहे, इंसानियत के हर पैमाने पर चलते हुए उसके जीवन को स्तरीय बनाना चाहे, पहली ही रात से बदलने की कोशिश करना चाहे और फिर भी वो लड़की ना बदलना चाहे तो आखिर हर मर्द दोषी तो नहीं हुआ करते ?
सुनिए पहले दिन से इसलिए नहीं बदल सकता, क्योंकि दिन में मिलने की इजाजत कहाँ होती है, वो तो बकायदे सत्यनारायण की कथा सुनने सुनाने के बाद…… हाय अब हिम्मत जवाब दे गई.
नीलिमा चौहान की पतनशील पत्नियों के नोट्स पढ़ने के बाद कुछ सवाल हमारे भी तो बनते हैं ?