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रचित जूनियर हाईस्कूल में पढ़ने वाला छात्र है। कथानक के अनुसार कहना आवश्यक है कि रचित सवर्ण जाति से है और कुल ब्राह्मण है। एक कम उम्र का छात्र जब यह कहे कि ” अरे वो यादव है और आरक्षण से नौकरी पा जाएगा “।

ऐसे वाक्य से रचित की माँ चिंतित हों तो लाजिमी है ऐसा होना चाहिए। रचित की माँ कहती हैं कि बच्चे में अभी से यह मानसिकता भरी जा रही है।

वो चिंतित हैं कि इस मानसिकता की वजह से जाने कितने रचित पढ़ाई – लिखाई से विमुख हो सकते हैं। वास्तव में ऐसे हर रचित केे संवेदनशील माता-पिता समझने लगे हैं कि कम उम्र के बच्चों में आरक्षण की वजह से ऐसा भाव जन्म लेने लगा है , तो यह भविष्य के समाज के लिए बड़ा घातक है।

इससे बच्चों के अंदर शिक्षा हेतु उदासीनता का भाव जन्म लेने लगा है और यह बात घर करती जा रही है कि आरक्षण की वजह से सारी मेहनत बेकार है।

भारत सरकार और संविधान कुछ इस प्रकार से चल रहे हैं कि घुड़साल तो एक ही है और सभी घोड़े रेस में जीतने चाहिए। किन्तु कुछ घोड़ो की संरक्षित देखभाल के साथ साथ अधिक प्रोटीन का भोजन आरक्षित कर दिया जाए , शेष ऐसेे ही कपिला पशु आहार खा कर रहें फिर आपस में ही रेस करा दी जाए , ऊफ कितना दर्दनाक है कि तमाम घोड़े रेस के मैदान में हंफ हंफ कर दम तोड़ते जा रहे हैं और कुछ लोग बैठकर आनंद ले रहे हैं कि ये गिरा .. वो मरा और ये जीता।

भारत की स्थिति कुछ ऐसी ही बनती जा रही हैं , जहाँ रचित जैसे बालक पहले ही हारने लगते हैं। आज तमाम माता-पिता के समक्ष चुनौती है कि सरकार की आंखे खुलने तक और वास्तविक समरसता कायम होने तक अपने-अपने रचित का हौसला मत मरने देना , उन्हें संरक्षण के साथ अधिक प्रोटीन देकर पावरफुल बनाइए , विकल्प तलाश लीजिए , जैसे ओलम्पिक में आपका बेटा अच्छा कर सकता। खेलकूद के क्षेत्र में कबड्डी सेे लेकर कुश्ती और शूटिंग तक बहुत से विकल्प हैं।

रचित के पिताजी की बात अच्छी लगी थी कि मैं बेटे को इसलिये नहीं पढ़ा रहा कि वह नौकरी करे बल्कि इसलिये पढ़ा रहा हूँ कि शिक्षित संस्कारित होकर नौकरी से इतर भी मुकाम हासिल करे , अच्छा नेतृत्वकर्ता हो और वह जहाँ बोले तो लगे कि कोई विद्वान बोल रहा है।

माँ की चिंता जायज है , पिता का हौसला समाज के सीख है और सरकार अगर माता-पिता हो जाए तो बात बन जाए। सशक्त समृद्ध भारत बनते देर नहीं लगेगी।

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