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मुझे गुरूदेव की बात याद आई। कि हाँ गुरूदेव संगति का दोष होता है। अब अच्छा दोष है कि बुरा ये संगति तय करती है। बस हमे कोशिश करनी है कि संत समाज की संगति मे रहें। अच्छे स्वभाव के लोगों की संगति मे रहें। अन्यथा गुरूदेव बदरी प्रपन्नाचार्य महाराज जी ने कहा है कि अकेले रहना सीखिए और इस संसार मे अकेले रहिए। हंस की तरह अकेले उड़ान भरिए।

श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ आचार्य आश्रम मे स्वामी जी महराज ने कहा कि ” जीव माने हंस और हंस का मतलब जो अकेले उड़ता है। संसार मे आए हो तो अकेले रहने का प्रयास करिए। बहुत सारे विकार से बच जाएंगे , अकेले बैठोगे झूठ से बच जाओगे। संगति मे बैठने मे दोष है। “

महाराज जी के श्रीमुख से इस दिव्य वाणी का महत्व सभी के लिए है। सभी भक्त अपने अपने अनुसार दिव्य वाणी को अपने जीवन मे महसूस कर सकते हैं। इस सच को सभी जानते हैं कि ” अकेले आए हैं और अकेले जाएंगे। ”

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किन्तु जीवन भर क्या अकेले रह पाते हैं ? जीवन किसी ना किसी के साथ व्यतीत हो रहा है। साथ व्यक्ति का हो या साथ विषय का हो , किसी ना किसी के साथ अवश्य रहते हैं।

जैसे स्वामी जी महाराज ने कहा कि अकेले बैठोगे तो झूठ से बच जाओगे ! मतलब अकेले होने पर कम से कम झूठ तो नही बोलना पड़ेगा। बच जाओगे झूठ बोलने से फिर स्वाभाविक है जहाँ झूठ नही वहाँ सच ही रहेगा। झूठ और सच विषय हैं। सच एक ऐसा विषय है जो सबको प्रिय है परन्तु अनायास ही झूठ जैसे विषय को अपनाना पड़ता है लेकिन क्यों ? किसके लिए ? अपने लिए शायद ही झूठ बोलना पड़े लेकिन किसी ना किसी के लिए हम झूठ बोल देते हैं।

यही संगति का दोष है जो महाराज जी कहते हैं कि ” संगति मे बैठने मे दोष है। ” अर्थात संगति जिसकी होगी उसके दोष लगने की पूरी संभावना रहती है। हम किसी की संगति मे उसकी रंगत मे ढल जाते हैं।

कुछ समय ठहरा रहा। मैं भी किसी की संगत मे दिल्ली मे था। ओला बुक की थी। ट्रैफिक जाम मे खड़े थे। अचानक से एक युवा भिखारी आया। वह भीख मांग रहा था।

मैं जिनके साथ उनकी ओर देख रहा था। वैसे बहुत अच्छे आदमी हैं। जाने क्यों इस युवा भिखारी को भीख नही देना चाहते।

मेरा मन हो रहा था कि कुछ दे दूं। लेकिन वो मुझसे बड़े थे। ओहदे मे बड़े और बड़े बिजनेसमैन हैं। जब वो नही दे रहे थे तो मैंने भी नही दिया एक एकन्नी भी नही। पर मुझे दर्द आज भी है जब जब याद आती है उसकी।

बहुत मासूम था। ड्राइवर से कहता अरे तुम दे दो तेजा भाई। जैसे उस ड्राइवर को वो पहचानता हो और साफ पता चल गया कि ये युवा भिखारी दिमाग से कमजोर है पर वेरी इंट्रेस्टिंग पर्सन लगता है।

उसकी आवाज मे आकर्षण था। उसने ड्राइवर हक से कहा और वो ड्राइवर समय का राजा निकल गया। दानी हरिश्चन्द्र कि तरह उसने दान के 10 ₹ निकाले और उसे दे दिए। हम सब शायद ताकते रह गए। खासतौर से मैं जो संकोच से मर गया। बहुत दुख हुआ कि संगति का असर होता है।

मुझे गुरूदेव की बात याद आई। कि हाँ गुरूदेव संगति का दोष होता है। अब अच्छा दोष है कि बुरा ये संगति तय करती है। बस हमे कोशिश करनी है कि संत समाज की संगति मे रहें। अच्छे स्वभाव के लोगों की संगति मे रहें। अन्यथा गुरूदेव बदरी प्रपन्नाचार्य महाराज जी ने कहा है कि अकेले रहना सीखिए और इस संसार मे अकेले रहिए। हंस की तरह अकेले उड़ान भरिए।

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