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By : Saurabh Dwivedi

जनपद चित्रकूट की राजनीति में कम समय मे बड़े संकट का सामना करने वाले विधायक का समय साक्षी है। यहाँ की जनता साक्षी है। वह जनता जिसने अनेक विधायक देखे हैं और तमाम नेता देखे हैं। जनता ने अपनी आंखो से चुनावी हार – जीत देखी है तो वहीं मुहर लगाकर मतदान भी किया था। चुनाव के बाद अपने ही नेता से परायापन भी महसूस किया है , यहाँ की जनता ने। किन्तु आनंद शुक्ला एवं इनकी राजनीति अध्ययन का विषय बन चुकी है।

कोविड – 19 से विश्व के दो सौ बारह देश हताहत हुए हैं। वहीं भारत जैसा राष्ट्र भी कोरोना वायरस के संक्रमण का शिकार है तो राजनीति मे बांदा संसदीय क्षेत्र का पिछड़ा जनपद चित्रकूट भी कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है। संसदीय क्षेत्र मे राजनीति के मामले मे बांदा से अव्वल चित्रकूट है। चूंकि चित्रकूट से ही ज्यादा सांसद बनने की चर्चा है।

आनंद शुक्ला को सबसे पहला दर्द बाहरी होने का मिला। उनको कहा गया कि वह बाहरी हैं। वे यहाँ से आए हैं , वे वहाँ से आए हैं और विरोधियों ने यही अयोग्य होने का मोर्चा खोल रखा था कि एक बाहरी क्या सेवा करेगा ?

अब आनंदमय सेवा की तस्वीरें बाहर हैं तो अंदर वाले विपक्षी रनर उम्मीदवार लाकडाउन मे हैं। जिस जाति का नारा लगाया और जिस वर्ग का नारा लगाकर मत प्राप्त किया गया कम से कम उनकी ही सेवा कर देते ! लेकिन नहीं चूंकि ऐसे नेताओं की सोच चुनावी जीत तक सीमित होती है और ऐसे संकट के समय की कल्पना भी उन लोगों ने नहीं की होती है। वैसे भी किसी दार्शनिक ने कहा था कि नेतृत्व की असल पहचान संकट के समय होती है , वह पहचान आनंद शुक्ला के रूप मे होती नजर आ रही है।

चुनाव के समय आनंद शुक्ला भाजपा के टिकट से चुनावी मैदान मे कूदे। उन्होंने अपने स्थानीय पूर्वजों की याद दिलाई और जनता को विश्वास दिलाया कि सेवा करने आया हूँ और सेवा करूंगा। अंततः वह जनता के मन से बाहरी होने का मिथक तोड़ने मे कामयाब रहे और विपक्षियों की कूटनीति को दृढ इच्छाशक्ति से मात दे दिए।

क्या आनंद शुक्ला ने भी सोचा रहा होगा कि एकाएक उनके सामने कोरोना वायरस जैसी आपदा आ जाएगी ? सबसे बड़ी बात है कि विधायक बनते ही बड़ी परीक्षा देनी पड़ गई। इतने कम समय में जनपद चित्रकूट के अंदर किसी नेता ने ऐसी परीक्षा नहीं दी। इस जनपद में पूर्वजों के समय से राजनीति करने वाले परिवार हैं तो राजनीति में लगभग दस – पंद्रह वर्ष व्यतीत कर चुके हैं और इससे भी अधिक समय !

इस दौरान अन्य नेता भी बंदरों को भोजन कराते हुए व हल्की-फुल्की समाजसेवा करते हुए दिखे हैं पर विशेष बात यही है कि आनंद शुक्ला लगातार सेवा करते दिखे हैं। उनका पूरा समय पूरी सावधानी के साथ जनता के साथ बीता। जैसे कि जनता सिपाही हो और आनंद सेनापति हों व कोरोना वायरस जंग लड़ रहे हों और सेनापति का ऐसा नेतृत्व जनता का मन मोह रहा है।

उन्होंने अपनी जनता का साथ नहीं छोड़ा। युवाओं के कंधे से हाथ नहीं हटाया , किसी को निराश नहीं होने दिया। हर संभव मन मे आशा भरते नजर आए। गरीब – मध्यमवर्गीय जनता के घर तक राशन पहुंचाने का काम हर माध्यम से किया। वह युवाओं से भी ऊर्जा का सदुपयोग करने को कहते नजर आते हैं।

यह विधायक बनने से पूर्व और विधायक बनने के बाद तक का सफर है , जिसकी साक्षी स्वयं जनता है और बतौर विधायक वह अच्छा काम करते हुए दिखे हैं। जिससे यहाँ के युवाओं और जनता की उम्मीदें बढ़ती हैं। संभवतः चित्रकूट की राजनीति में बड़ा वैचारिक परिवर्तन साफ नजर आ रहा है। यहाँ का माहौल बदला है और सेवा व काम दिखने से अंधकार छंटा पर प्रकाश की यात्रा अभी जारी रहे ताकि भविष्य में राजनीति के वाद की धुंध छंट सके , वैसे जिसने संकट के समय स्वयं को साबित किया है , उस पर प्रकृति की कृपा होना निश्चित है।

छोटा सा सहयोग बड़ा सा काम

यह सच है कि कम ही समय मे संकट ने उनकी परीक्षा ली है और उन्होंने परीक्षा दी है। बासबूत परीक्षा दी , जिसके नगाड़े शब्दों और सेवा की तस्वीरों से बजते दूर – दूर तक नजर आते हैं। नेतृत्व यही है कि संकट के समय ज्यादा से ज्यादा अपनी जनता के आसपास नजर आएं और उन्होंने यह कोशिश की वरन् साबित भी किया है।

बड़ी संभावना है कि भविष्य के राजनीतिक क्षितिज में आनंद नाम का इंद्रधनुष स्वयं आकार लेता नजर आए , वैसे विधानसभा चुनाव से अब तक की कार्यशैली में इंद्रधनुष सा आकार खिंचा ही है। 

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1 COMMENT

  1. Aanand Shukla ji Ek Aadarsh bidhayk h samaj seva hi unka sankalp h jo karte he may Delhi me tha mere bachche kharaudh me the to Shukla ji 2 bar Rashn samgri dilwaya gaya h Ham pariwar sahit dil se Aabhar prakat karte h