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जिंदगी में मंजिल मिलने से पहले और मंजिल के सफर तक अनेक रास्ते व ठहराव मिलते हैं। एक समय ऐसा लगता कि हम भटक रहे हैं और भटकाव के वक्त पता रहता कि आज जहाँ भी हैं , वह एक सीढ़ी है नाकि हमारी मंजिल है पर इसकी भी अपनी उपयोगिता छत तक पहुंचने में सीढ़ियों की तरह है।

एक समय ऐसा रहा कि जीवनयापन हेतु अथवा जिंदगी में कुछ बड़ा करने हेतु असमय ही महाराष्ट्र के पुणे जाना पड़ा , ऐसा भी है कि मैं स्वेच्छा से गया। पारिवारिक चकाचौंध में एक शख्स ने कहा था कि अरे आपको पुणे जाने की जरूरत क्या है ?

यह ऐसा सवाल है कि हमारे पास तय समय पर जवाब नहीं हुआ करता है। यह बेहद व्यक्तिगत सवाल ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया , जो महासागर और उसकी लहरों को दूर से देख सकता है और प्रभावित हो सकता है पर वह गोताखोर नहीं है। महासागर के अंदुरूनी हालात व सच्चाई से कोई गोताखोर ही वाकिफ हो सकता है। वह ऐसा व्यक्ति भी था , जो सिर्फ सवाल कर सकता था परंतु जिंदगी के लिए कुछ कर नहीं सकता था। इसको ही कहते हैं लोगों के बाथरूम में झांकना !

मुझे पुणे की ही यात्रा नहीं बल्कि पिछले दिनों चित्रकूट से दिल्ली की यात्रा की उपयोगिता भी तब समझ आयी , जब लेखक Bhagwant Anmol के उपन्यास जिंदगी 50 – 50 के आधार पर किन्नर विमर्श के लिए समीक्षात्मक लेख लिख रहा था और यह सौभाग्य Firoz Khan जी की सहृदयता से मिला।

चूंकि किन्नर विमर्श पर लिखते हुए पुणे और दिल्ली में किन्नरों से मुलाकात व उनके जीवन को समीप से देखने – समझने सहित आपबीती याद आयी और उपन्यास जिंदगी 50 – 50 द्वारा किन्नरों के प्रति मेरी सोच पर आए व्यापक बदलाव को महसूस करना।

इस प्रकार जिंदगी की यात्रा और जिंदगी में किताबों के अध्ययन की यात्रा का अर्थ महसूस हुआ कि जो आज हमें भटकाव लग रहा है , वही कल अनुभव बन सकता है और हमारे काम आ सकता है। असल में निर्माण की प्रक्रिया भी यही है , अक्सर दुख दर्द के वक्त स्वयं मैं भी टूटता हुआ महसूस कर सकता हूँ परंतु अंधकार के बाद ही जीवन में प्रकाश का दीपक जगमग हुआ करता है।

संभव है कि जिस यात्रा से मैं गुजर चुका हूँ , उस यात्रा पर आज कोई हो तो हकीकत यही है कि जिंदगी नामक इमारत के निर्माण का वक्त है। मुझे सदुपयोग का अहसास हो गया। हम में एक बड़ा गुण है कि जिंदगी में नौकरी करने के लिए प्रतिस्पर्धा परीक्षाओं में सफल होने के लिए सब्जेक्ट की किताबें जी – तोड़ अंदाज से पढ़ते हैं और जबरन भी पढ़ते हैं परंतु जिंदगी की परीक्षा में पास होने के लिए हम जीवन – समय और समाज से संबंधित सीखने योग्य , सोच में बदलाव लाने हेतु किताबें पढ़ने से परहेज करते हैं।

यहाँ तक की कुछ सौ रूपए की वह किताब हमें मंहगी लगती है या बेकार में पैसा फेकने जैसी बात लगती है पर हकीकत यही है कि हम स्वयं से धोखा कर रहे होते हैं। जितना पढ़ेंगे उतना कढ़ेगें और जीवन की परीक्षा में सफलता के मेधावी छात्र हमेशा बने रहेंगे। इसलिये समझ को विकसित करने हेतु कविताएं पढ़िए , लेख -पढ़िए और कुछ अच्छी उपन्यास पढ़िए फिर हर यात्रा से अनुभव साझा करिए , यही चलती साँसो का आनंद है , जीवन का सार है।

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