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By – Saurabh Dwivedi

किस्मत को बड़ी सूक्ष्मता से परखा जा सकता है कि आपके हिस्से में क्या है और क्या नहीं है। मेरा ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा होने का कारण बचपन से आज तक के तमाम घटनाक्रम से जुड़ा हुआ है। अक्सर मंदिर जाता हूँ और बहुतायत सूक्ष्म देह से मंदिर में पहुंचना महसूस कर दर्शनीय – प्रार्थना स्थल पर मौजूदगी महसूस कर लेता हूँ।

सोमवार की शाम को अनुज विवेक तिवारी ने मिलने हेतु काल किया और हम चर्चा करते रहे फिर एकाएक नांदी के हनुमानजी चलने की बात मन में आई।

कुछ देर पश्चात हम हनुमानजी के मंदिर पर थे। ये वही हनुमानजी का मंदिर है , जहाँ राजापुर से संत तुलसीदास इनकी आराधना करने के लिए आते थे। इस स्थान का चित्रकूट के अंदर एवं सम्पूर्ण भारत में जानने वालों के लिए विशेष महत्व है।

किवदंती कुछ इस प्रकार भी है कि इनका एक पैर भूतल तक है। अब से कुछ दशक वर्ष पहले उस एक पैर की थाह लेने के लिए खुदाई भी की गई थी। किन्तु इस पैर का अंत मिला नहीं और किसी साधु को स्वप्न आया कि यह प्रयास निरर्थक है और अंततः लोगों ने उसी जगह पर स्थापित रहते हुए सुंदरीकरण का कार्य शुरू किया था।

जिंदगी में कर्म प्रधान है। कर्म करेंगे तो अनायास ही उचित फल प्राप्त होगा अथवा त्वरित फल प्राप्त ना होना भी हमारे हित में हो सकता है।

मैं जब भी प्रार्थना करने पहुंचता हूँ , वहाँ रामायण पढ़ते हुए एक व्यक्ति तुलसी दल से सम्मिलित जल भक्तों को दो से तीन चम्मच हथेली पर देते हैं। स्वयं मुझे इसके पहले जल के साथ तुलसी दल अनायास ही मिलता रहा।

कल जब मेरी हथेली पर जल आया तब तुलसी दल नहीं मिला तो मैंने कर्म किया , उन हनुमान भक्त से कहने लगा कि मुझे तुलसी भी तो दीजिए। उस छोटे से गिलास में कम से कम आधा दर्जन तुलसीदल रहा होगा , पर मेरे लिए पहले और दूसरे-तीसरे प्रयास में तुलसी दल निकल नहीं सका।

अब मेरा पल भर में चिंतित होना जायज था कि आसानी से मिल जाने वाला तुलसी दल आज याचना करने के बावजूद भी नहीं मिल पा रहा है। अंततः उनके प्रयास और मेरी हृदय की इच्छा का असर हुआ कि चम्मच में जल के साथ तुलसी दल भी आ गया। परंतु चम्मच से जल से मेरी हथेली में आ गया और तुलसी दल चम्मच में ही रह गया फिर एक प्रयास हुआ और मुझे तुलसी दल की प्राप्ति हुई।

इतने से घटनाक्रम से जिंदगी में कर्म और किस्मत का पूरा खेल समझ में आ जाना चाहिए। जिंदगी में कभी – कभी कुछ अनायास ही प्राप्त हो जाता है , जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती है। कभी ऐसा होता है कि जो हम प्राप्त करना चाहते हैं , वह भी हमें मेहनत से प्राप्त होता नहीं दिखता है या प्राप्त होने से पहले प्रयास करना बंद कर देते हैं।

कल्पनीय है कि रामायण पढ़ने वाले भक्त अगर तीसरे प्रयास के बाद भी प्रयास नहीं करते तो मुझे तुलसी दल प्राप्त नहीं होता। अतः जीवन में कुछ प्राप्त करने का मंत्र ही यही है कि हमेशा प्रयास करते रहें। प्राप्त – अप्राप्त के मध्य प्रयास ही वह कर्म है , जिसमें अद्भुत और सफल जिंदगी का मर्म छिपा हुआ है।

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