BY :- Saurabh Dwivedi
देव स्थान में भंडारा करना और मन्नत पूरी होने के फलस्वरूप पूजा कर परमात्मा को समर्पित करने की सामाजिक – आध्यात्मिक आस्था का असर समाज में खूब रहा है। कोरोना काल में सामाजिक अवधारणा की तस्वीर भी बदल रही है। कांग्रेस नेता समाजसेवी स्वभाव से धनी विनम्र – सरल व्यक्तित्व रजनीश पाण्डेय ने भंडारा आयोजित कर समाज को मार्गदर्शन प्रदान किया है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को भंडारा और भंडारे की अवधारणा को समझना चाहिए।
वैश्विक – राष्ट्रीय आपदा के समय गरीब – मध्यमवर्ग का काम – धंधा लाकडाऊन के समय लाक हो गया। एक ऐसा लाक लगा कि दिहाड़ी मजदूर एवं गरीब वर्ग के सामने भूख मिटाने से लेकर भविष्य में अच्छी जिंदगी जीने के देरों सवाल मन – मस्तिष्क मे उपजने लगे।
इसे प्रकृति की कृपा ही कहेंगे कि रजनीश पाण्डेय की स्मृति शक्ति में मन्नत की स्मृति ताजा हुई। स्मृति शक्ति एक ऐसी शक्ति है , जो स्वयं की तरंगों से समाज का हित करती है और व्यक्तिगत हित भी करती है। एक ऐसी ही मन्नत कुछ वर्ष पूर्व पाण्डेय परिवार ने मानी थी। मन्नत कब की पूर्ण हो चुकी थी , अगर कुछ अधूरा रहा तो सेलना बाबा धाम पराकों में भंडारा आयोजित करना !
कहते हैं कि समय स्वयं चुन लेता है। प्रकृति व्यक्ति विशेष का चयन समय-समय पर नेतृत्व के लिए कर लेती है। यह पहली बार हुआ कि अचानक से व्यापार ठप्प पड़ गया। रोजमर्रा के काम रूक गए। यहाँ तक की काम वाली बाई भी अपने घरों तक सीमित हो गईं। जीवन में सांकेतिक अंधकार छा गया।
ऐसे समय पर श्री पाण्डेय की स्मृति में महसूस हुआ कि ग्यारह कुंतल का भंडारा लंबित है। जैसे कि संकट मोचक ने स्वयं चुन लिया हो। संकट मोचक हनुमान ने कहा हो कि यह भंडारा आयोजित करने का समय आ गया है।
ईश्वर यूं ही नहीं चुनाव करते , अगर पूरे पाण्डेय परिवार का मानसिक अध्ययन कर लिया जाए तो सभी भाई – बंधु संवेदनशील और विनम्र स्वभाव के परिजन हैं। इसलिये महसूस होता है कि परमात्मा ने अपने भक्त का चुनाव राष्ट्रीय आपदा के समय कर रखा था , जिसका आभास पाण्डेय परिवार को भी नहीं था।
कांग्रेस नेता रजनीश पाण्डेय को एक रोज महसूस हुआ कि भंडारा किया जाना चाहिए। लेकिन भंडारे का स्वरूप क्या होगा ? आमतौर पर विशाल से विशाल भंडारा और छोटा से छोटा भंडारा आयोजित होता है , ऐसे भंडारे में परिवार , रिश्तेदार और खास मित्र परिवार आमंत्रित होते हैं। तत्पश्चात भंडारा संपन्न हो जाता है।
कांग्रेस नेता का भंडारा इसलिये महत्वपूर्ण हुआ कि उन्होंने भंडारे की वास्तविक अवधारणा का जन्म दिया , और यह परमात्मा का बड़ा संदेश भी है। चूंकि हनुमान मंदिर में सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए प्रतिदिन पूड़ी – सब्जी ग्यारह दिनों तक बनाया गया। संकट मोचक को प्रसाद लगाने के उपरांत पैकिंग कर राजापुर के आसपास के गांवो में गरीब – जरूरतमंद के घर तक युवाओं द्वारा प्रसाद वितरण किया जाने लगा।
यह वितरण का कार्य दो दर्जन से अधिक युवाओं ने संभाल रखा था। भंडारे का प्रसाद बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक जाति – वर्ग और धर्म के लोगों तक पहुंचाया गया। जिसमें सिर्फ यह महसूस किया गया कि यह ईश्वर का प्रसाद है और प्रत्येक घर – परिवार तक पहुंचकर भूख तृप्त की जाए।
इसलिए खास बात है कि सेलना बाबा पराकों धाम से भंडारे की वास्तविक परिभाषा तय हुई और वास्तविक रूप से सही समय पर भंडारे का आयोजन स्वयमेव हुआ। अगर आज स्वामी विवेकानंद जीवित होते तो वह ऐसे भंडारे का आयोजन सुन कर अति प्रसन्न होते। फिर भी यदि उनकी आत्मा देख – सुन रही होगी तो उन्होंने महसूस किया होगा कि मेरे उस विचार को पाण्डेय परिवार ने साकार किया है , चूंकि ” स्वामी जी ने कहा था कि मूर्ति को खिलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा कि मानव की सेवा की जाए , यदि एक मनुष्य भूखा रह जाए तो मूर्ति को प्रसाद लगाने का क्या अर्थ ? ” उन्होंने मूर्ति पूजा का समर्थन करते हुए प्रसाद की परंपरा को गरीब व्यक्ति की पेट पूजा तक पहुंचाने की बात कही थी। इसलिये स्वामी विवेकानंद का विचार भी भंडारे से साकार हुआ है।
कोरोना काल में ऐसी ही बहुत सी परिभाषाएं बन रही हैं और टूट रही हैं , जैसे कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अनुकरण करना चाहे तो समाजसेवी रजनीश पाण्डेय और पाण्डेय परिवार ने सर्वजन हिताय – सर्वजन सुखाय ” के भाव से भंडारे का आयोजन कर वास्तविक परिभाषा प्रदान की है। श्री पाण्डेय के पिताजी आध्यात्मिक हैं और उन्होंने भी कहा था कि ” सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः ” यही भारत की संस्कृति है।
ऐसे ही लोगों को संकट के समय में नेतृत्व करना पड़ता है और संकट के समय नेतृत्व की वास्तविक परिभाषा तय होती है। उन्होंने भंडारे की वास्तविक परिभाषा से परिचय कराया और संकट के समय नेतृत्व का अर्थ भी राजापुर परिक्षेत्र के गांव सहित समूचे समाज मे आमजन के हृदय में कार्य – परिणाम से नेतृत्व का अर्थ भी समाहित किया है।
इस ग्यारह दिवसीय भंडारे में प्रतिदिन दिन एक कुंतल का प्रसाद बना और मुख्य बात यह रही कि प्रतिदिन एक सा स्वाद और लगभग पांच सौ – छः सौ जरूरतमंद के पास तक प्रसाद पहुंचता रहा।
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( Saurabh chandra Dwivedi
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