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@Anuj pandit

चित्रकूट जनपद की मानिकपुर तहसील से महज 15 किमी. की दूरी पर स्थित जगदीश स्वामी का मंदिर अति प्राचीन है।

इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएँ काफ़ी हद तक उड़ीसा प्रान्त के पुरी में स्थित भगवान् जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमाओं(श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा) से मेल खाती हैं।

जिन श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों ने  पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमाओं के दर्शन किये होंगे, वे   जगदीश स्वामी मन्दिर की प्रतिमाओं को देखकर यह बता सकते हैं कि काफ़ी हद तक दोनों स्थानों की मूर्तियाँ समान तर्ज पर ही गढ़ी गयी हैं। हाँ, मन्दिर की नक्काशी में काफ़ी अंतर है क्योंकि जगन्नाथपुरी का मंदिर वास्तु शैली का अनुपम उदाहरण है।

जगदीश स्वामी मन्दिर  के  मुख्य पुजारी जी ने  बताया  कि श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा के अतिरिक्त राधिका जी की भी प्रतिमा  है, जो पहले अष्टधातु-निर्मित थी किन्तु क़ई बरस पहले कुछ लोगों ने चोरी कर लिया लिहाजा राधा जी की प्रतिमा सीमेंट से बनायी गयी।

श्रुतकथा के मुताबिक पुरी के जगन्नाथ मन्दिर की मूर्तियाँ दारु-काष्ठ से निर्मित की गयीं एवं जगदीशस्वामी मंदिर की मूर्तियाँ चन्दन-काष्ठ से ।

जगदीश स्वामी मंदिर एवं इसमें विराजित मूर्तियों की वास्तु-शिल्प शैली का तो अंदाजा नहीं किन्तु पुरी के जगन्नाथ मंदिर की वास्तु शैली कलिंग है जो 12वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।

लगभग एक हजार पुराने पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तीनों प्रतिमाओं से मेल खातीं चित्रकूट के जगदीश स्वामी की प्रतिमाओं को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भी उसी कालखण्ड का होगा।
हालाँकि  मुख्य पुजारी जी एवं मानिकपुर के एक शिक्षित नवयुवक जुगेंद्र मिश्र ने बताया कि  जगदीश स्वामी का मंदिर लगभग तीन-चार सौ वर्ष पुराना है।

मन्दिर के मुख्य द्वार से लगभग दश मीटर की दूरी पर एक स्नानागार भी है जो जमीन के नीचे बनवाया गया है,जिस पर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है । इस स्नानागार की विशेषता यह है कि इसके मध्य में बनी बावली के चारों ओर  कुछ अलग-अलग कमरे भी  हैं जो शायद वस्त्र-बदलने हेतु बनाये गये रहे होंगे! स्नानागार की बनावट देखकर इसकी प्राचीनता का अनुमान स्वतः हो जाता है कि कम से कम 500 साल या उससे भी पहले का होगा !

पुरी में श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की शोभा-यात्रा प्रतिवर्ष निकालने की परंपरा है तो चित्रकूट के जगदीश स्वामी की भी झाँकियाँ कुछ वर्षों पहले तक प्रतिवर्ष निकाली जाती रही हैं  किंतु अब यह प्रथा समाप्त सी हो गयी है।

जगन्नाथ हों या जगदीश स्वामी दोनों का अर्थ होता है जगत् के स्वामी।अर्थात्  “विष्णु।” जो सर्वत्र व्याप्त हैं और जगत् के पालक हैं।

इस प्रकार चित्रकूट का यह जगदीश स्वामी मंदिर मूर्तियों और उनके शिल्प की दृष्टि से जगन्नाथ स्वामी के  समान है।

अंतर इतना है कि पुरी के जगन्नाथ स्वामी चारधामों में परिगणित हैं और पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं जबकि चित्रकूट के जगदीश स्वामी अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं।

यदि  सरकार और प्रशासन इसकी प्राचीनता को समझें तो शायद यह भी आलोक में आ सकता है और पुरी जाने वाले श्रद्धालुओं का मन आकृष्ट कर सकता है औऱ समानता की दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि  पुरी के जगन्नाथ स्वामी ही चित्रकूट के जगदीश स्वामी हैं।

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