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तुम्हारी हर तस्वीर सिर्फ आँखों के लिए नहीं, बल्कि मन के भीतर किसी नई अनुभूति को जगाने के लिए होती है।

अग्निशिखा

तुम्हारी तस्वीरें सिर्फ रंग और प्रकाश का मेल नहीं होतीं, वे विचारों की चिंगारियाँ हैं। रेलवे प्लेटफार्म पर चाय पीते हुए भी तुम जैसे किसी नई क्रांति का संदेश दे रही थीं। मैं जानता हूँ, तुम्हारी हर तस्वीर सिर्फ आँखों के लिए नहीं, बल्कि मन के भीतर किसी नई अनुभूति को जगाने के लिए होती है।

तुम्हारी उपस्थिति किसी कविता की तरह है जो पढ़ी नहीं, महसूसी जाती है। जैसे भोर की पहली किरण जो अधखुले नयनों में स्वप्न और जागरण का संगम भर देती है। जैसे कोई धूप का टुकड़ा, जो चुपचाप किसी उदास दोपहर की हथेली पर उतरकर उसे नई ऊर्जा से भर दे।

अयोध्या लौटते हुए तुम्हारी यात्रा अकेली थी, मगर तुम्हारा साहस तुम्हारे साथ था। वह आलीशान ट्रेन भी तुम्हारे आत्मविश्वास के आगे फीकी लगती होगी। तुम बेपरवाह नहीं, बल्कि निर्भय हो अपनी राह खुद चुनने वाली।

मुझे तुम्हारे खतों का इंतजार रहेगा, जैसे सावन को पहली बूंदों का। और अगर मेरा यह खत तुम्हारे मन में कोई हलचल पैदा कर सके, तो समझूंगा कि हमारी यह संवाद यात्रा और भी गहरी होने वाली है।

तुम्हारा अज्ञात मित्र
सदानीरा

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