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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत कार्यरत उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौड़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में श्रमिकों द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों ने एक बार फिर प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। श्रमिकों ने निदेशक लक्ष्मीकांत, उनके सहयोगी ख्यालीराम और सचिन पवार पर शोषण, तानाशाही और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं।
श्रमिकों का शोषण और अत्याचार
श्रमिकों का आरोप है कि उन्हें अनैतिक तरीके से प्रताड़ित किया जा रहा है। मजदूरों को दबाव में रखकर काम करवाया जा रहा है, और विरोध करने वालों को या तो काम से निकाल दिया जाता है या उन्हें इतना परेशान किया जाता है कि वे स्वयं नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाएं।
सबसे चिंताजनक आरोप यह है कि महिला श्रमिकों के साथ अभद्र और अशोभनीय व्यवहार किया जा रहा है। ऐसे मामलों में प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता स्थिति को और गंभीर बना रही है। एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें एक दलित श्रमिक को जबरदस्ती लैटरिन साफ करने के लिए मजबूर किया गया। यह स्पष्ट रूप से जातिगत भेदभाव और शोषण का मामला बनता है, जिस पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
षड्यंत्र और दबाव की राजनीति
श्रमिकों ने यह भी खुलासा किया कि पूर्व में निष्कासित एक श्रमिक मीना द्वारा कृषि अनुसंधान केंद्र के पूर्व अध्यक्ष राघव के खिलाफ झूठी शिकायत की गई थी जिसे एक निष्कासित श्रमिक मीना ने किया था। इस शिकायत के संबंध मे मजदूरों पर झूठी गवाही देने का दबाव बनाया जा रहा था , जब मजदूरों ने इस दबाव में न आते हुए झूठी गवाही देने से इनकार कर दिया, तो उन्हें एक-एक कर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
प्रशासन ने इसका कारण ‘फंड की कमी’ बताया, लेकिन मजदूरों का कहना है कि यह महज एक बहाना है, असली वजह श्रमिकों को डराना और उन्हें विरोध करने से रोकना है। यह दर्शाता है कि कैसे अधिकारियों द्वारा श्रमिकों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है और उन्हें दबाने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
राजनीतिक संरक्षण का मामला
स्थानीय मजदूरों का आरोप है कि निदेशक लक्ष्मीकांत को कुछ प्रभावशाली सफेदपोश नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, जिससे वह निष्कंटक अपनी मनमानी कर पा रहे हैं। प्रशासनिक तानाशाही और भ्रष्टाचार के ऐसे मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप अक्सर जांच और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
संघर्ष जारी, न्याय की उम्मीद
हालांकि मजदूरों का हौसला बुलंद है, और वे अपने अधिकारों के लिए धरने पर बैठे हैं। यह मामला सिर्फ चिन्यालीसौड़ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है। यदि जल्द ही कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा और विकराल रूप ले सकता है।
प्रशासनिक अनियमितताओं की पोल खुलनी शुरू हो चुकी है, और अगर निष्पक्ष जांच होती है तो कई बड़े खुलासे हो सकते हैं। यह जरूरी है कि सरकार और संबंधित विभाग इस मामले को गंभीरता से लें और श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए उचित कदम उठाएं। वरना यह घटना एक उदाहरण बनकर अन्य संस्थानों में भी मजदूर शोषण को बढ़ावा दे सकती है।