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By – Saurabh Dwivedi 

जब भी कोई मौत होती वह निंदनीय कृत्य होता है। कुछ समय पूर्व केरल मे आरएसएस स्वयंसेवक की भी हत्या हुई तब माहौल कूल कूल था। 
आज एक महिला पत्रकार की हत्या हुई। जो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर धब्बा कहा जा रहा है। उसके मायने महिला रक्षा मंत्री बनाकर खुश करने से लेकर महिला पत्रकार की हत्या करने तक से जोड़ा जा रहा है।  




अपराध सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है और अपराधी बचना नहीं चाहिए। किन्तु हम मौत पर अलग अलग मापदंड क्यों तय कर लेते हैं ? 

अगर हम मौत पर अलग मापदंड तय करते हैं तो निश्चित ही हमारे अंदर की इंसानियत मर चुकी होती है। 


जुनैद की हत्या पर मीडिया जगत मे खूब शोरगुल होता है लेकिन राहुल की हत्या पर उसी मीडिया जगत मे सन्नाटा छाया रहता है। 


हमारे देश मे जीवन की राजनीति नहीं होती और मौत पर भी अलग मापदंड तय करके राजनीति की जाती है। 


यहाँ भी वैचारिक सत्ता का गंदा खेल खेला जा रहा है। अगर वास्तव मे आपको अभिव्यक्ति की आजादी और खाने पीने की आजादी की चिंता है तो आरएसएस के स्वयंसेवक की हत्या पर भी इतना ही दर्द होना चाहिए था। 


ऐसा पूर्व मे नहीं हुआ इससे स्पष्ट होता है कि आप “स्क्रीन काली” करने वाले गिरोह के गिरोहबाज के सिवाए कुछ और नहीं हो सकते हैं। 


क्या इस दुनिया मे वामपंथ समर्थित लोगों की जिंदगी ही जिंदगी है ? क्या इस दुनिया मे मानवाधिकार सिर्फ और सिर्फ अफजल गुरू जैसे आतंकियों का है ? 


आप चिंतन करिए कि देश को विकास के पथ से भटकाने मे कितने माहिर हो आप ? स्वविकास और वैचारिक सत्ता सुख के लिए तथ्य को तोड़ मरोड़कर “बागो मे बहार” आ सकती है क्या ? 


मुझे भी महिला पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या का उतना ही दुख है कि जितनी जान मुझे मेरी प्यारी है कि किसी दिन सच लिखने की सजा मौत मुझे ही ना मिल जाए ?  


लेकिन मैं अपनी मौत के साथ उन मौत पर भी विचार करूंगा जिनमे आपकी जुबान का “हलाला” हो जाता है। 


इसलिये कद्रदानों खबरदार रहिए सूचना क्रांति के युग मे आपकी हर बुर्कानशी चाल तीन तलाक की तरह बेनकाब होती जा रही है। न्यू इंडिया की न्यू जनरेशन मे अब ऐसा नहीं चलेगा। 



ॐ शांति


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