आखिर महात्मा गांधी को किसने मारा ??
भौतिक रूप से गान्धीजी को नाथूराम गोडसे की पिस्टल से निकली गौलियो ने मारा था लेकिन क्या यह पूर्ण सत्य है अथवा सत्य का मात्र एक अंश ?
आपने अक्सर हिंदी फिल्मों में देखा होगा जब एक व्यक्ति किसी अपराधी को अपने शत्रु को मारने के लिए सुपारी देता है और वह अपराधी उस शिकार को मार भी देता है लेकिन जब किसी कारण वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है तो मुख्य षड्यंत्रकर्ता उस अपराधी की ही हत्या करवा देता है ।
आखिर महात्मा गांधी की हत्या का उद्देश्य और उससे लाभान्वित होने वाले लोग ही तो इस सत्य की पूर्णता को संपादित कर सकते है !
क्या आप कल्पना कर सकते है कि भारत जैसे देश मे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की हत्या हो जाये वह भी इतनी सरलता से जितनी गान्धीजी की हुई तथाकथित राष्ट्रपिता की ?? न केवल भारत बल्कि तत्कालीन वैश्विक श्रेष्ट जननेता की ??
वे महात्मा गांधी जिन्हें कभी अंग्रेज सरकार तक ने नही छुआ उन तक एक व्यक्ति पिस्तौल लेकर पहुंच गया और गोलियां चला दी ! केवल इसलिए कि गान्धीजी अहिंसा मे विश्वास रखते थे और निर्भय थे ??
क्या तत्कालीन सरकार /प्रशासन एवं गुप्तचर व्यवस्था गान्धीजी को बचाने मे सक्षम नही थी ??
अब विचार कीजिये कि क्यों महात्मा गांधी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कॉंग्रेस और नेहरू के लिए बेकार और डिस्टर्बिंग एलिमेंट हो गये थे !कुछ तथ्यों पर विचार अपेक्षित है
1. सिद्धान्तवादी गान्धीजी चाहते थे कि जो आजादी की लड़ाई सबने मिलकर लड़ी उसका राजनीतिक लाभ अकेले कांग्रेस को मिलना अन्य साथियों को अनुचित लगेगा और स्वयं कॉंग्रेस को निरंकुशता देगा जो कि आज तक दृष्टिगोचर है ।
2) गान्धीजी स्वराज्य और स्वदेशी अर्थव्यवस्था के समर्थक थे जबकि नेहरू के स्वप्न अंतरराष्ट्रीय थे !
3) गाय ,गीता और धर्म को लेकर गांधी निर्भीकता से भारत का आध्यात्मिक चेहरा बनाना चाहते थे जबकि नेहरू इससे उलट थे बिल्कुल !
4 )गांधी भारतीय शास्त्रों ,असामान्य न्यायिक घटनाओ एवं भारतीय परिवेश का पूर्णतः भारतीय संविधान चाहते थे ,आखिर उसी के लिए तो लड़े ही थे सभी किन्तु नेहरू ने जो किया वह स्पष्ट ही है कॉपी-पेस्ट संविधान जिसकी आत्मा ही आयातित है जिसके चलते आज कोई उसका सम्मान करने को तैयार नही 26 जनवरी के अलावा
ऐसे कई कारण थे जिनके चलते गांधी नेहरू एवं कांग्रेस के लिए उसी तरह अप्रासंगिक हो गये थे जैसे केजरीवाल के लिए पार्टी बनाने के बाद अन्ना हजारे !
पटेल /बोस पर नेहरू गान्धीजी की ही कृपा से वरिष्ठता पा चुके थे और प्रधानमंत्री पद पर निर्विघ्न बढ़त ।
फिर भी गान्धीजी से बढ़ते मतभेद और भावी भारत के मॉडल को लेकर गहरे विचारान्तर नेहरू के लिए राह क् रोडा बनने वाले थे ।
17 वर्ष के निष्कंटक शासन का “राज ” भी इतना पवित्र और सहज नही हो सकता जबकि नेहरू ने गान्धीजी के लगभग सभी सिद्धांतो को गांधीजी के साथ ही श्रद्धांजलि देना शुरू कर दिया था ।
गान्धीजी की हत्या के तत्काल बाद उनके ऐसे कोनसे अनुयायी थे जिन्होंने कभी अंग्रेजो पर एक पत्थर तक नही फेंका लेकिन अहिंसा के पुजारी और प्रतिशोध को मानवता का कलंक बताने वाले महात्मा गांधी की हत्या के प्रतिशोध मे 6000 निरपराध चितपावन ब्राह्मणों को मार डाला केवल इसलिए कि हत्यारा इसी जातिवर्ग से था ??
यह तो शुरुआत थी गांधी के सिद्धांतों की हत्या की ! कुछ ही समय बाद हत्यारे को प्रतिशोध के तहत या कहै षड्यंत्र को सदा के लिए जमींदोज करने के लिए फांसी दे दी गई ।
सोचिये उस व्यक्ति के हत्यारे को क्षमा नही मिली जिसने क्षमा को दैविक वरदान के समान बताया था ! जिसने एक गाल पर तमाचे के बदले दूसरा गाल आगे करने का सूत्र दिया था !
गांधी की भौतिक हत्या में नेहरू/कांग्रेस ने की या नही ये।शायद कभी सामने ना आ पाए किन्तु ये तयः हैं कि गांधी के सिद्धांतों की हत्या कांग्रेस ने ही कि है ।
फिर वो चाहे लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु हो या आपातकाल के दमनचक्र , 1984 का सिख संहार हो या बाबा रामदेव के समर्थकों पर बरसाई लाठियां , चाहे सत्ता के लिए हुए हजारों दंगे हो या निर्भया के लिए इंसाफ मांगने वालों पर हुआ लाठीचार्ज , कांग्रेस ने कभी गान्धीजी को स्मरण नही रखा केवल राजघाट पर पुष्पांजलि के पाखंड के ।
गान्धीजी के सिद्धांतों की हत्या की मुलायम सिंह यादव ने जब निहत्थे रामभक्तों पर केवल इसलिए गौलिया चला दी कि वोटबैंक संतुष्ट रहे।
गान्धीजी के सिद्धांतों की हत्या की वाम पार्टियों ने जिन्होंने अपने विपक्षी को सदैव गोली की भाषा से ही निपटाने का सूत्र अपनाया।
सच पूछिए तो जिस संघ और उसके निकटतम राजनीतिक संयंत्र भाजपा के माथे गाँधीजी की हत्या का आरोप केवल इसलिए लगाया जाता है कि उनकी खुलेआम सैद्धान्तिक असहमति थी गान्धीजी के विचारों से उसी संघ/भाजपा ने गांधी को सर्वाधिक वास्तविक सम्मान दिया।
संघ/भजपा मे स्थित आंतरिक लोकतंत्र हो या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , स्वच्छ भारत मिशन हो या ग्रामीण सशक्तिकरण की योजनाएं , भगवद्गीता हो या स्वदेशी (मेकिंग इंडिया ) संघ ने गान्धीजी के सिद्धांतों को ना केवल जिंदा रखा बल्कि उत्कर्ष पर पहुचाने का श्रेष्ठतम प्रयास किया है ।
आज मोदी विश्वभर में गान्धीजी की महिमा का वर्णन कर रहे है जिसके अंतर्गत अहमदाबाद के साबरमती आश्रम का भ्रमण हर राष्टध्यक्ष को अवश्य करवाया जाता है ।
संघ पर आजतक कोई भी आरोप किसी भी सरकार में साबित नही हो पाया है कभी , संघ के स्वयंसेवक सर्वाधिक् स्वावलंबी ,सादगीपूर्ण ,उच्च आदर्शो एवं मूल्यों के साथ लगभग गान्धीजी के सिद्धांतों पर चलता आया है और चल रहा है फिर चाहे बंगाल हो , कश्मीर या केरल ।संघ ने अपने कार्यकर्ताओं का बलिदान दे दिया किन्तु कभी प्रतिशोधात्मक कार्यवाई नही की बल्कि संविधानिक रुप से सरकार बनाकर हिंसक गुंडाराज का अहिंसात्मक अंत किया /करने का प्रयास कर रहा है ।
आश्चर्य की बात है कि इतना सबकुछ देखकर भी आज तक लोग गान्धीजी की हत्या के लिए संघ /भाजपा को जिम्मेदार बताते ताकि गान्धीजी की हत्या तक का राजनीतिक् दोहन किया जा सके ।
“अफसोस कि कांग्रेस को अर्श पर ले जाने वाले गांधी कांग्रेस के लिए मरा हाथी सवा लाख का बना दिये गए ।”
अस्तु पुनश्च महात्मा गांधी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
( गोविंद पुरोहित की फेसबुक वाल से )