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गुरु वही जिनके सामने आप बैठकर मुस्कुराते रहें। सनातन शास्त्रों मे कहा गया है कि शब्द ब्रह्म होते हैं और महराज जी के सामने बैठकर मेरे मन मे यही शब्द आए , यही एक वाक्य आया।

आचार्य आश्रम चित्रकूट के हमारे महराज जी श्री श्री 1008 डा. बदरी प्रपन्नाचार्य महाराज जी के सामने बैठकर जो मुस्कान मेरे मुखमंडल पर बिखरती है वो हृदय मे उतरती चली जाती है तभी मन मे आया है कि देवत्व उन्ही मे है अंश परमात्मा का उन्हीं मे है जिनके सामने बैठने मात्र से आपको अपनी निजी जिंदगी के विकार समाप्त होते महसूस हों और बेवजह का मिला कष्ट उनके सामने आपके जीवन से कहीं पाताल लोक मे जाकर धंस जाए।

इसलिए एक परम वाक्य मेरे मन मे आया कि ” आपका गुरू वही है जिनके सामने आप बैठकर मुस्कुराते रहें ! ” इससे आप अपने गुरू – शिष्य के रिश्ते को समझ सकते हैं और एक निर्णय ले सकते हैं।

हमेशा से हम अनकहे से रिश्ते की बात करते हैं। स्त्री – पुरूष के प्रेम मे अनकहा सा रिश्ता का उदाहरण खूब दिया जाता है। जहाँ अनायास ही कोई अपनत्व महसूस करता हो वहाँ लोग अपरिभाषित रिश्ते को परिभाषित करने के लिए यही कहते हैं।

अब महराज जी के सामने क्या होता है ! आप बैठे हो तो बैठे हो। देखकर भीनी भीनी मुस्कान मुस्कुरा रहे हो। उनके चरणों को देखो या मुख को देखो एक समान प्रवाहित हो रही ऊर्जा फील करोगे आप।

ऐसा भी हो सकता है कि आप सोचो बहुत सारी बातें करना है पर सामने बैठकर भावनाओं का ऐसा प्रवाह हो जाए कि आप कुछ बोल ही ना सको , कोई सवाल कर ही ना सको। समस्त विकार उनके समक्ष नष्ट हो जाते हैं , दुख का अता – पता नही होगा।

ऐसे भी व्यक्तित्व हैं इस संसार मे जिनका आभामंडल उनका प्रभाव क्षेत्र असीमित है और यह धार्मिक ऊर्जा का चमत्कार है। ऐसी चमत्कारिक ऊर्जा है। यही परमात्मा हैं और यही परमात्मा की कृपा है।

जन्म सबका एक तरह होता है परंतु अंतर तप स्थापित करता है इसलिए कहा गया है तप कर कुंदन बनते हैं , कुछ लोग जन्म लेकर भक्त बन पाते हैं और कोई गुरू बन जाते हैं उनमे परमात्मा का अंश झलकने लगता है और इस सनातन विधि से संसार चलता है।

महराज जी की जय हो। प्रणाम

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