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पत्र : प्रेम में अतीत को भी जिया जाता है , ओशो की अतीत संबंधित बात से परे कि अतीत को जीने वाले बूढ़े मन के हो जाते हैं.

कहते हैं , इंसान को वर्तमान में जीना चाहिए और अतीत को भुला देना चाहिए। उस अतीत को कैसे भूल जाएं , जिससे मन और आत्मा का जुड़ाव हो ? जिसे सीने के अंदर से जिया हो।

आत्मा से आत्मा का कल्पनीय अद्भुत सा वास्तविक रिश्ता महसूस हुआ हो। उस अपनत्व भरे प्रेमिल अहसास को भूल जाएं तो कैसे भूल जाएं ? बेशक अतीत नासूर की तरह हो सकता है। जिसका दर्द कभी रूलाता हो तो कभी सुकून भी महसूस कराता हो।

स्वयं ही कोई सपने में आकर बातें करे , इस संसार से विलग कल्पना में वास्तविक सा रिश्ता जीवन के संग – संग महसूस हो , बेशक सामाजिक परिपाटी पर उतर ना सके और दुनिया के समक्ष कोई वजूद ना हो फिर भी आत्मीय रिश्ते की अपनी एक दुनिया हो , तो ऐसे में ओशो जैसे प्रसिद्ध दार्शनिक की अतीत को भूल जाने वाली बात को भी कैसे स्वीकार कर लें ?

ओशो कहते हैं कि अतीत को जीने वालों का मन बूढ़ा हो जाता है। वे युवा मन के नहीं रह जाते पर मन करता है कि खारिज कर दूं या यूं समझ लो ओशो की बात को खारिज कर रहा हूँ। बेशक जज्बातों का दर्द सहा ना जाए पर अतीत के दर्द , स्नेह और प्रेमिल अहसास से रचनाएं बन जाती हैं। कुछ विचार पनप जाते हैं और जिंदगी जी लेने भर के लिए तैयार हो जाना होता है।

इसलिये एक अतीत ऐसा भी , जो परछाईं की तरह संग संग चलता है। उसे जिया जा सकता है या स्वयं ही जीते चलते हैं। अतीत से वर्तमान और भविष्य की यात्रा हमें बहुत कुछ सिखाती और अहसास कराती है।

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