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By – Saurabh Dwivedi

टेक्निकल लव ; लेखक तेज प्रताप के अंतस से सामाजिक धुंध के मध्य भोर के सूर्योदय के समान है। युवाओं की जिंदगी से ओतप्रोत प्रेम और जीविकोपार्जन के बीच संघर्ष की सम्पूर्ण कहानी है। समाज में व्याप्त कुरीतियों पर मारक ब्रह्मास्त्र की तरह है। जिसमें समाज में व्याप्त जातिवाद , धर्मवाद तथा ऊंच – नीच का भाव शिक्षा के प्रकाश और उच्च स्तरीय जीवन यापन से दो गज जमीन के अंदर दमन होता प्रतीत होता है।

किन्तु वास्तविक संसार में यह इतना सरल और तीव्रता से उपन्यास की तरह संभव नहीं है। वास्तविक जिंदगी में प्रेम हारता हुआ अधिक महसूस होता है। जबकि उपन्यास में अविनाश और प्रतिभा का एक – दूसरे के प्रति समर्पण और विश्वास उनके रिश्ते की सफलता की आदर्श कहानी के रूप में प्रस्तुत है। दोनों ही जातीय आधार पर व गांव और शहर के जीवन स्तर के मध्य शुरूआत से भिन्न सोंच के होने के बावजूद अंततः परिश्रम तथा समर्पण से मैं से हम हो जाते हैं। ये बेहद दिलचस्प कहानी है।

उपन्यास कथानक के अनुसार अपने नाम टेक्निकल लव की सार्थकता को बखूबी सिद्ध करता है। जिसके अंतर्गत विवाह को लेकर जाति – उपजाति और धर्म की सोशल इंजीनियरिंग वाली टेक्निक सदियों से लागू है , को प्रदर्शित करते हुए शिक्षित व सफल युवक और युवतियों द्वारा इंसानियत व प्रेम को प्रमुखता प्रदान कर स्व जिंदगी का निर्णय करना आकर्षण का केन्द्र है।

सलीम और रीना की शादी भी किसी फिल्मी पटकथा की तरह है। साफ झलकता है कि मुस्लिमों को आतंक और कट्टर सोच से जुड़ा हुआ एक नजरिए से देखा जाता है। जब कोई मुस्लिम लड़का और हिन्दू लड़की प्रेम और फिर शादी करते हैं , तो उसे लव जिहाद की श्रेणी पर ला खड़ा किया जाता है।

यहाँ यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हर मुस्लिम बुरा नहीं होता। आतंक से रिश्ता प्रत्येक मुस्लिम का नहीं जोड़ा जा सकता है। ऐसी कोशिश बालीवुड में भी मूवी के माध्यम से किया जाता है। जैसे हाल ही में मुल्क भी इसी बात के लिए भी चर्चित है।

इस पटकथा की वजह से पाठक के मन पर सवाल उपजता है कि आखिर इस्लाम धर्म को सही दिखाने के लिए किताब और मूवी तक में इतने जतन इसलिये करने पड़ते हैं कि वैश्विक स्तर पर इस्लामिक नाम से आतंकी संगठन सक्रिय हैं एवं इस्लामिक नाम से आतंकी भी होते हैं , बेशक आतंक का कोई धर्म नहीं होता।

अविनाश और प्रतिभा के जरिए अंतर्जातीय विवाह की सफलता को व्यक्तिगत निर्णय से सफल दिखाया गया है। अंततः सामाजिक पहलू छूट जाता है। प्रतिभा ब्राह्मण जाति से और अविनाश पिछड़े वर्ग से है , दोनों परस्पर सोच से प्रभावित थे। प्रतिभा ने अविनाश के कैरियर के लिए आर्थिक मदद भी खूब की और अंततः आईएएस में सफलता भी अर्जित हुई।

कथानक से साफ संदेश है कि जब व्यक्ति का पद बड़ा हो जाता है , तब उससे जाति धर्म को लेकर सवाल कोई नहीं कर पाता। तमाम सामाजिक पहलू होने के बावजूद रिश्ते को कानूनी जामा पहनाने की बात महसूस कर दोनों सदा सदा के लिए एक हो जाते हैं।

सिर्फ भारत ही नहीं वरन् विदेशी संस्कृति को अमेरिका से समाहित कर , जूलिया नामक किरदार से मातृत्व के अस्तित्व को बल प्रदान किया गया है। जूलिया का प्रेमी उसे बीच मंझधार में छोड़ देता है और प्रेग्नेंट जूलिया अबार्सन नहीं कराती है। बल्कि प्रेमी के दर्द में समय व्यतीत करते प्रसव के लिए निःसंकोच तैयार रहती है।

साफ अंतर दिखाने की कोशिश की गई है कि भारत में किसी भी लड़की द्वारा ऐसा किया जाना असंभव सी बात है। जबकि अमेरिका में व्यक्तिगत जीवन पर कोई टिप्पणी नहीं होती है। यह जूलिया की जिंदगी थी और जो कुछ भी हुआ , उसके बावजूद भी वो माँ बनेगी बिन पिता के बच्चे को पालकर अपने अस्तित्व को जीवंत रखेगी।

इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स का जीवन वर्णन सजीवता लिए हुए है। पढ़ाई के दौरान का संघर्ष व घर से दूर हास्टल का जीवन दर्शन भी सरलता से महसूस होता है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में लड़कों के मुकाबले लड़कियों के कम अनुपात की चिंता और वजह जाहिर की गई है।

जिस प्रकार से देश में भ्रष्टाचार व्याप्त है। वैसे ही किसी भी किताब की तरह युवा मन का दर्द भ्रष्टाचार के प्रति स्पष्ट झलकता है और जिला अस्पताल की गंदगी बता कर भारत की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया गया है।

सफलता की खुशी , प्रेम की विविधता , आर्थिक विषमता और सामाजिक विषय की उपज है। इस उपन्यास की सबसे आकर्षक लाइन का वर्णन होना आवश्यक है , जो हर परिवार व समाज के लिए प्रेरणात्मक है।

” एक कली तभी फूल बनती है , जब उसे सही हवा , पानी और रौशनी मिलती है। ”

किताब अपने उद्देश्य को लेकर सफल है। समाज के हर वर्ग को प्रभावित करेगी। खासतौर से कैरियर हेतु संघर्षरत युवाओं के पढ़ने योग्य है। जिससे भविष्य के लिए बहुत कुछ सीख सकते हैं।

प्रकाशक – Sahitya Sanchay Prakashan.

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