By : Saurabh Dwivedi
पांच सितारा होटल जैसे घरों से प्रेरित करने वाले वीडियो आ रहे हैं। कोई क्रिकेट खेल रहे हैं , कोई मास्क बनाने की तरकीब बता रहे हैं और कोई डांस कर रहे हैं। कुछ लोगों ने गाना भी गा दिया है। ऐसे अनेक प्रेरणात्मक वीडियो कि कैसे समय घर में बिताएं ?
ये जिंदगी उन लोगों की है , जिनकी जिंदगी में समय की कमी हो जाती है। जिनके समय का ₹ मिलता है। जिनके लिए प्रकृति के चौबीस घंटे और तीन सौ पैंसठ दिन कम पड़ जाते हैं। इनके समान स्तर की जिंदगी भारत के कुछ प्रतिशत लोगों की है और उन सभी के लिए घर पर समय बिताने के लिए संभव है कि प्रेरणात्मक वीडियो हैं !
ऐसे प्रेरणात्मक चलचित्र नेशनल न्यूज चैनल से प्रसारित हो रहे हैं और बेशक बहुत से लोगों को समय बिताने के लिए कुछ ऐसे आयडियाज की आवश्यकता होगी।
एक कहावत है कि ” देख पराई चूपरी मत ललचावे जीव ” अर्थात दूसरे की घी – मक्खन से चुपरी हुई रोटी देखकर अपना जी मत ललचाओ अर्थात तुम्हारे पास जितना है , उतने मे सुख से रहो ! यह दर्शन की बात है और यही जीवन दर्शन है।
कोरोना काल मे जैसे महानगर और गांव विभक्त हैं , वैसे ही जिंदगियां भी विभक्त हैं। महानगर के लोगों के लिए गांव के लोगों की चिंता है कि उन सभी महानगर वासियों का जीवन स्वस्थ्य और सुरक्षित रहे। गांव के लोग प्रार्थना करना जानते हैं और प्रार्थना पर विश्वास रखते हैं। उनके पास देने के लिए और करने के लिए कुछ नहीं तो वह सभी के स्वस्थ होने की कामना कर लेते हैं। यह सामूहिक प्रार्थनाएं ब्रह्मांड की शक्तियों को कृपा करने के लिए तैयार कर लेती हैं।
उस कथन पर विश्वास होगा , जिसमें कहा गया है कि ” अगर किसी को सिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात मिलाने में लग जाती है “। और आज भी बहुत से प्रेम करने वाले प्रेमी कायनात पर भरोसा करते हैं। यही असर जीवन में प्रार्थना का है , चूंकि अंत में डाक्टर भी कहते हैं कि अब सब ऊपर वाले की कृपा पर निर्भर है।
ऐसे ही सच है कि गांव , कस्बा , शहर और छोटे-मोटे नगर की तमाम जिंदगियां बगैर कोरोना संक्रमण के ऊपर वाले पर निर्भर हो चुकी हैं। यह एक ऐसा राष्ट्र है , जिसमें अनेकों समस्याएं किसी कोरोना संक्रमण की तरह ही दृश्य – अदृश्य रूप से तमाम जिंदगियों में व्याप्त रही हैं।
कोरोना से जिंदगी बचाने के लिए लाकडाऊन करना पड़ा और आगे यह चार – छः माह चलेगा। संक्रमण मुक्त होने के बाद भी सावधानी बरतनी होगी। संभवतः आवागमन पूर्व से कम होगा और रोजगार पर पहले से अधिक असर पड़ेगा।
भारत के पारिवारिक और सामाजिक जीवन में अनेक वैचारिक संक्रमण पहले से ही व्याप्त हैं। ग्रामीण परिवारों में रोजी-रोटी को लेकर पूर्व से अनेक समस्याएं व्याप्त रही हैं। बुंदेलखण्ड ने पिछले दस – पंद्रह वर्ष से लगातार कम वर्षा – अधिक वर्षा और सूखे जैसे हालात का सामना किया है मतलब है कि प्राकृतिक आपदा व सरकारी आपदा के साथ तमाम सामाजिक आडंबर से जूझती जिंदगियों की अपनी वास्तविक कहानी है !
ऐसे में समय बिताने के नुस्खे एक स्तर पर प्रभावकारी हो सकते हैं और महानगर मे भी ऐसी तमाम जिंदगियां होंगी , जो संघर्षरत होंगी। चूंकि एक हकीकत की कहानी से मुलाकात हुई थी कि ” साहब दीवार अमीरी की जरूर है पर रहता इनके अंदर एक मजबूर गरीब आदमी है ” । ऐसी ही एक कहावत है कि ” नाम बड़े और दर्शन छोटे ? “
इसलिये जिंदगी की सच्चाई संसार की भव्यता से एकदम विपरीत होती है। चूंकि हम सब कहीं ना कहीं आंखो के अंदर आंसू की पर्देदारी कर सांसारिक विचरण करते हैं। सामाजिक संवाद में जिंदगी की हकीकत कोई कभी सामने रख नहीं पाता , चूंकि यह विश्वास सभी को है कि मजाक के पात्र के सिवाय सुपात्र क्यों होगें ?
सभी अपने संघर्ष व्यक्तिगत करते हैं या फिर करोड़ो में कोई एक व्यक्तिगत ( समान ) आत्मा से मुलाकात हुई तो अवश्य आमने-सामने बैठकर संवाद के साथ आंसू छलक जाएं। वैसे ही आत्मीय मिलन और आपसी मदद से बहुत सी जिंदगियों को ईंधन मिलन करता है।
इसलिये समय बिताने की बात के साथ आगे की जिंदगी कैसे बिताएं ? और भविष्य मे जिंदगी के लिए क्या अच्छा होने वाला है ? मसलन रोजगार और व्यवसाय के क्षेत्र में कैसे सफल हुआ जाए , यदि कोरोना से जिंदगी बच जाती है !
कहने का अर्थ है कि कोरोना संक्रमण के साथ जिंदगी की जद्दोजहद और बढ़ी है। भविष्य के प्रति चिंता अधिक हुई है और सरकार सिर्फ भूख मिटाने का संसाधन भर नजर आई है , वह भी पूरी तरह कब और कहाँ व कैसे ? एक बड़ा सामाजिक प्रयास ही भारत को कोरोना से विजय दिलाने में महारथी साबित हो रहा है।
इसलिये अंधकारमय जिंदगी में प्रकाश पुंज अर्पित करने के लिए प्रयास होने चाहिए। लाकडाऊन में जिंदगी कम से कम अवसाद से लाकडाऊन ना हो और जिंदगी में पहले की तरह आशा भरी रहे कि हम भविष्य में पुनः आर्थिक – सामाजिक स्तर पर एक अच्छी जिंदगी जिएंगे।
महसूस करने की बात है कि हमें जीवन के लिए प्रयास करना होगा। जैसे धूपबत्ती अर्पित करते ही मन – मस्तिष्क सुगंध से भर जाता है , वैसी ही सुगंध जीवन मे होनी चाहिए। युवाओं में चेतना स्रोत जागृत होना ही चाहिए , लंबे समय से जिंदगी को केन्द्रित कोई वैचारिक यज्ञ ( यात्रा ) हुआ ही नहीं !
प्रकृति ने यही दर्शन प्रदान किया है कि संवेदनशीलता से जीवन के प्रति सोचें और जिंदगी एक उत्सव की तरह कैसे जिएं ? जिंदगी में उत्सवमय आत्मिक सुख हो इस ओर चिंतन की राह प्रकट हो। जिंदगी में प्रेम – अपनत्व का सुख हो , समस्त सुख – दुख भोगने की यात्रा के साथ जिंदगी उत्सव की तरह जिएं। एक ऐसे जीवन की परिकल्पना हर ओर साकार हो तो आवश्यक है कि हमें जिंदगी के दृष्टिकोण से समान भाव से सोचना चाहिए।
वह जिंदगी पांच सितारा होटल जैसी हो या फिर गांव के कच्चे मकान जैसी हो लेकिन जिंदगी सिर्फ जिंदगी होती है और उसका मन पल भर में बिखरता व मजबूत होता है। अतः महानगर से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर दिए जाने से गांव की जिंदगी खुशहाल होगी और जिस प्रकार से गांव के खेत की फसल से महानगर का पेट भरता है , वैसे ही अब वक्त आ गया है कि गांव की जिंदगी सुख – सुविधा से संपन्न कर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था मजबूत रखी जाए , वैसे भी गांधी दर्शन यही है कि गांव भारत की आत्मा हैं पर इक्कीस हजार करोड़ की योजना दिल्ली के जनपथ में सुंदरीकरण हेतु तैयार की जाती है , जबकि गांव बदसूरत और विकास से अछूत हो !
यह चिंतन का वक्त है और ग्रामीण जीवन से ही महानगर की जिंदगी को खुशहाली मिलेगी। शेष इस वक्त का संदेश यही है कि शासन – प्रशासन और सामाजिक सोच जिंदगी पर केन्द्रित हो।
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