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आचार्य आश्रम चित्रकूट मे स्वामी जी डा. बदरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज राम कथा कह रहे हैं उनके श्रीमुख से राम कथा का एक ऐसा उदाहरण जो जीवन मे उपयोगी तो है लेकिन रामायण और रामचरितमानस के भ्रम को समाप्त करता है।
राम कथा की शुरूआत मे स्वामी जी डा. बदरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज बाल्मीकि रामायण का वर्णन करते हुए कहते हैं कि महर्षि बाल्मीकि जी ने जो रामायण लिखी है वो राम का घर है।
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बाल्मीकि जी ने प्रभु को बिठाने के लिए मंदिर बनाया है। राम का मंदिर राम का घर रामायण है। यह कथन स्वामी जी महाराज के श्रीमुख से हैं , जिसका आत्मीय विश्लेषण करने पर विद्वान कहते हैं कि इससे यह प्रतीत होता है कि राम कभी मंदिर के बगैर नही रहे। चूंकि रामायण को ही उनका मंदिर बताया गया है अर्थात रामायण मे ही राम हैं। रामायण का पाठ करने से प्रभु का धाम हो आना होता है।
इसलिए गौर करने योग्य है कि भौतिक मंदिर बनाने की लड़ाई लड़ते रहे लोग लेकिन राम का धार्मिक आध्यात्मिक मंदिर तो रामायण ही है , इतना सा फर्क जानने से मनुष्य को भौतिक संसार और आध्यात्मिक जगत का अंतर पता चल जाता है।
राम कथा मे स्वामी जी डा. बदरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज रामचरितमानस का वर्णन करते हुए कहते हैं कि राम जन जन तक पहुंचे इसलिए गोस्वामी जी ने रामचरितमानस लिखा।
वो जन जन कौन हैं ? तो कहते हैं कि निषाद के पास भी , असुरों के पास भी और महात्माओं के पास भी तो राम केवल मंदिर मे नही हमारे आपके पास मानस पटल मे बैठे जाने वाले राम कि चरित्र शुद्ध हो जाए तो राम की प्राप्ति जीवन मे हो जाए।
यह सुनते ही मेरे मानसिक पटल पर प्रभु कृपा से दर्पण की धूल जैसे हट गई और स्पष्ट दिखने लगा कि स्वामी जी कह रहे हैं कि चरित्र शुद्ध हो जाए अर्थात अशुद्ध चरित्र वालों को राम नही मिल सकते इसलिए पहले मनुष्य को चरित्र शुद्ध करने की ओर ध्यान लगाना चाहिए और रामचरितमानस हो या रामायण जिस मर्यादा की ओर संकेतित करते हैं वह मनुष्य के जीवन मे होती तो हर किसी के मन मे राम होते।
जिस प्रकार से स्वामी जी डा. बदरी प्रपन्नाचार्य जी महाराज कहते हैं कि राम सबके मानस पटल पर रहें तो कहने का मतलब है कि राम भेदभाव नही मानते इसलिए समाज भेदभाव रहित होना चाहिए।
रामचरितमानस का वर्णन करते हुए कहते हैं कि करुणा को प्रदान करने वाला ग्रंथ है। इसलिए इस ग्रंथ का इतना प्रचार प्रसार है। घर घर मे लोग पढ़ रहे हैं। मानस इसकी कीर्ति है ग्रंथ प्रसिद्ध इसलिए है क्योंकि ये जन जन के बीच पहुंच रहा है।
जो सबके हित का काम करता है प्रसिद्ध तो वही होता है। नदी से इसका उदाहरण देते हैं कि नदियां कितनी हैं संसार मे लेकिन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कौन है ? जवाब है गंगा।
गंगा संपूर्ण जगत मे हित का काम करती है ऐसा ही ये ग्रंथ है। जिसका जीवन परोपकार मे लगा हुआ है उसी का जीवन सार्थक है। इसलिए एक विश्लेषण यह है कि नारी हो या पुरूष परोपकार मे जीवन को लगा दे उसी की कीर्ति होगी और चाहें तो इतिहास के पन्ने पलट कर देख लें जिसने परोपकार मे जीवन व्यतीत किया वही प्रसिद्ध हुआ है और वही समृद्ध रहा है।
इसलिए कथा सुनना महत्वपूर्ण है कि संत के श्रीमुख से दिव्य वाणी हृदय तक पहुंचती है जो जीवन मे आवश्यक परिवर्तन ला देती है जैसे रामायण और रामचरितमानस के महत्व अलग-अलग है और दोनों का उतना ही महत्व भी है।
अतः जीवन को सार्थक करने के लिए आर्थिक विकास के साथ उससे अधिक महत्वपूर्ण है आध्यात्मिक विकास और परोपकार से जीवन सार्थक हो जाएगा।