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लोकतंत्र मे सेवा और सेवक का महत्व है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद को प्रधान सेवक कहते हैं और वो ऐसे ही नेता को पसंद करते हैं जो भावनाओं से सेवक हो। जनता का सेवक बनकर सेवा की जा सकती है तो लोकसभा चुनाव से पूर्व सेवा धर्म पर बड़ी बहस शुरू हुई है।
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इस संबंध मे भाजपा नेता रामदयाल त्रिपाठी कहते हैं कि मेरे जीवन के शुरूआती दिन संत समाज से ही शुरू हुए। प्रख्यात तांत्रिक चंद्रास्वामी के साथ रहने का सौभाग्य मिला। उनके साथ रहकर एक संत की साधना को करीब से देखा इसके बाद संत समाज के साथ मन रमता गया। जैसे अखाड़ा परिषद के महामण्डलेश्वर रवीन्द्रपुरी जी एवं आगे की यात्रा में स्वामी विशेश्वरानंद जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ।
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मैं रमता जोगी बहता पानी की तरह संत समाज के साथ बहने लगा तो योग गुरु बाबा रामदेव के साथ भी खूब समय व्यतीत हुआ और अभी जब राम मंदिर का उद्घाटन हुआ तो महामण्डलेश्वर से लेकर अनेक संत की सेवा करने का अवसर मिला। संत समाज के साथ रहने से मनुष्य बने रहते हैं चूंकि उनके प्रवचन सुनने को मिलते हैं और मैं संत समाज के विश्वास और आशीर्वाद से जीवन यात्रा तय कर रहा हूं।
मुझे संत समाज से यही सीख मिली कि जीवन मे किसी भी पद पर रहें लेकिन मद नही होना चाहिए। संत समाज की कृपा से मुझ मे रत्ती भर घमंड नही आया। जन जन का सम्मान और सेवा करना जीवन का लक्ष्य हो गया।
मुझे शुरूआती दिनो मे ही अनेक प्रधानमंत्री के आसपास रहने का अवसर मिला। जैसे पीवी नरसिम्हा राव जैसे प्रधानमंत्री के आवास मे रहने का अवसर मिला। तो वहां से बहुत कुछ सीखने के लिए मिला और वहीं से मन मे जनसेवा करने की आकाँक्षा जगी।
इसलिए मुझे अवसर मिलेगा तो जनता के कष्ट वैसे ही दूर करने का प्रयास करूंगा जैसे रामराज्य मे जनता के पास कोई कष्ट नही था। स्थानीय स्तर पर जनसेवा करने से ही रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है और यह सब संत कृपा से एक दिन संभव होगा तभी वास्तव मे रामराज्य स्थापित होगा।