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@Saurabh Dwivedi

समाज के सबसे संवेदनशील मुद्दे पर एक जज ने हाल ही मे सबसे बड़ी बात कही कि ऐसे बलात्कारी दरिंदे समाज मे रहने योग्य नहीं हैं। उन्होंने फैसला देते हुए कहा कि मृत्यु तक कारावास मे रखा जाए , यह एक स्पष्ट और प्रेरक निर्णय था। जहाँ एक ओर बलात्कारियों का एनकाउंटर हो चुका हो और निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया जा चुका है वहीं दरिंदगी की सुपरफास्ट रफ्तार थम नहीं रही। हाल ही मे एक किस्सा करीब से जानने को मिला कि इस तरह भी बलात्कार होते हैं।

यह वो दौर नहीं है जब बेटों को हर लड़की बहन के रूप मे बताई जाती थी। बल्कि अब गर्ल फ्रेंड – ब्वाय फ्रेंड का दौर आ चुका है। बच्चे अब नमस्ते और प्रणाम की जगह टाटा – बाय करने लगे हैं। बचपन से ही उनमे गर्ल फ्रेंड की ख्वाहिश भर दी जाती है।

हाल ही मे बलात्कार के प्रकरण चर्चा का विषय रहे हैं। जिसमे जातिवाद भी एक मुख्य मुद्दा बनकर उभरा , जहाँ इस देश मे धर्म के आधार पर शांति बनाए रखने के तमाम प्रयास किए जाते हैं वहीं ऊंची जाति – नीची जाति के मामलों पर बड़ा से बड़ा समाचार संस्थान खुलकर लिखता है , भले कोई एक मुद्दा दो परिवारों व अपराध – अपराधी के बीच का हो परंतु जातीय जहर घोलकर प्रताड़ना का खेल निर्दोषों के साथ भी जारी रहता है।

वह किस्सा इस प्रकार है कि गर्ल फ्रेंड – ब्वाय फ्रेंड के समय में एक लड़का अपने तीन – चार दोस्तों के साथ शराब पीने लगता है। और शराब के नशे मे चारो आपस मे गर्ल फ्रेंड होने ना होने की बातें करने लगते हैं।

उनमे से एक लड़का कहता है कि मेरी गर्लफ्रेंड है। वो मुझे बहुत प्यार करती है। उसके दोस्त कहते हैं कि क्या वह तुम्हारे बुलाने से खेत तक आ जाएगी ? स्वघोषित प्रेमी लड़का हाँ मे जवाब देता है।

अब तीनों लड़को के दिल – दिमाग मे फितूर छाने लगता है। उन्होंने कहा कि क्यों ना आज शराब और सेक्स का मजा लिया जाए। वे तीनों भी लड़की के साथ सेक्स करना चाहते थे , एक ऐसी लड़की से जिसे पता ही नहीं कि उसके साथ क्या घटने वाला है !

उन तीनों लड़को का दोस्त लड़की को एक शर्त पर बुलाने को राजी हो जाता है। वह कहता है कि पहले मैं सेक्स करूंगा फिर कुछ देर मे तुम लोग चुपके से आ जाना , तब लड़की को दबाव मे लेकर तुम तीनों भी उसके साथ सेक्स करना !

ठीक ऐसा ही हुआ। योजना के मुताबिक पर सबकुछ ठीक नहीं हो पाया। हुआ ऐसा कि पहले उसके ब्वाय फ्रेंड ने सेक्स किया और जब वो लोग आ गए तो लड़की को दबाव मे लिया गया कि अगर तुम हमारे साथ नहीं करोगी तो बात तुम्हारे घर तक पहुंच जाएगी।

लड़की दबाव मे तैयार हो जाती है। उस कथित प्रेमी का सबसे खास दोस्त लड़की के साथ सेक्स करता है , फिर दूसरा जब सेक्स करता है तो लड़की बेहोश हो जाती है। वजह यह थी कि वो लड़की महज 15 – 16 वर्ष के लगभग थी। इतनी कम उम्र की लड़की के साथ जब बेरहमी से दूसरी और तीसरी बार सेक्स किया गया तो वह लथपथ होकर बेहोशी की हालत मे पहुंच गई।

किन्तु चौथा भी कहाँ मानने वाला था ? उसने बेहोशी की हालत मे लड़की के साथ सेक्स किया। इस तरह लड़की की हालत एकदम खराब हो गई। वह बेहोशी की हालत मे खेत पर पड़ी रही और लड़के छोड़कर घर की ओर भाग लिए।

जब लड़की देर शाम तक घर नहीं पहुंची तो गरीब घर के माता-पिता परेशान हुए। जब लड़की घर पहुंची तो माता-पिता को बलात्कार होने की भनक लग चुकी थी।

लड़के प्रभावशाली घर के थे। लड़की गरीब घर की थी। लड़की के घर वाले चौकी रिपोर्ट करने पहुंचते हैं परंतु चौकी से तत्काल सख्त कार्रवाई ना होने पर आरोपी लड़कों और परिवार को बचने का मौका मिल जाता है। उन्होंने लड़की के परिवार से बातचीत की , प्रभावशाली परिवार के लोगों ने गरीब परिवार को कुछ दो लाख रुपये मे एफआईआर ना करने के लिए मना लिया था।

थानों से जिस लापरवाही की बात सुनी जाती है। असल मे वह लापरवाही शायद ही बिन पैसों के लेन देन के हो ! तो बलात्कार के इस किस्से मे कानून और संविधान का भी सांकेतिक बलात्कार हो जाता है। यह पता लगता है कि चौकी मे पचास हजार और कोतवाली मे एक लाख की रकम पहुंचा दी गई थी। और इधर परिवार भी पैसा ले चुका था। तो मामला रफा-दफा ही समझा जा रहा था।

किन्तु दर्दनाक किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। राजनीति की एंट्री और चुनावी भूमिका बलात्कार की इस चीत्कार को एक और निर्भया के शोर – शराबे की ओर ला खड़ा करती है। एक विरोधी पक्ष सक्रिय हुआ और उसने गरीब परिवार को अधिक धन दिलाने की लालच दी। उनकी राजनीति से प्रेरित होकर गरीब परिवार फिर सक्रिय होता है। चूंकि हाथरस जैसे मामले पर राजनीति और पैसे की बरसात को वह भी करीब से देख रहे थे।

इस तरह मामला पुनः गरमा जाता है और प्रशासन समझने मे देर नहीं करता कि अब कुछ भी हो सकता है। कहीं यह गांव भी एक और हाथरस ना बने तो कुछ जिम्मेदारों को निलंबित कर कड़ा संदेश दिया जाता है और निलंबन कर कठोर दंड देने की बात हुई। तत्काल आरोपी लड़कों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

सच है कि इस किस्से मे कम उम्र की नादान लड़की का बलात्कार किया गया , चार लड़कों द्वारा। परंतु एक परिवार की जिम्मेदारी का किस्सा भी है ये , चूंकि लड़की को पता चल चुका था कि उसके पिता ने उसकी इज्जत का सौदा कर लिया है। गांवदारी के दबाव मे आकर वह शांत हो चुका है। यह भी एक बड़ा कारण बना कि लड़की ने मर जाना स्वीकार किया और वह एक दिन मर गई।

लड़की के मरते ही पुलिस की कार्रवाई होने के साथ विपक्षी नेताओं की राजनीति फिर गरमा गई। कुछ इस तरह जैसे कि एक बड़े अखबार के संपादकीय पर इक्कीसवीं सदी मे भी ऊंची जाति का नीची जाति को दबंगई के द्वारा प्रताड़ित करना लिखा गया है। बड़ा सरल है अपराध के मामले मे जातीय जहर का घोलना परंतु दोहरा रवैया क्यों ? फिर धार्मिक आधार पर भी यही पैमाना होना चाहिए।

समाज को समझना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं ? राजनीति को समझना चाहिए कि वह कैसे समाज का निर्माण कर रही है ? परिवार को जरा ठहरकर सोचना होगा कि बच्चों को जन्म देना ही पर्याप्त है ? बलात्कार के प्रत्येक प्रकरण में लोकतंत्र के समस्त मजबूत खंभे जितने जिम्मेदार हैं उतना ही जिम्मेदार परिवार भी है ! आधुनिकीकरण के इस दौर में सूचनाएं भी शीघ्र मिल जाती हैं इसलिए भी बलात्कार के प्रकरण सामने आ पाते हैं। वक्त अभी भी है कि लोकतांत्रिक राष्ट्र – समाज , परिवार और राजनीति को गहन विमर्श करना चाहिए जिससे बलात्कार के मामलो मे नियंत्रण किया जा सके।

इस किस्से का संबंध किसी भी घटना से वैसे ही नहीं है जैसे हर सच्ची कहानी काल्पनिक होती है और हर झूठ मे एक सच छिपा होता है , कोई ना कोई घटना हर घटना के जैसी ही होती है। इसलिए किसी भी किस्से से संबंधित होने पर हमारी जिम्मेदारी नहीं है। बलात्कार की घटना सच्ची हो या झूठी हो जिम्मेदार सभी हैं भले इसमे कितनी भी राजनीति हो जाए पर एक समाधान समाज और संस्कार ही प्रदान कर सकते हैं , बेशक कानून मुस्तैदी से काम करे तो सचमुच घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।
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