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By – Saurabh Dwivedi

एक कोमल पुष्प जो खिलना चाहता था। खिलकर अपनी खुश्बू हवा में मिश्रित कर सांसारिक प्राणियों के मन – मस्तिष्क को सुगंधित कर देना चाहता था। अधखिला पुष्प स्वयं खिलने तक भी यही इच्छा रखता था। उसे देखने वाले की नजरें सुंदरता को दूर से ही देखकर सुख महसूस करें। समीप आकर स्वयं को सुख से आत्मसात कर लें। वो पुष्प इसी चाहत में पूर्ण खिलने हेतु सूरज की किरणों का इंतजार करता।

सूरज उस पुष्प के लिए एक पिता की तरह है। सूर्य के संरक्षण में पूर्ण खिल जाने का विश्वास था। किन्तु बदली के चलते सूरज की किरणें पुष्प तक पहुंच नहीं पातीं। वो पुष्प सुबह होने के साथ सूरज की किरणों का ही इंतजार कर रहा था। उस रोज ना सूरज उग सका और ना पुष्प को किरणें प्राप्त हो सकीं। इसी तरह सांझ ढल गई फिर अगली सुबह तक के लिए इंतजार बढ़ गया।

एक रोज सूरज ने पुष्प से कहा कि ” तुम चिंता मत करो , मैं तुम्हे मजबूत कर दूंगा ” । पुष्प के इतना सुनते ही उसकी कलियां खिली – खिली सी महसूस करने लगीं। उसका मस्तक उम्मीद से तरोताजा महसूस करने लगा। हृदय पुलकित हो उठा। धड़कने मधुर संगीत की गूंज से गुंजायमान होने लगीं , हाँ जिंदगी संगीत की धुन की तरह महसूस होने लगी।

आखिर एक कोमल पुष्प को पिता सूरज ने पल भर में जीवन भर की खुशियां प्रदान करने जैसा वाक्य कह दिया था। उस एक पल में पुष्प मजबूत हो चुका था। वह आनंदित हो मोर की भांति नृत्य करना चाहता था। वास्तव में मन ही मन नृत्य कर ही लिया था। उस पुष्प को बदली का भय नहीं रह गया था।

चूंकि पुष्प के साथ आदियोगी सूरज के संरक्षण का विश्वास हो चुका था। सूर्य के साथ महसूस होने से पुष्प स्वयं ही पोषित हो चुका था। वो पुष्प सुख पूर्वक सोचने लगा कि अब जीवन का सफर उम्मीद के मुताबिक उत्तम होगा। जैसा मैंने सोचा था कि खुश्बू बनकर महक जाऊंगा , स्वयं आनंदित हो हवा से मिश्रित होकर हर मिलने वाले को स्पर्श कर आनंदित कर जाऊंगा।

उस पुष्प ने संसार को बगिया सा खूबसूरत बनाने की परिकल्पना कर ली थी। अर्थात उसके प्रयास जारी थे। किन्तु बदली , असहनीय गर्मी और बदलते मौसम पर प्राकृतिक आपदा से कुछ अड़चने आ जाती थीं। जिससे पुष्प हताश हो जाता। किन्तु जीवन रहते वह प्रयास करता। कमी महसूस करता सूरज की , जब सूरज ने कह दिया वो पल ही पुष्प के लिए संजीवनी हो गया।

बेशक ऐसा हो कि सूरज अपनी कही बात का पालन ना कर पाए अथवा ना करे। विस्मृत हो जाए। या फिर वो बदलते मौसम की तरह , किसी कारण से सूर्य एक बार फिर ना कर पाए। किन्तु वह एक पल और जुबान पुत्र – पुष्प के लिए अविस्मरणीय पल था। जैसे एक पिता ने संकट में पड़े पुत्र को संकट से निकालने के लिए और जीवन को साकार करने के लिए वादा किया था। चूंकि पुष्प ऐसे ही सूरज की किरणों से खिलता है।

ऐसे वादे , ऐसे वाक्य मानव जीवन पर सूर्य की किरणों और पुष्प पर पड़ने वाले प्रभाव की तरह काम करते हैं। पिता – पुत्र के रिश्ते में ऐसा ही रिश्ता होता है। बेशक जिंदगी में मौसम की तरह बहुत कुछ बदलता है , संकट आते हैं परंतु सिर्फ एक वाक्य काफी होता है कि ” मैं तुम्हे मजबूत कर दूंगा ” ! ये शब्दों की ताकत है , समय का व्यवहार है। मानव मन पुष्प की तरह ही होता है और देह कलियों की तरह , हृदय पुष्प का मध्य भाग अर्थात अंतस। जिंदगी महकती है यदि सूरज – पुष्प का ख्याल रखे। किन्तु यह भी सत्य है कि अनाथ भी इस दुनिया में जिंदगी को साकार करते हैं और शख्सियत बनते हैं।

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