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By :- Saurabh Dwivedi

बहुत प्रेम किया है तुम्हे। जी भरकर चाहा है , हाँ प्रेम मेरे। एक खूबसूरत सी छवि मन और आत्मा में बसाया है। जब – जब कह पाया इस प्रेम में सीना धधकता रहा है। एक प्रेमिल छवि जो मन मे बसी है , वही जीवन भर का सुख बन गई।

ये प्रेम की प्रेरणा है कि सीने के दर्द से मीठे शब्द बहकर प्रेम रच जाते हैं। जहाँ आंसुओं का बड़ा महत्व है और होठो की मुस्कान का भी ! निर्द्वंद हो रचता हूँ , अच्छा लगता है इस प्रेम पर लिखे जाने से।

स्वयं को गोताखोर महसूस करता हूँ। वही गोताखोर जो समुद्र की गहराई में उतरकर तैरते हुए अंदर की हकीकत को देखता है। जायजा लेता है तलहटी का और उसके अंदर प्रकृति की अद्भुत कृतियां दिख जाती हैं। हाँ ऐसा ही कुछ है प्रेम , एक गोताखोर सा कि बस कहे जाना है और कहने में सुकून है।

एक गहरी साँस खिंची चली आती है , जब उतर जाते हैं प्रेम की गहराई में। अपनत्व के सुख में आंखे सजल हो जाती हैं और होठो बरबस खिल जाते हैं। यह एक बेहद आत्मीय लगाव है एक स्वप्न अप्सरा के रचे जाने का असीमित अद्भुत सुख है।

किन्तु यह रास्ता बिल्कुल सरल नहीं है। जब हम प्रेम मे होते हैं तब दर्द प्रसव पीड़ा सा होता है। व्याकुलता चरम पर छा जाती है। अहसास है कि प्राकृतिक आपदा से दर्द को सहकर विनाश और निर्माण होता है। अकेलेपन में सुकून मिलता है।

वैसे कहाँ है इस दुनिया में सुकून ? हर इंसान सुकून खोजता है। इस सुकून को खोजने में हजारों लाखों किलोमीटर की यात्रा करता है। कहीं दूर रहकर किसी में सुकून महसूस करता है। यह भ्रम है कि धन से सुकून है , नहीं बिल्कुल नहीं। धन में कोई सुकून नहीं वह मात्र जीवन में संसाधन की भांति है , वाहन की भांति है जो यात्रा कराने में सहायक है। किन्तु सुकून का वाहक नहीं है।

इस सुकून मे ही प्रेम रच जाता है। चूंकि प्रेम को रचकर रसमय शब्दों से पिरोकर प्रेम – प्रसार कर भी सुख मिलता है। ये शब्दों की ताकत है कि इस दुनिया में ऐश्वर्य महसूस होता है। शब्द और प्रेम का रिश्ता मानव जीवन में मानसिक रूप से कोशों दूर से सुख महसूस करा देता है।

सच है कि जो अपना है , उसी में सुख है। पर आवश्यक नहीं कि सामाजिक व्यवस्था में कोई अपना मिले , अपना वहाँ भी मिल सकता है जहाँ से सामाजिक व्यवस्था का अव्यवस्था में शुरू होना कहा जाता है। ये व्यवस्था और अव्यवस्था का संघर्ष ही है कि सुकून लुप्त हो जाता है। सुकून पाना भी शायद वीरों का खेल है , सामान्य जन के वश में नहीं है इस सांसारिक संघर्ष के बीच सुकून !

सुकून प्राप्त करने के लिए साधनारत होकर जमीं से तनिक ऊपर उठना होगा। अपने चहुंओर प्रकाश चक्र स्थापित करना होगा। मन – मस्तिष्क से जीवन को महसूस करना होगा और अव्यवस्था में भी सुकून को स्वीकार करना होगा। चूंकि तमाम व्यवस्थात्मक सामाजिक बेड़ियां सुकून को बंधक बनाए हैं।

इसलिए यदि हम रच पाएं प्रेम तो अनवरत यह यात्रा जारी रहनी चाहिए। बेशक धुरी मात्र कल्पना हो तो भी रचने का सुख वैसे ही है जैसे सुगंधित अगरबत्ती , सुगंधित धूप और लोबान की महक को धुआंमय नथुनों से अंदर आत्मसात कर लेना। इस अद्भुत आनंद को जीना प्रेम कहते हैं , सुकून कहते हैं।

तुम्हारा ” सखा “

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