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धर्म नगरी चित्रकूट मे वृंदावन से पधारे श्री श्री 1008 राजेन्द्र दास देवाचार्य महराज कथा सुना रहे हैं। श्रीमद् रामकथा का श्रवण करने श्रद्धालू खूब संख्या मे पहुंच रहे हैं। यह बड़ा प्रमाण है लोगो के मन मे परमात्मा के प्रति आस्था का और भक्ति का साक्षात दर्शन है।

पहले , दूसरे , तीसरे और चौथे दिन की कथा मे कथाव्यास श्री 1008 राजेन्द्र दास देवाचार्य महराज ने जन जन को प्रभु की भक्ति मे एक पल का महत्व बताया। एक श्वांस का महत्व का अहसास कराया कि कैसे प्रत्येक श्वांस से प्रभु का नाम स्मरण मात्र करने से कलयुग मे पाप नष्ट हो जाते हैं। कष्ट कट जाते हैं।

सचमुच ईश्वर मन , प्राण और बुद्धि मे र जाएं और राम समाहित हो जाएं फिर मनुष्य को लगेगा कि वह जिस हेतु आया वह सब साकार होने लगा है। आनंदमय जीवन बगैर ईश्वरीय कृपा के संभव ही नही।

इंसान अधिक से अधिक धन संपदा मात्र से हमेशा कभी खुश नही रहता अपितु यह सब प्राप्त होने के बावजूद प्राण मे राम नाम के बसने से आनंदित होकर जीव जीने लगता है।

प्रभु की सेवा करना ही भक्ति है। मानवता के मार्ग पर चलना भक्ति मार्ग पर चलना है। ज्ञान मार्ग प्रभु का सदैव स्मरण करने मात्र से शुरू हो जाता है और कर्म मार्ग के लिए श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता कही। कलयुग मे कर्म का महत्व है और उसी अनुसार परिणाम समय पर मिलता है।

आज के समय मे अकेलापन लोगों को परेशान कर रहा है। युवा अवसाद के शिकार हो रहे हैं चूंकि ईश्वर के मार्ग से लोग विमुख हो रहे हैं इसलिए समय पर उन्हें ईश्वरीय तरंग स्पर्श नही कर पातीं कि प्रतिकूल परिस्थित मे संभल सकें। यह ब्रह्मांड और ब्रह्मांड की शक्तियाँ सभी आनंदित जीवन प्रदान करने के लिए स्वयंमेव काम कर रही हैं परंतु इनसे सरल सहज संबंध बनाना होगा। इसलिए समस्त कथा का सार कलयुग मे नाम आधारा है।

लोग अधीर हो चुके हैं। धैर्य की विशेष कमी है और मानसिक शांति की कमी है। इसलिए उन्होंने कहा हर समय हर श्वांस से तन मन और प्राण मे भगवान राम भगवान श्रीकृष्ण के नाम का स्मरण होता रहे।

” हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।”
” हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।”

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