By – vineeta pandey
समाज के उन भावुक लोगों की जय हो जिन्होंने माँ के एक दिवस की स्थापना की वैसे तो कम से कम वयस्क होने तक जीवन का प्रत्येक दिवस माँ पर ही आधारित होता है ।मैं धन्य कहती हूँ इस फेसबुक की परम्परा को जिसमें सुंदर भावनाओं का आदान -प्रदान प्रचुरता से होते हुए एक सह्रदय समाज की उत्पत्ति में सहायक होता है ।
कुछ ऐसी ही माँ के प्रति अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने का मेरा भी मन उद्वेलित हुआ । माँ पर सोचने बैठी तो सोचो और कल्पनाओं में ही डूबती चली गई फिर सोचा इन कल्पनाओं को शब्दों में उतारुँ ….परंतु अफसोस कि मैं स्वयं को असमर्थ पा रहीं हूँ …….इतनी बृहद और असीम कल्पनाएं उमड़ी कि पता ही नहीं चला कि कहाँ से प्रस्तावना करूं और कहाँ से उपसंहार ।
अंत में बस इतना ही कहूँगी कि उस पर क्या लिखूँ और कैसे लिखूँ जिस पर मेरा ही अस्तित्व टिका है ।
धीरे धीरे कमजोर और असहाय होती जा रही माँ आज भी हमारी शक्ति है ….माँ के मुँह से निकलती एक दुआ आज भी ऐसे प्रतीत होती है ,जैसे हमारी ऊर्जा का वास्तविक स्रोत है ।अत: मातृत्व दिवस पर मैं सिर्फ यही कहूँगी कि मातृऋण से मुक्त होने की क्षमता हममें नहीं हैं …….
अत: सम्मान और यथाशक्ति सहयोग देकर माँ से हमेशा आशीष लेते रहें हैं ।