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यौवन की यह नवीनता और ताजगी, उम्र से बिलकुल नहीं आती, साथी कैसा है इससे आती है

ख़लील जिब्रान की एक कहानी है, ‘शरीर और आत्मा’।
कहानी कुछ इस तरह है कि एक पुरुष-स्त्री साथ सट कर बैठे हुए बसंत का आनंद ले रहे होते हैं। स्त्री कहती है, “मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम सुंदर हो, तुम्हारे पास धन-दौलत है और तुम अच्छे-अच्छे कपड़ों में हमेशा सजे-धजे भी रहते हो।”


पुरुष कहता है,”मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ।तुम एक सुंदर कल्पना हो।एक ऐसी महीन चीज़ जिसे हाथ से नहीं पकड़ा जा सकता।तुम मेरे सपनों में झाँकने वाला एक मीठा-सा संगीत हो।”
लेकिन यह क्या था, इसके बाद तो वह स्त्री ग़ुस्से से अपना मुँह फेर लेती है, और कहती है, “रहने दो! मैं कोई कल्पना नहीं हूँ। तुम्हारे सपने में आने-जाने वाली कोई वस्तु नहीं हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे अपनी पत्नी और अपने बच्चों के माँ के रूप में स्वीकार करो!”
इसके बाद दोनों अलग हो गए।लेकिन कहानी का अंत देखिए, पुरुष जहाँ कहता है, “फिर एक सपना हक़ीक़त में तब्दील होने से रह गया।”

यहाँ मैं सोचती हूँ कि ख़लील जिब्रान जिन्होंने अपने जीवन में कभी शादी नहीं की क्योंकि वह पाखंड के ख़िलाफ़ थे।मगर प्रेम में इंसान, एक लेखक, विचारक कह लें, वह तो शादी नामक पाखंड अपनाने को एक मर्तबा तैयार भी हो जाए लेकिन प्रेमी/प्रेमिका को पाने के लिए ऐसी स्थितियाँ तो बनें! जैसे ख़लील ने सलमा करीमी से विवाह करने के यत्न किए थे लेकिन चर्च के बिशप ने अपने एक स्वार्थ में ऐसा होने न दिया था। बिशप तथाकथित ईश्वर को जानता था मगर उसके अस्तित्व की एक मात्र चीज़ ‘प्रेम’ को नहीं जानता-पहचानता था।

ख़ैर ‘शरीर और आत्मा’ कहानी में यह कितना स्पष्ट है कि देह से परे एक साथी चाहिए जिसकी आत्मा यानी जिसके अंतःकरण से आपका अंतःकरण जुड़ सके।फिर कोई कंडीशनिंग नहीं!

एक साथ मैदान की घास पर लेट कर आसमान को देख कर बेवक़ूफ़ियों से भरी बातें कर सकें।किसने किसका घर बनाया और किसने किसका घर तोड़ा इसके कोसों दूर, बहुत दूर जा सकें!


मगर कंडीशनिंग इतनी हावी है कि यह सब एक कल्पना ही तो लगता है! एक रिश्ता बनता है, एक रिश्ता टूटता है। हो सकता है जिसे हम टूटना कह रहे हैं वह भी कुछ बना रहा हो।
मर्लिन और मिलर को पढ़ रही हूँ इन दिनों।मिलर द्वारा मर्लिन को कहा गया एक वाक्य यहाँ कौंध रहा है कि, ‘मर्लिन! तुम्हारे यौवन में एक नवीनता और ताजगी है।’ और यह उस साल की बात है जब मर्लिन तीस वर्ष की थी।

यौवन की यह नवीनता और ताजगी, उम्र से बिलकुल नहीं आती, साथी कैसा है इससे आती है। मिलर लेखक था, और एक दिलचस्प शख़्स।
ख़ैर, उनका क़िस्सा किसी और पोस्ट या लेख में। फ़िलवक़्त, ख़लील का अर्थ बक़ौल नफ़ीस आफ़रीदी – चुना हुआ दोस्त।

Shobha Akshar

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