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By :- Saurabh Dwivedi

हाँ मैं शराबी अर्थात एक शराबी ! कहूंगा शराब तो शराब होती है , वो अवैध और वैध नहीं होती। शराब का दर्द है कि इन मनुष्यों ने मुझे वैध और अवैध बना दिया। मैं शराब मासूमियत से बोतल में रहती हूँ , मैं हिलती भी तब हूँ जब तुम इंसान बोतल पकड हिलाते हो तो मैं हिल जाती हूँ !

मैं डुलती भी तब हूँ जब तुम मनुष्य छुपाने के उद्देश्य से बड़ी तेजी से कहीं करीने से छुपा देते हो , वो बाईक का बैग हो अथवा पैंट की लंबी जेब हो या फिर आधुनिक युग में स्कूटी के सीट के नीचे बनी हुई जगह ! तो मेरे हिलने – डुलने और शांत रहने तक की बात समझ गई होगी।

जानते हो वो पुलिस वाला जो मुझे अवैध शराब कहता है। शाम को ड्यूटी के बाद उसी अवैध शराब को मुहब्बत से गटक लेता है। मेरे ही नशे में निजी जिंदगी के दर्द को भुलाने की बात करता है और तो और दारोगा का सताया हवलदार मेरे नशे में अपशब्द उगलता हुआ मन को हल्का कर लेता है। चूंकि वो दारोगा को वैसे कुछ कह नहीं कह सकता , ये मेरी ताकत है !

मैं सोमरस नाम से पुकारी जाती रही और देवतुल्य लोगों ने श्रद्धाभाव से मेरा रसपान कर जिंदगी का लुत्फ उठाया। उनसे पूंछो कि सोमरस क्या होता है ? सोमरस के इंसानी स्वास्थ्य में क्या लाभ हैं ? वो जिंदगी को रूमानी कैसे कर देती है। पल भर को ही सही मेरे नशे में रूहानी मुलाकात स्वयं से स्वयं मे हो जाती है जो बिन मेरे नशे के शायद ही कोई मनुष्य स्वयं से स्वयं की मुलाकात कर पाता हो।

समस्या मैं नहीं ! समस्या तुम मे है , तुम हो। चूंकि मुझे बर्बाद करने वाले तुम मनुष्य हो तब मैं बदनाम हुई और जो बर्बाद हो , वो बदनाम होगी ही ! वैसे भी मेरा जेंडर फीमेल है और जब दारू कहलाती हूँ तब ना फीमेल का पता चलता और ना मेल का बस बेमेल हूँ।

मुझ पर केमिकल मिक्स करने वाली मैं नहीं तुम हो। मुझे नुकसानदेह बनाने वाले मनुष्य हैं। शराब तो शराब है बेतरीके से आवश्यकता से अधिक पानी भी पी लो तो तात्कालिक क्षणिक नुकसान स्वयं समझ आने लगता है। कम से कम पेट तो फूल जाता है। हल्का दर्द महसूस होता।

मैं अट्टहास करती हूँ तुम पर , तुम्हारी सरकार पर जो मुझे प्रतिबंधित करती हैं और करने की बात करती हैं। पूर्ण ईमानदारी से कहती हूँ कि तुम्हारी सरकारों से मैं अच्छी हूँ , सर्वोत्तम हूँ।

जानते हो अगर तुम्हारी सरकारें अच्छी होतीं , तुम्हारा समाज वास्तव में आदर्शवादी होती तो भला मेरा अस्तित्व क्या होता ? मैं सोमरस होती नाकि शराब या जहरीली शराब होती। मुझे तुम पीते हो तो वजह तुम्हारी सरकार होती है , मेरा नशा उतर जाता है पर सरकार का दिया दर्द मरते दम तक नहीं उतरता है।

तुम्हारी सरकारों ने तुम्हारे लिए वो काम नहीं किया , जिससे तुम मेरा पान ना करो ! तुम्हारे घर – परिवार और रिश्तों में वो प्रेमरस और विश्वास नहीं पनप सका कि मेरा पान ना करो ! समाज में जीवन के लिए सहज स्वतंत्रता इतनी नहीं रही कि मेरा पान ना करो ! नहीं करोगे तो कुछ और करोगे पर करते जरूर हो जो अवैध होता है , अपराध होता है।

यदि ये सरकारें समाज में अच्छा माहौल प्रदान करतीं और बुजुर्ग तुम्हारे प्रेम को महसूस कर प्रेम से जीवन जीने की कल्पना को साकार करते तो राम का रामू मुझे ( शराब ) को हाथ ना लगाता !

अच्छा अब ये सरकारें तुम्हे बरगलाने के लिए मुझ पर प्रतिबंध की बात करती हैं। कहीं – कहीं मैं प्रतिबंधित हो चुकी हूँ। जैसे बापू के गुजरात में सरकारी रूप से प्रतिबंधित हूँ तो ड्रग्स जगह बना रहा है। अब ड्रग्स खतरनाक है कि मैं शराब ? बिहार में सुशासन बाबू ने प्रतिबंधित कर दिया तो बताओ जरा स्वास्थ्य व्यवस्था से बच्चों की जान क्यों नहीं बच सकी ? हालांकि मैं वो चीज हूँ जो प्रतिबंधित होने के बावजूद भी चोरी – चुपके पहले से अधिक मूल्य में बिकती हूँ और मूल्य का मूल्य समझना है तो आईपीएल पर लगने वाली खिलाड़ियों की बोली से उनके मूल्य का अर्थ पता कर लेना ! मूल्य उसी का ज्यादा लगता है जिस पर भरोसा अधिक होता है और अंततः लोगों का भरोसा मुझ पर ही केन्द्रित होता है।

सरकार को तुम्हारी समस्याओं पर काम करना चाहिए। जीवन को अवसाद से बाहर निकालने के लिए संवाद कायम करना चाहिए। जब समस्या रहित मनुष्य हो , अवसाद से मुक्त मनुष्य होगा तब मुझे ( शराब ) प्रतिबंधित करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और मैं जहरीली बिल्कुल नहीं होऊंगी , ना ही मुझे कोई जहरीली शराब कह सकेगा। असल में मुझ जहरीली शराब से अधिक जहरीली तुम्हारी व्यवस्था है तब जहरीली शराब का जन्म हुआ।

कोई यूं ही जहरीला / जहरीली नहीं हो जाते। मुझ जहरीली शराब के साथ पुलिस पेश करती है एक जहरीला आदमी और उस आदमी से कभी मन और आत्मा से बात करना वह बता सकता है कि गरीबी , बेरोजगारी अनेकानेक समस्याओं के चलते कैसे बनाया उसने मुझे जहरीली और पुलिस का तो बस इतना सा काम है कि वह सरकारी नौकर है , बस कह देती है कि अवैध शराब के साथ पकड़ लिया। ईनाम पा जाती है परंतु मैं कहती हूँ , अवैध मैं नहीं तुम्हारी व्यवस्था अवैध है।

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