भारत की राजनीति मे जिस प्रकार के युवाओं की भागेदारी होनी चाहिए वैसा ही व्यक्तित्व बांदा जनपद के युवा नेता अजीत कुमार गुप्ता का झलकता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके सामाजिक राजनीतिक एवं धार्मिक कार्यों और विचार से बनता है , ऐसे ही व्यक्तित्व का जीवन परिचय यहां जानिए…….
■ राजनीतिक विचार :
देखिए मेरा मानना है कि बहुत जरूरी है कि लोग राजनीति को समझें। समाज का अंतिम व्यक्ति राजनीति के महत्व को जाने , जब लोग महत्व को जानेंगे तभी बड़े परिवर्तन होंगे और परिवर्तन हमेशा कुछ नया लेकर आता है।
इसलिए सर्वप्रथम तो लोग परिवर्तन के बारे मे सोचें ताकि अयोग्य लोग हम पर शासन ना करें , हम मतलब जनता से है। कोई नेता जनता से है और जनता के लिए है पर हो यह रहा है कि कुछ नेता खुद को जनता का बॉस मानने लगते हैं तो तस्वीर सामने आती है कि जनता लाचार है जबकि युवा सन्यासी स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हर व्यक्ति शक्तिशाली है और हर उस व्यक्ति की शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है जो लाचार है इसलिए मैं राजनीति के क्षेत्र मे शासन करने की मंशा से नही बल्कि लोगों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आया हूं जैसे सड़क बिजली पानी ये सब एक विकास का क्रम है किन्तु लोगों को मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है जिसके लिए इक्कीसवीं सदी की युवा राजनीति में प्रयास शुरु किया जाएगा और मुझे भरोसा है कि लोग इस तरह के राजनीतिक विचार का हृदय से स्वागत करेंगे।
■ धार्मिक / आध्यात्मिक व्यक्तित्व : अक्सर आपका परिचय बाहरी व्यक्तित्व से होता है। जैसे अमुक व्यक्ति बिजनेसमैन है या कोई और काम करता है तो बांदा के अजीत गुप्ता एक बिजनेसमैन के रूप में और राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप मे जाने जाते हैं परंतु इनका धार्मिक / आध्यात्मिक व्यक्तित्व आंतरिक है जिसे इनके करीबी लोग ही जानते हैं। ये खुद नही चाहते कि आंतरिक व्यक्तित्व का कहीं कुछ बखान हो इसलिए कम शब्दों मे ही आंतरिक व्यक्तित्व को बता रहे हैं। ईश्वर मे इनकी अगाध श्रद्धा है भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हैं और सनातन धर्मावलंबी हैं। आध्यात्मिक व्यक्तित्व का सबसे अच्छा पक्ष ये होता है कि वो हर व्यक्ति का सम्मान करना जानता है और सब मे उसको प्रभु का अस्तित्व महसूस होता है तो वह इस भाव से सेवा करता है , इनके लिए राजनीति सेवा का माध्यम है और यह बात और अधिक शक्तिशाली हो जाती है जब आध्यात्मिक भाव से जनसेवा के लिए समर्पित होते हैं।
■ संगठन मे पद : भाजपा मे क्षेत्रीय मंत्री रहे और युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए। विद्यार्थी जीवन से विद्यार्थी परिषद और संघ मे सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका से रहे। संघ की सेवा मे हमेशा रत रहते हैं और कहते हैं कि मैं जन्म से ही राष्ट्रवादी हूं। विचार एक वजह है जो दलीय निष्ठा को कभी डिगने नही देता। इसलिए जनसेवा कर राष्ट्रसेवा का भाव प्रबल है।
■ चुनाव लड़ने का कारण : दबंग रिक्त राजनीति हो तब ही जनता का वास्तविक विकास होगा। नेतृत्व सिर्फ थाना की समस्या हल करना नही है बल्कि आपसी प्रेम बना रहे ऐसी मानसिकता का विकास जन जन मे हो , ऐसा नेतृत्व होना चाहिए। जब नेता लगातार विचार देकर जनता का विकास मानसिक आधार पर भी करेगा तब आंतरिक सुख और शांति का वास हो सकेगा। इसलिए अभी कितना कुछ करने को शेष है जो राजनीति की नवीन पीढ़ी ही कर पाएगी। मेरा मानना है कि जनता हमेशा नए लोगों को अवसर देने के लिए मूड बनाए क्योंकि वास्तविक शासक तो जनता ही है। जनता मे वोट की चेतना का होना आवश्यक है कि हमे क्यों और किसको वोट करना है जिससे अगले दस – बीस वर्ष बाद का जनपद , क्षेत्र और प्रदेश तथा देश कैसा होगा ? इतनी दूरदर्शिता जनता मे होनी चाहिए इसलिए वैचारिक क्रांति के लिए चुनाव लड़ना सबसे अच्छा कारण है चूंकि चुनाव के समय जनता खुली आंखो से देखती है और खुले कानों से सुनकर अपने मन मे परखती है।
पढ़े लिखे और अनपढ़ का अंतर : एमबीए और बीटेक की डिग्री हासिल कर चुके अजीत गुप्ता जब होर्डिंग्स पर डिग्री का वर्णन करते हैं तो एक तंज भी कसा गया कि डिग्री क्या लिखना ? लेकिन लिखने का कारण है शिक्षित और अशिक्षित का अंतर स्पष्ट करना। पढ़े लिखे और अनपढ़ का अंतर स्पष्ट करना जरूरी है क्योंकि जिस बेटे की माता पिता अनपढ़ होंगे वो पढ़े लिखे माता पिता के बेटे की अपेक्षा बौद्धिक रूप से कमजोर ही होता है इसलिए अगर नेता कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ होगा तो बेशक वह वैचारिक अलख नही जगा पाएगा और ऐसा हो रहा है। समय ने साफ किया है कि पढ़े लिखे लोगों ने ज्यादा अच्छे तरीके से काम किया है इसलिए एमबीए और बीटेक की डिग्री लिखकर जनता के मन मे इस बात को पहुंचाना चाहते हैं कि शिक्षित व्यक्ति को चुनो। व्यक्तित्व को परख कर चुनो तो विकसित भारत मे मानसिक विकास भी वैश्विक स्तर का आम जन का हो।
■ सेवा ही संकल्प : दिखावे से परे मित्रों की मदद करना। जरूरतमंद लोगों के साथ खड़े होना। अपने किए हुए का ढोल नही पीटने का स्वभाव जिससे यह तय हो सके कि जिसकी मदद की गई है वो सुकून महसूस कर सके नाकि माखौल उड़े उसका। वह तस्वीर बहुत दर्द देती है कि गरीब को एक केला एक दर्जन लोग पकड़ाते हैं तो इससे हमारे समाज की बेइज्जती होती है। मैं इस अंतर को ही समझाना चाहता हूं और इसके लिए युवाओं से हमेशा बात करता हूं कि जितने भी सकारात्मक और गंभीर स्वभाव के युवा हैं वो अपने सपनों का समाज बनाने के लिए एकता के सूत्र मे बंध जाएं आपके वैचारिक मंत्र से हम एक अद्भुत समाज का निर्माण कर सकते हैं और राजनीति हो या समाजसेवा दोनों मे नेतृत्व का सही स्वरूप नजर आएगा।
( इस बायोग्राफी के लिए लेखक / पत्रकार सौरभ द्विवेदी के पास सारे अधिकार सुरक्षित हैं काॅपी करना दण्डनीय अपराध है )