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By – Saurabh Dwivedi

स्वामी विवेकानंद ने कहा था , गौ रक्षा का अर्थ सेवा से है नाकि किसी की मृत्यु से। जिस व्यक्ति में मानवता शून्य हो जाएगी वही कत्ल कर सकता है। किसी की मृत्यु कर देने वाला व्यक्ति सेवक हो ही नहीं सकता।

गौरक्षा के नाम पर ऐसे लोग तैयार हुए , जो अपने अंदर की नफरत और कुंठा समाप्त करने के लिए किसी की मृत्यु के कारक बनने लगे। इससे ना सिर्फ उनका बल्कि देश का माहौल भी खराब हुआ और मानवता को क्षति पहुंची है।

बेशक जो राक्षस हैं अर्थात राक्षसी प्रवृत्ति के हैं , उन्हें दंड मिलना चाहिए। धर्म कहता है कि दुष्ट , पापी व्यक्ति को दुष्परिणाम भुगतने होगें। प्रत्येक पाप की सजा शास्त्रार्थ निश्चित है तो ऐसे में मनुष्य ही रक्षा के नाम पर हत्या क्यों करे ?

चूंकि कानून से विश्वास उठा। इसलिये भी हत्या की वजह हो सकती है। परंतु यह ठीक नहीं भविष्य के लिए कि कानून पर से उठे विश्वास की वजह से मानवता के विश्वास को छति पहुंचाई जाए। इस वजह से राष्ट्र की एकता और अखंडता भी खतरे में पड़ जाती है। गृह युद्ध छिड़ने के आसार हो जाते हैं। जिससे सभी को हानि उठानी पड़ती है। फलस्वरूप दुश्मन राष्ट्र कमजोर पल का लाभ उठाने की कोशिश करने लगते हैं। आवश्यक नहीं कि यह सब परिणाम देखने को हम जिंदा रहें , हमारी अनुपस्थिति में ऐसा घटित हो सकता है।

इसलिये रक्षा के पूरक सेवा भाव को समझना होगा। गौ तस्कर , गौ हत्यारे अपने हिस्से की सजा अवश्य भुगतेंगें। यह विश्वास धर्म पर होना चाहिए , जिसकी वजह से आप गौ रक्षक बने। इसके बावजूद संविधान और कानून पर विश्वास जता सकते हैं। अभी इतनी अंधेरगर्दी नहीं हुई।

राष्ट्र के प्रत्येक धर्म – जाति के नागरिक का कर्तव्य है कि उसकी वजह से राष्ट्र की मजबूत दीवार और नींव को छति ना पहुंचे। इसलिये गौ तस्कर को भी समझना होगा कि यदि किसी की भावना आहत होती है तो राष्ट्र के नागरिक के तौर पर ऐसे घृणित पापमय कृत्य से विरक्ति प्राप्त कर लें। अपने राष्ट्र के लिए जो इतनी सी आहूति नहीं कर सकता वह दुश्मन मुल्क से भी बड़ा दुश्मन है और गद्दार ही कहलाएगा।

अतः नाजुक वक्त में संवेदना के साथ सोचना होगा कि गौ रक्षा को लेकर सरकारी जो नीतियां भी बनती हैं , क्या वह भ्रष्टाचार की शिकार नहीं हो रही हैं ? यह भी जनता के साथ अन्याय है। भूसा और चारा का घोटाला हो , बैंको से ऋण का पैसा इधर-उधर कर दिया जाए और नाम गौ सेवा का हो , यह भी अपराध है। यह सबसे बड़ा अपराध है। गाय के साथ अन्याय है , समाज के साथ अन्याय है। एक नागरिक का हक छीनकर राष्ट्र के नागरिक के मूल अधिकार को क्षति पहुंचाना हुआ।

इसलिये कालचक्र को समझना ही होगा कि कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गलत हो रहा है। वह गलत को खत्म कर कैसे सही करें , इस पर विचार करना है। कोई काटता नहीं तो ट्रक के नीचे आकर मर रही हैं और गौशाला खोलते हो तो बड़ा भ्रष्टाचार होता , जनधन को हानि पहुंचती है और पशुधन तो बर्बाद हो ही जाता है।

गंदी – राजनीति का शिकार होने से बेहतर है कि राष्ट्र के लिए अच्छी राजनीति हो। सभी इस जिम्मेदारी को समझें तभी कोई जापान बन सकता है अन्यथा हम अपनी दयनीयता के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। इसलिए जिंदगी को बख्शिए , महसूस करिए फिर सेवा भाव को अपनाइए और राष्ट्र के लिए , मानवता के लिए सभी जिम्मेदारी समझें तब जाकर शायद हम कुछ इह लोक में सुख प्राप्त कर सकेंगे वरना आजकल तो विचारों का संक्रमण भी इंसान को मार डालने के लिए पर्याप्त है और ऐसा इसी सोशल मीडिया से संभव है।

ऊर्जा संचित हो , सद्विचार हों ! सेवा ही मेवा है। मृत्यु अपराध है। यह दार्शनिक भाव हैं वास्तविकता में बड़े मुश्किल से मिल पाते हैं पर यथार्थ को समझना होगा।

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