By – Saurabh Dwivedi
गरिमा संजय द्वारा लिखित उपन्यास आतंक के साए में सांसारिक जेहादी आतंकवाद से अधिक आधारित आंतरिक आतंकवाद पर है। लेखिका के संवेदनशील मन एवं सामाजिक तत्व के दर्शन का परिचयात्मक उपन्यास कहा जाएगा। यकीनन जिस प्रकार से प्रेम जैसे पवित्र अहसास पर सामाजिक आडंबर का साया मंडराता रहा और परिपक्व होने से पहले किसी पौधे से अधखिला पुष्प तोड़ लिया जाता है , वैसे ही समाज द्वारा तमाम गैर आवश्यक नियम – निर्देश की वजह से प्रेम आतंक के साए में पलता रहा है।
हम जेहादी आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा उतारते हैं , पर हमारी सामाजिक हार यहीं पर होती है कि प्रेम को सार्वजनिक सम्मानजनक मान्यता नहीं दे सके। इसके बावजूद प्रेम समय-समय पर जन्मता है और समाज के मानकों से इतर ही अपना अस्तित्व बनाए हुए है। किन्तु यह भी सत्य है कि जाति से परे प्रेम होता रहा है। अंतर्जातीय विवाह को भावनाओं एवं सम्मान के संगम से प्रेम को परिभाषित करती कहानी बेहद रोचक है।
अमृत और नंदनी दो ऐसे किरदार हैं , जिनकी सोच दहेज को लेकर भी एकदम स्पष्ट है कि यह एक सामाजिक बुराई है। परंतु अन्य परिजन दहेज देकर विवाह करने के पक्षधर हैं। अमृत के समान उम्र का मित्र सुदीप की सोच भी जाति व्यवस्था व दहेज को लेकर परंपरागत होने से संदेश प्राप्त होता है कि नई पीढ़ी को भी समझने की जरूरत है।
कुलमिलाकर कहा जाए तो प्रेमिल अहसास के स्वाद से भरपूर गुनाहों के देवता के समकक्ष उपन्यास है या यूं कह सकते हैं कि अंत आतंक के साए का बहुत अच्छा है। लेखिका ने शायद गुनाहों के देवता से प्रभावित हो उस कथानक को अधिक परिपक्व कर दिया। साथ ही समाज को संदेश देने में सफल रही हैं। यदि इस उपन्यास को पढ़कर महसूस किया जाए तो प्रेम की तासीर का अहसास होगा और अपने आसपास से कुरीतियों को खत्म करने तथा प्रेम को परिपक्व होने के अवसर देने हेतु बल मिलेगा।
ख़ूबसूरत टिप्पणी के लिए हृदय से आभारी हूँ, सौरभ जी
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