SHARE

@देवेन्द्र नाथ मिश्रा

बांदा। बुन्देलखण्ड उत्तर प्रदेश का सब से पिछड़ा हुआ भूभाग है। यह भूभाग सदैव पानी की कमी से जूझता रहा है। यहां की कहावत सर्वविदित कहावत है, “कि गगरी ना फूटे चाहे खसम मर जाए” अर्थात पानी की महत्वता स्त्री अपने सुहाग से बढ़कर मानती है। ऐसे भूभाग पर जहां आत्महत्या, पलायन यहां की किसान की तकदीर है। किसान की ऐसी तकदीर को बदलने के लिए बांदा में कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना 1 मील का पत्थर माना जा रहा था। जिससे वास्तव में यहां की किसानों की दशा सुधारने की एवं भाग्य बदलने की स्थापना हुई थी, परंतु वर्तमान समय में यहां के कुलपति यू एश गौतम द्वारा विश्वविद्यालय में जिस तरह के खेल खेले जा रहे हैं वह अत्यंत ही निंदनीय एवं भ्रष्टाचारी पोशक हैं। विश्वविद्यालय में कुलपति द्वारा भ्रष्टाचार के रक्तवीजो को पाला पोसा जा रहा है। बल्कि यह कहा जाए कि पालित पोषित ऐसे रक्तबीजो से अब विश्वविद्यालय के गोदाम लबालब भर गए हैं।

बुंदेलखण्ड का स्वाद प्रिया मसाले का स्वाद

विश्वविद्यालय में नियुक्तियों के नाम पर निमयों का खुला उल्लघंन किया जा रहा है।जिसके पीछे कुलपति के निजीकृत हित है।शैक्षणिक पदों की भर्तियां हेतु 40 पद रिक्त हुए थे।जिसमें संवैधानिक हेराफेरी कर के दिनांक जनवरी2020 में विज्ञापन प्रकाशित किया गया था। जिसमें प्राध्यापक के 02 पद ,सहायक प्राध्यापक के 13 पद, व सहायक के 14 पद थे।व दूसरी विज्ञप्ति दि० जनवरी 2021 को प्राध्यापक के 06 पद,सहयक प्राध्यापक के01 पद व सहयक के 04 पद शामिल किये गये है । अगर इनका योग किया जाता है तो कुल 40 पद होते है। जिससे कुलपति की स्वार्थ सिध्दि का मार्ग खुल जाता है और अपने चहेतो की नियुक्ति की नियुक्ति अणचन रहित हो कर कर ने में आसानी का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। गौर करने योग्य बात है कि अगर इन 40 पदों की रिक्तियों को एक साथ विज्ञापित किया जाता तो प्राध्यापक के 08 पद, सहायक प्राध्यापक के14 पद व सहायक के 18 पद होते है। इस योग पर यदि आरक्षण की स्थिति को देखा जाये तो प्राध्यापक के 05 पदों का,सहायक प्राध्यापक के 11 पदों के,व सहायक के 13 पदों के आरक्षण गलत होते है।यानि कि कुल 29 पदों पर आरक्षण गलत किया जा रहा है।

कुल जमा विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा जो कार्मिक अनुभाग-2 द्वारा दिनांक 13 अगस्त 2019 को दिये गये100विन्दुओं के अनुरुप निर्धारित आरक्षण प्रणाली का घोर उल्लंघन किया जा रहा है। कुलपति के लिए महामहिम राज्यपाल के आदेश भी बेमानी है। तो शासन तंत्र और सरकार की महत्वता यह अपने निर्णयों के आगे महत्वकहीन मानते हैं। जनप्रतिनिधियों द्वारा या समाज के विशिष्ट लोगों के द्वारा लिखे गए पत्र क्यों निर्गत शासनादेश कुलपति के निरंकुश कार्यप्रणाली पर किसी प्रकार का अवरोध नहीं बन सकते तो इनके निरंकुश कुकृत्य को रोकने में कैसे महत्वपूर्ण होगे। अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा है ।

विश्वविद्यालय से जुडे सोशल मीडिया में तो चल रही बहस में यहां तक कहा जा रहा है कि कुलपति आरक्षण में छेडछाड करके अपने विशेष व्यक्तियों को नियुक्ति करना चाहते है। यह सब सुन कर जागरूक जनमन हतप्रद है। जिस विश्वविद्यालय की स्थापना किसानो के उन्नयन के लिए किया गया था आज वहाँ का भ्रष्टाचार आम जन के चर्चाओं में है। किसानो के चौपालों में है। भ्रटाचार की यह परतें इतनी मोटी है कि इन्हें एक बारगी एक ही खबर पर पूरा का पूरा नहीँ खिला जा सकता है।”बाला जी पम्प नहर परियोजना” हो या किसानो की जमीन की खरीद का मसला ,किसान आत्महत्या तक इस भ्रष्ट कुकृत्य के अंक से उपजी रक्त बीज का अंकुरण को कैसे पोषित किया गया है।इसका खुलासा क्रम वार करेगें।

( यह विश्लेषण सूत्रों द्वारा लेखक के स्वविवेक पर आधारित है। )

image_printPrint
5.00 avg. rating (98% score) - 1 vote