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देशभर में ब्राह्मण हितों की रक्षा के लिए तमाम संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन जब चित्रकूट के एक ब्राह्मण किसान को न्याय दिलाने की बात आती है, तो वे सभी संगठन मौन साधे बैठे हैं। यह विडंबना ही है कि समाज में जातीय अस्मिता की बात करने वाले संगठन वास्तविक ज़मीनी मुद्दों पर सक्रिय नहीं होते।

यह मामला प्रशासनिक जटिलताओं में फंसे एक किसान राममिलन द्विवेदी का है, जो बरगढ़, चित्रकूट के निवासी हैं। पिछले एक दशक से वे अपनी पुश्तैनी जमीन पर अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन सरकारी तंत्र की उलझनों और रसूखदारों के हस्तक्षेप के कारण उन्हें अब तक न्याय नहीं मिल पाया है।

राममिलन द्विवेदी : न्याय की प्रतीक्षा में एक दशक

योगी सरकार ने किसानों के हितों की रक्षा और जमीनी विवादों के निस्तारण को प्राथमिकता देने की बात कही थी, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। राममिलन द्विवेदी की ज़मीन पर अवैध कब्जे की शिकायतें लंबे समय से प्रशासन के पास लंबित हैं, लेकिन न तो तहसील स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई हुई और न ही जिले के उच्च अधिकारियों ने इस मामले में गंभीरता दिखाई।

प्रशासन की निष्क्रियता या किसी प्रभावशाली ताकत का दबाव?

चित्रकूट प्रशासन की शक्ति सर्वविदित है। जिले में प्रशासनिक प्रभाव और शक्ति के संतुलन का ऐसा तंत्र स्थापित है कि जिसे वह चाहें, उसे तुरंत न्याय मिल सकता है, और जिसे अनदेखा करना हो, उसकी फाइलें वर्षों तक धूल फांकती रहती हैं। सवाल यह उठता है कि राममिलन द्विवेदी का मामला किस श्रेणी में आता है? क्या वे भी किसी शक्ति संतुलन की राजनीति का शिकार हो रहे हैं?

ब्राह्मण संगठनों की खामोशी : क्या स्वार्थ की राजनीति हावी है ?

देशभर में ब्राह्मण हितों की रक्षा के लिए तमाम संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन जब चित्रकूट के एक ब्राह्मण किसान को न्याय दिलाने की बात आती है, तो वे सभी संगठन मौन साधे बैठे हैं। यह विडंबना ही है कि समाज में जातीय अस्मिता की बात करने वाले संगठन वास्तविक ज़मीनी मुद्दों पर सक्रिय नहीं होते।

तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता

राममिलन द्विवेदी के मामले को केवल एक कानूनी या प्रशासनिक पेचिदगी मानकर टालना उचित नहीं होगा। अगर प्रशासन निष्पक्ष है, तो उसे तुरंत हस्तक्षेप कर इस भूमि विवाद का निस्तारण करना चाहिए। वरना यह धारणा और मजबूत होगी कि शक्ति और रसूख ही न्याय का निर्धारण करते हैं।

मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन से अपील

योगी सरकार से अपील है कि वे किसानों को न्याय दिलाने की अपनी प्रतिबद्धता को साकार करें। जिला प्रशासन को यह साबित करना होगा कि उनकी शक्ति केवल प्रभावशाली लोगों के लिए नहीं, बल्कि पीड़ित और हकदार किसानों के लिए भी है। राममिलन द्विवेदी को न्याय मिले, ताकि यह संदेश जाए कि सरकार की प्राथमिकता वास्तव में किसानों के अधिकारों की रक्षा करना है।

क्या चित्रकूट प्रशासन अब भी चुप रहेगा, या इस बार शक्ति का सही प्रयोग कर राममिलन द्विवेदी को न्याय दिलाएगा ? और अगर प्रशासन न्याय नही दिला पाता तो इसे कुछ यूं ही कहा जा सकता है कि किसान की जमीन दबंग की रखैल हो गई है और प्रशासन नतमस्तक है !

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