By :- Monica sharma
तुम चले गये न आने के लिए, मेरी खुशी में खुश रहना तुम्हारा एक शौक था । मेरी हँसी देखना तुम्हारा प्रिय शगल, पर फिर भी तुम्हारा गुस्सा और तुम्हारे दूर जाने के भय में रही ।
तुम्हे मेरा रोना पसन्द नही, मेरे आँसू तुम्हे हर कीमती चीज से कीमती लगते थे ।
पर तुम्हे कभी कह नही सकी , अकसर तुम्हारी बेरुखी से नम हुई आँखे, तुम्हारी नापसंदगी को छुपा के रखती हैं मुस्कुराने के वादे के साथ ।
तुम्हारा जाना मेरे लिए एल्जाइमर के रोग से हो गया । मुझे याद तो सब है ,सब था, पर कुछ भी अब याद नही रहता । मुझे नही पता वर्तमान का कितना समय बीत चुका । मुझे नही पता भविष्य है भी या नही ।
मैं तो वहीं ठहर चुकी हूं, जिधर तुम छोड़ गए थे । अब भी वहीं हूं , मेरी यादाश्त एक रोग बन चुकी है जिसे “आज” याद नही ,पर “कल “अभी भी जहन में जिंदा है ,मरता नही ।
मैं नही लौट सकती ,मैं नही लौटना चाहती, मेरी ख्वाहिशों में एक ख्वाहिश कि बेशक, उम्रें बीत जाएं पर तुम एक बार आना जरूर, तुम्हारे सीने पर सर रख धड़कनों को सवाल करने हैं और जो तुम्हे नही पसन्द, तुमसे मिल के सीने में छुप बहा देने हैं ।
अब भी जो मुस्कुराहट में शामिल हैं मेरी आँखों के कोर पर ठहरे, तुमसे किये वादे के बांध को तोड़ने की ख्वाहिश लिए, दर्द ,क्रोध, शिकायतों के हीरे से चमकते सोते,फुट पड़ने को । एक बार तुम आओ तो सही ,मिलो तो सही, तुम्हारे होने के निशां दिखें तो ।
कि हम इंतज़ार में हैं , तुम्हारा पता नही और हमारा क्या हमने तो बस तुमसे मोहब्बत की है ।