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दर्द माँजता है एक ऐसा कहानी संग्रह है , जिसमें लेखक ने समाज के चतुर्दिक भाव भंगिमाओं से कहानियों को उकेरा है। इस संग्रह की समस्त कहानियां जीवंत एवं प्रत्येक वर्ग को स्पर्श करने वाली हैं। प्रत्येक कहानी से पाठक जिंदगी की पटकथा में निष्कर्ष तक पहुंच जाता है।

कोई भी कहानी सार्थकता को तब ही प्राप्त करती है , जब उससे निष्कर्ष निकलकर पाठक को एक दिशा प्रदान कर दे। लेखक ने कहानियों के माध्यम से गांव और शहर को संयुक्त रूप से व्यापकता प्रदान की है। आज के दौर में लोगों के मन से जहाँ गांव नगण्य हो रहा है , वहीं लेखक ने एक बार फिर गांव को प्रमुखता प्रदान कर दी।

दर्द माँजता है कहानी संग्रह की प्रमुख कहानी है। जिसमें वक्त के साथ दर्द का एहसास कम होने एवं विश्वास मरने को नगण्य बताया गया है। आज भी अजनबी एक-दूसरे का विश्वास कर सकते हैं और प्रेम जागृत हो सकता है। इसमें आत्मीय प्रेम को अमरता प्रदान की गई है। त्रासदी के दौरान दर्द को महसूस कर उपजा प्रेम पाठक के मन को स्पर्श करता है और प्रेमिल रिश्तों पर विश्वास बढ़ता है।

ऐसे ही एक कहानी परिस्थितियां हैं , जिसमें सौ बेईमानों के बीच एक ईमानदार आदमी का होना दिखाया गया है। जहाँ चहुंओर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। आदमी की रगों में भ्रष्ट रक्त का संचार हो रहा है। वहीं एक ईमानदार आदमी समाज और सरकार की सेवा कर रहा है पर दर्दनाक है कि ईमानदार छवि का आदमी भ्रष्ट कर्मियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है और साथ ही जीवन की परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि रिश्तों में अलग अलग समय पर दो मौत होती हैं और दोनो परिस्थितियों में सहज सरल व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति का दर्द महसूस होता है। इसलिये कहानी का एक वाक्य स्पर्श कर जाता है कि दर्द है तो भावनाएं भी हैं , शरीर है तो उसकी सीमाएं भी हैं। कुलमिलाकर कहानी से संदेश प्राप्त होता है कि भ्रष्टाचार के इस युग में ईमानदार आदमी को कम से कम परेशान ना करें और कोशिश यही हो कि उसका सहारा बनें।

छद्म भेष व क्रियाकलाप से आम दिनचर्या में भी मुलाकात हो जाती है। ऐसे ही लेखक ने छद्म नामक कहानी से सिस्टम पर बैठे ताकतवर पिता द्वारा छद्म भेषी पुत्र का सहयोग कर सजा से बचाने एवं आनंदमय जीवन जीने में मदद करना दिखाया है। परंतु कहानी का ही भाग है कि सिस्टम में आज भी कुछ अच्छे लोग हैं , जो पारखी नजर से छद्म भेषधारी को पहचान लेते हैं और अंततः अभिषेक उर्फ रंजीतदत्त को विजयराजन की पारखी नजर से सलाखों की पीछे जाने पड़ता है व खबरों के माध्यम से सभी उसकी सच्चाई जानकर सहम से जाते हैं।

कहानी संग्रह में मूल विषय भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी ही है , जो राजकाज कहानी के माध्यम से रेलवे पर बैठे बड़े अधिकारी व कर्मचारी के माध्यम से कार्य में देरी सहित भ्रष्टाचार के तौर-तरीके से पाठक को वाकिफ कराती है। इस बात की जानकारी मिलती है किसी भी सरकार को बदलने से ज्यादा नागरिकों की सोच बदलने की जरूरत है , जो प्रतिस्पर्धा के युग में देश की उन्नति व छवि के लिए स्वयं को भ्रष्टाचार से मुक्त करें व राष्ट्र के प्रति नागरिक कर्तव्य का निर्वहन करें।

ऐसे ही प्रेम और विश्वास को जन्म देती कहानी एक तेरा ही साथ वैवाहिक जीवन में सुखमय जिंदगी व्यतीत करने का संदेश देती है। कहानी का यह भी संदेश है कि समझ दोतरफा होनी चाहिए। जिससे संवेदनशील मन का व्यक्ति स्वीकार्यता के साथ अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है।

किताब का अंत प्रतिशोध नामक कहानी से है। समाज में ग्रामीण स्तर से लेकर शहरी जीवन में चहुंओर लोग प्रतिशोध की ज्वाला में अंदर ही अंदर जल रहे होते हैं। आफिस से लेकर खुले मैदान तक में चलता – फिरता आदमी के मन में प्रतिशोध की अग्नि जल रही होती है। जिससे निजात पाने की सबको आवश्यकता है। यह कहानी संग्रह विविध आयामों को समाए हुए जिंदगी के हर क्षेत्र में प्रभावशाली है। जो पाठक की समझ को विकसित करने में प्रभावशाली है। प्रत्येक कहानी में रहस्य समाया हुआ है। एकाध बार पढ़ते हुए ऊब महसूस हो सकती है परंतु जैसे ही आगे बढ़ते हैं पुनः दिलचस्पी बढ़ जाती है और मन की एक ही पुकार आती है कि कहानी का अंत क्या होगा ? उस अंत को जानकर सकारात्मक सोच व सहज सुख से पाठक भर जाता है।

लेखक – रणविजय
प्रकाशक – साहित्य संचय प्रकाशन
सोनिया विहार दिल्ली

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