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By – Saurabh Dwivedi

मंदाकिनी पुनर्जीवन अभियान एक रूचि पूर्ण अभियान है। रूचिकर काम में ही सुख और सफलता निहित होती है।

सुभाष चन्द्रा जी ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी कि उन्हें काम में ही आराम मिलता है , वे काम से कभी थकते नहीं। एक बार उनके पिताजी ने कहा कि तुम अपनी कमाई से कुछ ना कुछ अंश दान करते हो कि गरीब व जरूरतमंद के काम आ सके।

इसलिये उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों नहीं अपना हुनर डोनेट करते हो और उन्होंने शनैः शनैः यही काम शुरू किया। अपने निजी व कार्य स्थल के अनुभव को लोगों से साझा करने लगे परिणामस्वरूप उन्हें भी लोगों से सीखने के लिए मिलने लगा।

इस प्रकार सफल जिंदगी एवं समाजसेवा के क्षेत्र से कारवां बढ़ता गया। अनेक ऐसे लोग निकल कर सामने आ रहे हैं कि तमाम कष्ट के बावजूद जिंदगी में सफल हुए हैं।

असल में काम वही है जिसमें सुख मिले , कभी थकान ना महसूस हो। काम उबाऊ ना हो बल्कि इतना रूचिकर हो कि काम करने में आनंद आए।

मुझे भी शुरूआत से ऐसे ही कुछ महसूस होता रहा। एक सामान्य जिंदगी की समस्याओं से इतर भी तमाम अनुभव महसूस किए पर समाज के लिए काम करना हमेशा सुखद महसूस हुआ। मेरा लेखन कार्य भी अपार सुख प्रदान करता है।

ऐसे ही मंदाकिनी नदी के पुनर्जीवन का कार्य एक ऐसा यज्ञ बनता गया कि कभी थकान नहीं महसूस हुई। नदी को माँ की अनुभूति प्रदान की गई और ऐसी ही समाज में बेटियां है , जैसे कि कठुआ से लेकर मंदसौर तक की बेटियां और निर्भया से भी पूरा देश वाकिफ है।

मंदाकिनी और बेटियों के जीवन को बचाने के लिए नदी तट पर संवाद किया गया। इस संवाद में भीगते हुए पहुंचने का भी अपना सुख है। अंदुरूनी इच्छा यही है कि इतना सामर्थ्यवान रहूं कि जब तक जीवन है , ऐसे सामाजिक बदलाव और जीवन से जुड़े कार्यों पर मेरी भागीदारी सुनिश्चित रहे।

इसलिये अपने-अपने हिस्से का रूचिकर कार्य सभी चुन लें और जीवन के एक अंश को सामाजिक बदलाव के लिए समर्पित करें फिर अनुभूति होगी कि हाँ खुश्बू हमें मुग्ध कर रही है।

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