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By – Saurabh Dwived

हम जीतते हैं तो सोच की वजह से जीतते हैं और हारते हैं तो सोच की वजह से हारते हैं। हमारी जिंदगी में सबसे बड़ी भूमिका सोच की होती है। शख्स बनकर जन्म लेते हैं , पर शख्सियत सोच से बनते हैं !

जैसे ही साक्षी के संघर्ष और विजय की कहानी सुनता हूं। आंखों मे आंसू आ जाते हैं। हर एक सफलता के पीछे की कहानी सचमुच इतनी दर्दनाक और साहस, शौर्य से भरी होती है। मजबूत इरादे से ही सफलता मिलती है।

साक्षी ने उस भारत से भी जंग जीती है। जिस भारत में लडकियों को कुछ करने का कुख खास प्लेटफार्म और स्पेस नही है। वो भी कुश्ती जैसा खेल जहां लडकी होने की वजह से कोच ने ही कह दिया हो कि वो जिमनास्ट बन जाये। लेकिन साक्षी का जन्म तो कुश्ती और मेडल के लिए ही हुआ था और शुरूआती दौर मे वो लडकों से भी कुश्ती लडी।

साक्षी के माता-पिता को कोटि कोटि प्रणाम, जिन्होंने हर वक्त बेटी के उद्देश्य का साथ दिया वरना पारिवारिक समर्थन न मिलने से भी लडकी ही क्या भारत मे लडकों को भी हतासा का सामना करन पडता।

हम हारे तो अपनी सोच की वजह से हारे हैं और जीते हैं तो सोच की वजह से जीते हैं। आज भी भारत मे सोच मे परिवर्तन होना बाकी है। अगर जीतना चाहते हैं तो साक्षी और सिंधू के परिवार जैसी सोच होनी चाहिये।

साक्षी और सिंधू को कोटि कोटि नमन।

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