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गरिमा संजय कृत उपन्यास का नाम स्मृतियां है। एक कहावत प्रचलित है ” यथा नाम तथा गुण ” अर्थात जैसा नाम वैसा गुण होता है। यह उपन्यास अपने नाम को ऐसे ही चरितार्थ करता है। सतप्रतिशत विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि पाठक के मन में स्मृतियां चिरकाल तक तरोताजा रहेगा। कथानक के अनुसार हर प्रकार के पाठक के मन – मस्तिष्क में स्मृतियां अपनी स्मृति का पक्का – गहरा रंग भर जाएगा।

उपन्यास के माध्यम से लेखिका के धैर्य और गूढ़ रहस्य को संजोए रखने की अद्भुत क्षमता का एहसास होता है। शुरूआत से अंत तक पाठक उपन्यास के साथ बंधा रहेगा , वह भी अत्यंत रूचि के साथ। पाठक के मन में खुशी – गम और रोमांस का तिलिस्म खड़ा हो जाएगा।

जैसे – जैसे पढ़ते हैं वैसे वैसे जिज्ञासा और अपनत्व का भाव गहराता चला जाता है। उपन्यास इलाहाबाद शहर और इश्क के इर्द-गिर्द रहते हुए क्रिकेट से लेकर मित्रों की मित्रता और मित्र के ही षणयंत्र पर पूरा कथानक यात्रा तय करता है।

उपन्यास का अंत सुखद और स्वीकार्य है। जिंदगी जिस प्रकार से वास्तविक जीवन में खेल खेलती हुई दिखती है। वैसे ही आकाश और नीतू के रिश्ते का अंत होता है। गहरे प्रेम को किस प्रकार जिया जाता है और एक लड़की प्रेम को कितनी गहराई से महसूस करती है , उसका एहसास काबिले तारीफ है।

सबसे बड़ी बात कि वर्तमान परिदृश्य में जिस प्रकार लेखक और लेखिका एडल्ट शब्दों द्वारा एडल्ट कहानी मिक्स कर उपन्यास लिख रहे हैं और वही लगभग सफलता का कारक माना जाता है कि बड़ा खुलकर लिखा है , प्रेम और एहसास से भरा यह उपन्यास इन सब बातों को धता बता देता है। सम्पूर्ण उपन्यास में कहीं भी अपशब्द और अश्लील भाषा का प्रयोग ना होने के बावजूद कहानी प्रभावशाली व रोचक है।

उपन्यास में भाई और बहन के सहज रिश्ते का उल्लेख है तो भाई और बहन के मध्य मित्र द्वारा षणयंत्र रचकर दूरियां बढ़ाने की कहानी भी है। उपन्यास यह संदेश भी देता है कि हर मित्र विश्वास के योग्य नहीं होता , तो परंपरा के निर्वाह के साथ शादी जैसा निर्णय बेहद वैयक्तिक और मनस् एहसास पर निर्भर करता है।

यही कहानी का रोमांच है कि अंत में क्या होगा ? शुरूआत में कहानी कम समझ में आती है और तनिक समझ आने पर महसूस होता है कि अभी आगे क्या है ? यहीं से जिज्ञासा जन्म लेती है और जैसे ही मध्य भाग पर पहुंचते हैं , वैसे ही हृदय में धक धक शुरू हो जाता है और उपन्यास के अंत तक पहुंचने हेतु मन में सुनामी जैसी इच्छा तीव्रता से गतिमान हो जाती है।

किसी भी वर्ग का पाठक हो , कहानी को स्वयं जीने लगेगा। आकाश , नीतू , विजय , मीनाक्षी , ओम , अलका और मुकेश जैसे किरदार मुख्य रूप से पाठक के मन में खुशी – गम और प्रेमिल एहसास का प्रभाव छोड़ जाते हैं , तो वहीं समाज के अस्तित्व और उसके रवैये पर बड़ा सवाल खड़ा कर जाते हैं। जो सवाल आज भी हर किसी के अंदर जीवंत है।

अंत जिंदगी के खेल और किस्मत पर निर्भर हो जाता है। यही उपन्यास की ताकत भी है कि कहानी का फिल्मांकन किया जाए , तो आज के दौर में भी ये कहानी समाज पर अच्छी छाप छोड़कर जाएगी और एहसास कर सकते हैं निकलता हुआ दर्शक फाइव स्टार देकर जाएगा , पर उसके मन में रोमांच ही रोमांच होगा।

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3 COMMENTS

  1. मेरी अभिव्यक्तियों और चरित्रों को यथारूप अनुभव करके संतुलित एवं सम्यक रूप से अभिव्यक्त करने के लिए हृदय से आभारी हूँ, सौरभ जी

  2. मेरी अभिव्यक्तियों और चरित्रों को यथारूप अनुभव करके संतुलित एवं सम्यक रूप से अभिव्यक्त करने के लिए हृदय से आभारी हूँ, सौरभ जी
    लेखन में अपशब्द या अश्लीलता की आवश्यकता नहीं… हम मर्यादाओं में रहकर पूर्ण अभिव्यक्ति कर सकते हैं