By :- Saurabh Dwivedi
जातिवाद बहुत छोटी सी चीज है। सिर्फ छोटे से दायरे में विचरण करती है। व्यक्ति विशेष की संक्रमित मानसिकता से जातिवाद का जन्म होता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए जातिवादी संक्रमण को फैलाने का काम स्थानीय लोगों ने किया है। ग्राम स्तर पर भी दो गुट जातिवाद में बंटे रहते हैं। कोई दो व्यक्ति भी हो सकते हैं जो जातिवाद के बल से व्यक्तिगत सुख प्राप्त करना चाहते हैं। इस सुख हेतु राष्ट्र हित की बलि चढ़ा देते हैं।
अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति को भारत की बहुसंख्यक जनता ने बड़ी देर से महसूस किया। जब महसूस कर लिया तब संगठित होकर कह पाए कि ” अंग्रेजो भारत छोड़ो ” !
इसके बाद क्या हुआ ? देश आजाद हुआ। किन्तु फिर से व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा प्रबल हुई। जिन्ना जैसे महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने धर्म को आधार बनाकर भारत के बंटवारे की पटकथा लिखी।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की भी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा थी। जिससे वे भारत के विभाजन को नहीं रोक पाए। जबकि उस वक्त हिन्दू व हिन्दुत्व को लेकर कोई असुरक्षा आदि की भावना जागृत नहीं थी। किन्तु यह पंडित नेहरू की महत्वाकांक्षा का परिणाम था कि जिन्ना को नहीं समझा – बुझा पाए और भारत झुलस गया। भारत विभाजन की यह भी एक बड़ी वजह थी। आज उसी का दंश भारत सह रहा है।
भारत की इस दयनीय स्थिति से जातिवाद की संक्रमित राजनीति को जनता अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति को महसूस करे। बेशक अंग्रेज गोरे थे , अंग्रेज विदेशी थे। किन्तु मानसिकता सीमाओं में कैद नहीं रहती है। अतः भारत में जातिवादी नेताओं की घृणित मानसिकता ही भारत की दुश्मन है।
एक गांव के अंदर प्रधान पद के चुनाव में भी मुख्य रूप से दो व्यक्ति व दो गुट होते हैं। अब दो व्यक्तियों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा प्रधान बनने की है। प्रधान पद प्राप्त करने हेतु अनेक प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं , जिनमें विचार शून्य लोगों के लिए जातिवाद सरल व प्रिय हथकंडा हो जाता है। जिससे कभी गांव का भला नहीं हो सका। बल्कि गांव के लोगों विचारों के अभाव में कुएं के मेढ़क की तरह हो गए।
इस तरह से भारत में बहुत से नेताओं की राजनीति सिर्फ और सिर्फ जातीय नेता होने की बदौलत चल रही है। इनकी जाति के लोगों को सवाल करना चाहिए कि आपने अपनी जाति के लोगों को वैचारिक रूप से समृद्ध करने के लिए कौन सा अच्छा विचार दिया ? आर्थिक रूप से समृद्ध तो सिर्फ नेता होते हैं नाकि जनता !
इन जातीय नेताओं ने सबसे अधिक जहर घोला है। इस जहर की वजह से सामाजिक समरसता तक खतरे मे आई है। इस जातिवादी राजनीति के खात्मे के लिए संविधान में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता है। किन्तु यह तब संभव हो सकेगा जब देश की जनता राष्ट्रीय भावना से एक पथ से एक मंजिल की ओर चले।
भारत में सचमुच अभी आजादी की आवश्यकता है , जातिवाद की संक्रमित मानसिकता से आजादी की आवश्यकता है। एक राष्ट्र वैभवशाली तभी हो सकेगा जब जनता इस जिम्मेदारी को महसूस करे। अतः इस चुनावी महापर्व में जनहित के लिए जातिवादी संक्रमण का इलाज कर ही जनता मतदान करे।