@Saurabh Dwivedi
अर्द्धनारीश्वर
अक्सर एक चाह जन्म लेती है। एक हूक सी उठती है। जाने क्या है वो ? मन मे प्रेम लिखने की उछाल सी उठती है। एक लहर , पर फिर मैं असमर्थ हो जाता हूँ।
मैं कहता हूँ या बुद्धि कहती है कि क्या लिखोगे ? हर बार प्रेम लिखना सरल है क्या ? हर बार कोई प्यारा सा खत लिख जाना साधारण है क्या ?
ये प्रेम लिखने की लत अजीब है। लिखो तो खुशी होती है ना लिख सको तो सचमुच अथाह दर्द होता है। जैसे दर्द का कोई महल जहाँ मैं मेरा मन निवास करने लगे हैं।
चाहत गहरी साँस की तरह है। पर हकीकत मे क्या उस श्वांस को बयां कर सकते हैं ? यह महसूस कर लेने की बात है। सचमुच साँसो से जैसे जिंदगी है वैसे ही एक गहरी श्वांस मे प्रेम है।
गहरी श्वांस लेने के बाद पलकें बंद हो जाती हैं और सीने मे तुम्हारी प्रेम की तस्वीर नृत्य करने लगती है , चलचित्र की भांति चलने लगती है। जैसे मौजूदा दौर का कोई एप्लीकेशन हो वन क्लिक मे तस्वीरें आ – जा रही हों , गहरी श्वांस वन क्लिक है।
जानती हो कहते – कहते कंठ मे मेरे एक धुन महसूस होने लगी। जैसे ये कंठ भी तुमसे मोहब्बत कर रहा है और प्रेम इसका नाभि तक उतरता जा रहा है। ठंडक का अहसास नाभि मे हो रहा है। प्रेम सुगंध का उत्सर्जन नाभि से होता है , जरा महक तो लें !
एक खत लिखने मे होठो का आपसी माधुर्य खूब अहसास होता है। जैसे दोनों होठ आपस मे प्यार करने लगते हैं। देखो इनका आलिंगन अपने आप हो जाता है। असल मे मोहब्बत मे इसको ही कहते हैं , चूम लेना। इस चुंबन कला मे दोनो पारंगत है , वास्तविक प्रेम यहीं है होठो पर….. जैसे पलकें पुतलियों का आलिंगन कर लेती हैं।
प्रेम कहीं और नही हैं। यहीं है मुझ मे , तुम मे और हमारी इंद्रियों मे सच मे इसलिए कहा गया है अर्द्धनारीश्वर। हम उदास होते हैं , अकेलापन महसूस होता है और तमाम परेशानियां पर एक प्रेम है ना तो सचमुच उसे महसूस कर तन – मन और आत्मा सुखमय हो जाते हैं फिर रग रग मे प्रेम ऊर्जा का संचार होने लगता है।
हमारे अंदर हमारे प्रेम का अस्तित्व उमड़ने लगता है और उस वक्त मुझे मेरी ही रचना अर्द्धनारीश्वर याद आती है तो सचमुच प्रेम वही जिसमे अर्द्धनारीश्वर हो जाएं , यही प्रेम की परिणति है अर्द्धनारीश्वर हो जाना।
तुम्हारा ” सखा “