भागवत कथा का आनंदमय रसास्वादन करते हुए स्रोताओं को जीवन मे पराजय और जय का बड़ा कारण पता चल गया। जब राजगुरू श्री श्री 1008 श्री बद्री प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कौरव पाण्डव के बीच हुए चौपर के खेल का वर्णन किया। एक ऐसा जुआं जिसने पाण्डवों को अघोषित दुख दर्द और संघर्ष की ओर ले गया था।
अपनी मोहित करने वाली वाणी से राजगुरू बोलते हैं कि स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा था कि कौरवों ने कह दिया उनको पांसा फेकना नही आता इसलिए उनका पांसा शकुनी फेकेगा। और शकुनी के षड्यंत्र मे पाण्डव फंस गए। शकुनी ने पांसा फेका और पाण्डव अपना सबकुछ हारते चले गए।
पाण्डवों को कहना चाहिए था कि ठीक है हमसे भी पांसा फेंकते नही बनता इसलिए हमारा पांसा श्रीकृष्ण फेकेगें। यदि मैं स्वयं श्रीकृष्ण पांसा फेंकता तो क्या पाण्डव हार सकते थे ? नहीं।
जिसका पांसा भगवान फेंके क्या कभी वो पराजित हो सकता है ? आप क्यों परेशान होते हो पांसा फेंकने के लिए ? अपने जीवन का पांसा भगवान के हाथों मे दे दो। खुद को ढीला छोड़ दो अपनी सारी बागडोर भगवान को थमा दो फिर वो जब जिंदगी का पांसा फेंकेगे तब तुम्हारी विजय ही विजय सुनिश्चित है।
पाण्डवों के सबसे नजदीक श्रीकृष्ण थे। परंतु अपनी ही विजय का कारण नहीं समझ सके थे इसलिए दुर्दशा को प्राप्त हुए थे। उस पर भी जब श्रीकृष्ण की कृपा हुई तब कुरूक्षेत्र मे धर्मयुद्ध पाण्डवों ने जीता। यह जीवन भी कुरूक्षेत्र मे धर्मयुद्ध जैसे है इसे जीतने के लिए स्वयं को ढीला छोड़ दो भगवान श्रीकृष्ण पर समर्पित कर दो। उनको अपनी जिंदगी का पांसा फेकने दो फिर देखना हमेशा विजय ही विजय होगी. यह सबसे बड़ा ध्येय वाक्य भी है जीवन का।