By – saurabh Dwivedi
दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी कलमकार Satendra Shukla ने मोबाइल पर मुझे एक कहानी सुनाई जो बड़ी समसामयिक है। सबसे बड़ी बात ये है कि ये कहानी उनकी दादी माँ सुनाया करतीं थीं।
एक गांव में एक जमादार रहता था। वो अत्यंत गरीब था। जमादार गांव की साफ सफाई करके पेट भरता था। एक दिन अचानक से उसके हाथ खजाना लग जाता है।
किस्मत करवट बदलती है। अपार धन दौलत से राजा महराजा की कैटिगरी में आ जाता है। कुछ दिनों में वो एक हाथी खरीद लेता है।
राजसी कपड़े पहनकर वो पड़ोस के दूसरे गांव में जब जाता, तो लोग उसे प्रणाम करते। वो कह देता कि ठीक है कह दूंगा।
कोई भी राजा साहब प्रणाम कहता, वो यही कहता कि कह दूंगा ! शाम को घर पहुंचता और हवन करते हुए कहता कि “फलाने ने प्रणाम कहा है”।
उसका नौकर एक बार पूंछ बैठता है कि आप ऐसा क्यूं करते हैं ? उसने कहा कि देखो कोई नहीं जानता कि मैं जमादार हूं, भंगी हूं। ये लोग मुझे प्रणाम नहीं करते बल्कि लक्ष्मी को प्रणाम करते हैं। मेरे धन वैभव और ऐश्वर्य को प्रणाम करते हैं, इसलिये लक्ष्मी माँ को उनका प्रणाम कह देता हूं।
जिस जमादार को कभी कोई छू नही सकता था। देखकर ही दूरी बनाते थे। आज अपार धन संपदा होने पर उसे लोग पहचान ही नही पाए कि वो गांव का जमादार है और सुप्रभात, प्रणाम तथा दुआ सलाम की होड़ लगी रहती।
ये वक्त का पहिया जब घूमता है तब ऐसे ही चमत्कार होते हैं। किंतु आज सुबह ही Sumant Bhattacharya जी की एक पोस्ट पढ़ी कि जिसमे एक महिला आईएएस की वाल पर अपार भीड़ रहती है। लाइक कमेंट की झड़ी लगी रहती है और पोस्ट के नाम पर सिर्फ उनकी तस्वीर रहती है। लेकिन वहाँ फेसबुक के तमाम सूरमा बिन मुद्दे की बात पर लाइक कमेंट करने में फर्स्ट आने की बचपन वाली मानसिकता से ग्रसित दिखते हैं।
अर्थात जहाँ कहीं भी फेसबुक पर ना कुछ की बात में ज्यादा से ज्यादा लाइक कमेंट दिखते हैं तो समझ जाइए कि मामला जमादार कम राजा साहब वाला है और ये वही गांव के लोग हैं जो उस जमादार के राजा बनते ही बिन जाने पहचाने प्रणाम करते रहते हैं।
बाकी फेसबुक पर सभी लोग समझदार हैं। अंत में बुंदेली कहावत के साथ इतना ही कहूंगा कि “अंधरे के आगे रोवे आपन दीदा खोवे” अर्थात अंधे के आगे रोने से कोई लाभ नही होने वाला बस अपनी आंखो की जागृत रोशनी खो सकते हैं।