
चित्रकूट | उत्तर प्रदेश : राजनीति महज़ सत्ता का खेल नहीं होती। वह एक सतत तपस्या है—सेवा, समर्पण और संघर्ष की यात्रा, जिसमें कार्यकर्ता उसकी आत्मा होता है। कार्यकर्ता वह दीपक है जो खुद जलकर दूसरों के जीवन को प्रकाश देता है। और जब यह दीपक संकट में हो, तब संगठन का दायित्व है कि वह खुद उसके पास जाकर उसके दर्द में सहभागी बने। यही दर्शनात्मक दृष्टिकोण उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के उस छोटे से, किंतु अत्यंत भावप्रवण कार्य में झलकता है।
चित्रकूट में “शौर्य तिरंगा यात्रा” से लौटते हुए सड़क दुर्घटना में घायल हुए कार्यकर्ताओं को देखने जिला अस्पताल संगठन महामंत्री पहुंचे तो पूर्व विधायक आनंद शुक्ला ने लिखा इसे कहते है संगठनकर्ता।
” कल चित्रकूट में आयोजित “शौर्य तिरंगा यात्रा” में सम्मलित होने के बाद वापस जा रहे मण्डल पहाड़ी के हमारे तीन कार्यकर्ता गौरव सिंह शक्ति केंद्र संयोजक , तीरथ पाण्डेय शक्ति केंद्र संयोजक, प्रदुम्न सड़क दुर्घटना में चोटिल हो गये थे। “
भाजपा के इन सामान्य कार्यकर्ताओं को देखने जब धर्मपाल सिंह जिला अस्पताल पहुँचे, तब वह सिर्फ एक औपचारिकता निभाने नहीं गए थे। वे गए थे संगठन की उस सूक्ष्म आत्मा को छूने, जो कार्यकर्ताओं की निःस्वार्थ निष्ठा में धड़कती है।
यह घटना कोई बड़ी राजनीतिक घोषणा नहीं थी, कोई मंचीय भाषण या फ्लैश लाइट वाला क्षण नहीं था , यह एक मौन संदेश था , जो दिल से दिल तक पहुँचा।
जिस क्षण धर्मपाल सिंह ने अस्पताल की दहलीज़ पर कदम रखा, वह क्षण एक विचार में बदल गया कि “संगठन कार्यकर्ता से है, और कार्यकर्ता संगठन का प्राण है।”
पूर्व विधायक आनंद शुक्ला ने जब सोशल मीडिया पर लिखा, “इसे कहते हैं संगठनकर्ता”, तो उन्होंने वास्तव में एक नए राजनीतिक आचारशास्त्र को स्वर दिया। राजनीति में नेतृत्व के कई रूप होते हैं—प्रशासक, वक्ता, योजनाकार—but the rarest is the karmajivi, जो ‘कह के नहीं, कर के दिखाता है’। धर्मपाल सिंह इसी विरल श्रेणी के नेता हैं, जिनका दर्शन केवल विचारों में नहीं, क्रियाओं में परिलक्षित होता है।
भाजपा में कार्यकर्ता का सम्मान कोई प्रायोजित नारा नहीं है, यह संगठन की आत्म-शुद्धि प्रक्रिया का भाग है। जब संगठन प्रमुख खुद घायल कार्यकर्ताओं के पास पहुँचता है, तब हर कार्यकर्ता के मन में एक मौन विश्वास जन्म लेता है—”मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे पीछे संगठन खड़ा है।”
धर्मपाल सिंह का यह कार्य दर्शाता है कि भाजपा का संगठन मात्र राजनीतिक संरचना नहीं, अपितु एक जीवंत चेतना है, जो हर कार्यकर्ता के दुःख में उसके साथ खड़ी होती है।
यह दर्शन इस बात को पुष्ट करता है कि राजनीति में मानवीय स्पर्श और आत्मीयता अगर बची है, तो वह वहीं है जहाँ संगठन स्वयं को कार्यकर्ता के दुख – सुख में सहभागी मानता है।
चित्रकूट की जिला अस्पताल के वार्ड कि छोटी सी मुलाकात चर्चित जीवंत किस्सा बन गया जो बड़ा उदाहरण बनकर सदैव प्रत्येक कार्यकर्ता के मन को स्पंदित करेगा। एक ऐसा स्पंदन जो कार्यकर्ता को ऊर्जा से भर देगा और भाजपा संगठन इस एक जीवंत उदाहरण से अधिक मजबूत और समर्पित संगठन बनेगा।
क्योंकि संगठन की शक्ति न नेता से आती है, न नारों से—वह उस क्षण से आती है जब एक वरिष्ठ नेता , एक सामान्य कार्यकर्ता के पास पहुंच कर पूछता है “अब कैसे हो ?”