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By – Rekha suthar 

जब भी मुझे कोई कहता है कि तुम साड़ी में बहुत अच्छी दिखती हो तो अच्छा लगता है मगर जब साथ ही ये कहते है ‘तुम्हे यही पहननी चाहिए’ तब बहुत बुरा लगता है।
मतलब क्योंकि आपके हिसाब से मैं इस ‘सो कॉल्ड’ साड़ी में अच्छी दिखती हूँ तो मुझे यही पहननी चाहिए ?
यानी कि अगर कोई ‘शेरवानी’ में या ‘दुल्हन ड्रेस’ में अच्छा दिखता/दिखती है तो क्या उसे हर रोज वही पहनना चाहिए ?
यार ‘कम्फर्ट’ नाम की भी कोई चीज होती है।
मेरे लिए पहनावा वही सबसे बेस्ट है जिसमे आप कंफर्ट फील करते हो,और मैं सबसे ज्यादा कम्फर्ट ट्रैक-पेंट/जीन्स और टीशर्ट में महसूस करती हूँ (घर में साड़ी पहनना मेरी मजबूरी है ना कि उसमें मैं अच्छी दिखती हूँ या दूसरों को अच्छी दिखती हूँ इसलिए पहनती हूँ)
कभी कभी बहुत फ्रस्ट्रेट हो जाती हूँ इन फालतू की बातों से।

ये सारे संस्कार,इज्जत,समाज-सुधार,लाज,हया की पोटली औरत के सर पे चढ़ा दी जिसके बोझ तले वो बस दबती गयी और आगे जा के दूसरी औरत को भी दबाती गयी।
वो कहते है ना, ‘हम तो डूबेंगे सनम,तुझको भी ले डूबेंगे’ टाइप।

हुंह..
सुनो,समाज के संस्कारी ठेकेदारों..

ये पोटली तुम्हे मुबारक मैं अपनी नादान सोच और समझ के साथ खुश हूँ मुझपे ना चलने वाले तुम्हारे ये पैंतरे।

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(मुझे समाज से कभी कोई प्रॉब्लम नही रही हर कम्युनिटी का अपना एक समाज होता है जो कि होना भी चाहिए जिसका काम समाज के लोगो को गैरकानूनी काम करने से रोकना उनका मार्गदर्शन करना तथा समाज के लोगो को प्रगति करने के लिए प्रोत्साहन देना है। 

मगर मैं ऐसे समाज को कभी स्वीकार नही करती जो बरसो से चली आ रही अस्वीकार्य परंपराओं और सड़े-गले रीति-रिवाजों का बोझ जबरदस्ती नई पीढ़ी पर थोपते है)

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