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आचार्य आश्रम चित्रकूट मे श्रीमद्भागवत कथा चल रही है जिसमे डा. बदरी प्रपन्नाचार्य महाराज जी कथा के महत्व पर प्रकाश डालते रहते हैं , कथा के चौथे दिन उन्होंने एक वाक्य मे आसन और फोटो पर कथा सुनने की ऐसी व्याख्या कर दी कि हर सनातनी को सोचने हेतु मजबूर हो जाएगा।
बेशक आमतौर पर देखा जाता है किसी के माता पिता परलोक सिधार जाते हैं उसके बाद परिजनों को ध्यान आता है कि कथा सुना दें और कथा किसलिए सुना दें कि वे तर जाएं और हमारा उद्धार हो जाए।
किसी बेटा कम उम्र मे परलोक सिधार गया और धनाढ्य लोग हों तो लोग कथा क्या लेते हैं , गरीब व्यक्ति तो कथा के बारे मे सोच नही पाता परंतु कथा अमीर और गरीब सभी के लिए है चूंकि कथा सुनने के लिए आत्मा मे भाव होना चाहिए यदि आपके भाव समृद्ध है तो श्री भगवान जरूर कृपा करते हैं और उनकी ही कृपा से जग मे तारण हेतु कथा यज्ञ अनादि काल से लगातार हो रहा है , जिसका वर्णन वेद और हमारे धार्मिक ग्रंथों मे है।
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कथा कहते हुए महराज जी यही कह रहे थे कि कथा सुनने का भाव हो तो जीते जी आसन पर बैठकर कथा सुनी जा सकती है। जब कोई भी व्यक्ति कथा करवाता है वहाँ कथा सुनने का भाव रखने वाले पहुंचते हैं और कथा सुन लेते हैं।
यह सच है अनुभव की बात है यदि आप कथा सुनते हैं तो निश्चय है कि आपके कष्ट हरि क्षण भर मे हर लेंगे। यह भी सत्य है कि जो संत है उनकी आभा का दर्शन करने भर से आपकी आत्मा एक उच्चस्तरीय आत्मा हो जाती है और आप ऊर्जावान महसूस करते हैं जैसे कि महराज जी के दर्शन मात्र से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान श्रीकृष्ण के अंश मात्र का दर्शन हो गया हो और उनकी मधुर वाणी तो दिव्य और भव्य जीवन की अमृतवाणी सी महसूस होती है।
जैसे ही महराज जी ने कहा कि आसन मे जो नही सुनेगा वो एक दिन फोटो मे सुनता है , कितनी सच बात है कि एक दिन फोटो मे सुनना पड़ता है और यदि श्रीमद्भागवत कथा जीते जी सुनते रहें तो भगवान के बताए मार्ग मे चलने का अवसर मिलेगा और जीवन मे प्रकाश ही प्रकाश रहेगा , मन का अंधकार समाप्त करती है कथा और अहंकार मुक्त कर देती है कथा। विकार से मुक्त करती है कथा। यही श्रीमद्भागवत का मनुष्य के जीवन मे व्यापक असर है।
इसलिए महराज जी के एक एक शब्द ब्रह्म शब्द महसूस होते हैं। महराज जी चित्रकूट आचार्य आश्रम नया गांव मे कथा कहते हैं जहाँ आसानी से भक्त पहुंच सकते हैं और जब कभी वह देश भर कथाएं कहते हैं उसका लाभ यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी ले सकते हैं। साथ ही आवश्यक है कि धर्म के मार्गदर्शन मे चलकर जीवन के आनंद को परमानन्द मे स्थापित कर दें तभी मानव जन्म साकार होगा। महराज जी कहते हैं कि जब परमानन्द मे मन लग जाता है तब विकार स्वयं नष्ट हो जाते हैं।