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By – Saurabh Dwivedi

ये अपनत्व – मिलन की मुस्कान है। लखनऊ से धर्म नगरी चित्रकूट आए Ashutosh Mishra भैया और हमारा मिलन। चित्रकूट में भगवान कामतानाथ के दर्शन करने धमार्थ भाव से सभी आते हैं और इसमें भैया ने हमारी संस्था द्वारा संचालित ” वस्त्र बैंक ” के लिए सेवार्थ भाव भी महसूस कर लिया।

धर्म का अर्थ ही है सेवा। सेवा भाव होगा तो धर्म स्वयं ही स्थापित होता जाएगा। सेवा के अभाव में धर्म अप्रासंगिक हो जाता है। कल के मिलन के बाद मेरे मन में यही चिंतन का प्रसार होता रहा कि समय कितना खूबसूरत होता है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संस्था के लिए सहयोग और मन का रिश्ता महसूस हो जाना।

ईश्वर का शुक्रगुजार हूँ और बड़े भैया के प्रेम का कि उन्होंने लखनऊ से आकर इतना समय दिया। दूसरी सबसे बड़ी बात कि इतनी दूर से मेरे लिए स्नेह की वर्षा और जिंदगी में सबल हो समाज सेवा के लिए जो सोच रखा था , उसमें सहयोग कर मुझे दिए में घी अर्पित करने का काम भी हुआ है।

कामतानाथ और मतगजेन्द्र नाथ मंदिर का धार्मिक ऐतिहासिक वर्णन से लगभग सभी वाकिफ हैं। यहाँ जीवन के दुख – दर्द से निजात पाने , परमात्मा से प्रार्थना करें व एक नए जन्म हेतु पुण्यार्थ सत्कर्म करने श्रदालू आते हैं। सत्कर्म सेवा है। जो सत्कर्म करता है उसी को पुण्यात्मा कहते हैं। पुण्यात्मा अर्थात पुण्य की आत्मा।

पवित्र भाव से मानव सेवा करने वाले सभी पुण्यात्मा हैं। कल दो पल के सड़क किनारे के मिलन का सुख निश्चय ही किसी भी बड़े से बड़े मिलन समारोह आदि से अधिक सुखदायक रहा। हाँ मन का मिलन ऐसा ही होता है।

आध्यात्मिक नगरी चित्रकूट में धर्मार्थ आइए – सेवार्थ आइए। सचमुच कामतानाथ की कृपा को स्वयं महसूस किया है। 25 दिसंबर एक यादगार पल।

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