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@Saurabh Dwivedi

किसी की मृत्यु पर आज किसी को खूब रोते हुए देखा। ऐसी तड़प कि लगा बड़ा प्रेम था या गहरे संबंध थे। लेकिन हकीकत का सामना जीवन रहते हुए मैंने खुद किया था कि उनके आपसी रिश्ते बेहद खराब थे और आए दिन पारिवारिक झगड़ा होता था।

जब जीवन रहता है तब कोई किसी को समझता नहीं है। जीवन विवादों मे गुजरता रहता है जैसे ट्रेन गुजरती है मंजिल तक ले जाती है पर पहियों की आवाज सुनें तो बड़े विवादित लगते हैं , एक विवादित आवाज सुनाई देती है। यही हाल मनुष्य के रिश्तों का है।

ॐ हनुमन्ते नमः

एक ही घर – परिवार मे लोग एक – दूसरे को मानसिक रूप से समझते नहीं। पारिवारिक रिश्तों मे समय पर साथ खड़े नहीं होते। कोई प्रतीक्षा कर रहा होता है कि उसे कोई समझे व महसूस करे ! यहाँ तक कि परिवार मे ही कुछ ऐसे निर्णय हो जाते कि सहजीवन की वजह से जिंदगी का सुख लुट जाता है।

हमे लगता है कि हम अपना जीवन जी रहे हैं परंतु यही सच नही है। असल मे हम अपना ही नहीं अपने साथ अनेक जीवन जी रहे होते हैं। हमारे साथ हमारी बाइक भी जीवन से जुड़ जाती है जबकि वह एक मशीन है पर महसूस करें तो हम उसे भी जीने लगते हैं। लेकिन इतना जो महसूस करेगा एक मशीन को फिर वह मनुष्य होगा और मनुष्यता को समझेगा। मशीन से इतर हमारे जीवन को आसपास का परिवेश और तमाम रिश्ते प्रभावित करते हैं , हम उन्हें भी जीते हैं। एक जीवन के साथ अनेक सहजीवन चल रहे होते हैं , यही जीवन को सुप्रभावित व कुप्रभावित करते हैं।

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यदि आसपास बहुत कुछ धनात्मक व सकारात्मक है तो जीवन धनात्मक ऊर्जा के साथ चलता है यदि माहौल ऋणात्मक हुआ तो जीवन हताशा की प्रवृत्ति का शिकार होता है , बेशक कोई अच्छा भी हो तो उसका जीवन अवसाद की ओर अग्रसर हो जाएगा। यहीं से जीवन की राह तय होती है।

हमारी शिक्षा मे जीवन की शिक्षा पद्धति अवश्य होनी चाहिए। जो परिवार और विद्यालय से जानी जाए चूंकि जीवन जीने की कला आ जाए तो जिंदगी हद तक अच्छी हो जाए फिर किसी की मृत्यु पर घड़ियाली आंसू नहीं बहाने होंगे और लोग मृत्यु अर्थात जीवन से मुक्ति को समझ सकेंगे। वह एक अच्छी विदाई भी दे सकेंगे।

अभी हो क्या रहा है ? जीवन भर आपने तंग किया और जब वो मर गए तब आप ऐसे रो रहे हैं जैसे अब उसके बिना आप जीवित नहीं रहेंगे बल्कि हकीकत ये है कि कुछ ही सप्ताह बाद आप फिर उसी धुन मे रम जाते हैं यदि आप वास्तव मे रोते तो आपके अंदर करूणा जागृत हो जाती और फिर आप जीवन रहते सच मे आसपास के जीवन को महसूस करने लगेंगे और पता लग जाएगा कि मृत्यु होनी ही है तो कम से कम एक – दूसरे का सहयोग करते हुए अच्छे से जी लें !

हकीकत ये है कि स्त्री हो या पुरूष अभी उनको जिंदगी जीना नहीं आया। उन्होंने मृत्यु का दर्शन भी इस तरह नहीं किया कि एक दिन मेरी भी मृत्यु होगी और यही गति होगी। यदि यह दर्शन भी हकीकत मे कर लें तो हम जीवन रहते रिश्तों को सहेजने लगें और किसी अपने को अहम आदि कारणों से कोई कष्ट ना दें। हम जीते जी कष्ट मे होते हैं मृत्यु तो सभी दुखो का निवारण है।

इसलिए मनुष्य के इस अंदाज को समझिए कि वह मृत्यु पर रोता है। उसको बड़ा दुख होता है। काश वो जीवन को समझें और जीवन रहते इतनी करूणा हो कि आसपास का जीवन सहज सरल हो और एक अच्छी जिंदगी जी जा सके। फिर मृत्यु पर घड़ियाली आंसू नहीं बहाने पड़ेंगे अपितु मुक्ति के यथार्थ को समझेंगे और नम आंखो से विदा करेंगे। तभी आप जीवन और मोक्ष को भी समझ सकेंगे।

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