By – shiva awasthi (दैनिक जागरण)
चित्रकूट का शबरी प्रपात
शबरी जल प्रपात है आकर्षण का केंद्र, जमीं पर बादलों का अहसास
करीब 40 फीट नीचे गिरने वाली जलराशि कुंड में तब्दील होकर अथाह गहराई को प्राप्त करती है। 60 मीटर चौड़े और इससे कुछ अधिक लंबे कुंड से फिर दो जलराशियां नीचे की ओर गिरती हैं।…
धर्म नगरी व प्रभु श्रीराम की पावन तपोभूमि में पयस्वनी नदी पर शबरी जल प्रपात यूं तो वर्ष भर आकर्षण बिखेरता है पर बारिश के दिनों में ‘बस्तर के नियाग्रा’की तर्ज पर अप्रतिम सौंदर्य से अपने मोहपाश में किसी को भी आसानी से जकड़ने के लिए काफी है। वर्तमान में त्रि-जलधारा के वेग व 35 से 40 किमी प्रतिघण्टा की रफ्तार से नीचे गिरती जलराशि जमीं पर बादलों के होने का अहसास करा रही है। यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत सिर्फ प्रकृति के प्रशंसकों तक यह जानकारी पहुंचाने की है।
मध्य प्रदेश के सतना बॉर्डर पर स्थित परासिन पहाड़ से धारकुंडी मारकुंडी जंगलों के बीच से चित्रकूट में पाठा के जंगलों में कल-कल बहती पयस्वनी नदी आगे चलकर मंदाकिनी के नाम से पहचानी गई। ग्राम पंचायत टिकरिया के जमुनिहाई गांव के पास स्थित बंबियां जंगल में पयस्वनी, ऋषि सरभंग आश्रम से निकली जलधारा व गतिहा नाले जलराशि की त्रिवेणी से शबरी जल प्रपात की छटा यूं मनोहारी दिखती है, मानो आसमान जमीन छूने को बेताब हो।
कम पानी होने पर एक साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर तीन जलराशियां नीचे गिरती हैं।तीव्र बारिश में यह आपस में मिल जाती हैं। इससे इनके वेग व प्रचंड शोर से अंतर्मन के तार झंकृत हो उठते हैं। करीब 40 फीट नीचे गिरने वाली जलराशि कुंड में तब्दील होकर अथाह गहराई को प्राप्त करती है। 60 मीटर चौड़े व इससे कुछ अधिक लंबे कुंड से फिर दो जलराशियां नीचे की ओर गिरकर सम्मोहन को और बढ़ा देती हैं। हर क्षण व लगातार यह नजारा आंखों को वहां से हटने नहीं देता है। पाठा के लिए जीवनदायिनी व बाढ़ में भीषण तांडव पर अनुपम सौंदर्य को और निखारने की तरफ कदम बढ़ें तो निकट भविष्य में यह देश-दुनिया के सैलानियों को अपनी तरफ खींचने का बड़ा केंद्र होगा।
वन्य जीव नेशनल पार्क की बनेगा विशेष धरोहर
चित्रकूट की मानिकपुर तहसील से सटे 263 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बनने वाले रानीपुर वन्य जीव नेशनल पार्क के अस्तित्व में आने पर यह विशेष धरोहर बनेगा। यहां आने वाले सैलानियों को प्रकृति से सीधे जुड़ने का बड़ा अवसर मिलेगा। अभी तक डकैतों की शरणस्थली होने के कारण फिलहाल अंधेरे में रहे इलाके पर वर्तमान डीएम विशाख जी अय्यर व एसपी मनोज कुमार झा ने अब बेहतरी व सुरक्षा इंतजामों पर फोकस किया है। इससे बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन पहुंचने लगे हैं।
जल प्रपात के कुछ खास तथ्य____
पाठा के जंगल में रहने वाले कोल-भील अपने को शबरी मैया का वंशज मानते हैं। बंबिया के जंगल में शबरी आश्रम भी है, जहां मकर संक्रांति को कोल-भीलों का मेला लगता है।
तत्कालीन डीएम डॉ जगन्नाथ सिंह ने खोजबीन कर 31 जुलाई 1998 को किया था इसका नामकरण।
बारिश के बाद अगस्त से मार्च के बीच दृश्य मनोहारी, बाकी साल भर कभी भी देख सकते हैं।
त्रि-जलधारा गिरने वाली जगह बना मंदाकिनी कुंड। मान्यता है कि यहीं प्रभु राम ने शबरी के बेर खाने के बाद कुंड में स्नान किया तो मंदाकिनी ने अपना अंश गिराया था।
मारकुंडी से महज आठ किलोमीटर दूर स्थित, मानिकपुर रेलवे जंक्शन उतर कर पहुंचना आसान
-उत्तर प्रदेश में करीब 40 मीटर चौड़ाई में तीन जलराशियों वाला एकमात्र जलप्रपात होने की प्रबल संभावना।
राघव प्रपात समेत कई कुंड भी दर्शनीय__
चित्रकूट के तत्कालीन जिलाधिकारी व सेवानिवृत्त आईएएस डॉ जगन्नाथ सिंह व समाज सेवी गोपाल भाई बताते हैं कि मऊ गुरुदरी में राघव प्रपात को वहां के लोगों ने पुनर्जीवित किया। यहीं पर बरदहा नदी कुंड में गिरकर खत्म हो जाती है। इसी तरह कालिंजर से लेकर चित्रकूट के पूर्वी हिस्से तक सुरम्य कुंडों और झरनों की श्रृंखला है लेकिन इनमें से अधिकांश प्रपात अब थम चुके हैं, जिन्हें संरक्षण कर जीवित किया जा सकता है। धारकुंडी का विराग कुंड व बेधक का प्रपात किसी हिल स्टेशन जैसा दृश्य प्रस्तुत करता है। पहाड़ियों के बीच कटोरानुमा इस स्थल को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की कई बार कवायद हुईं पर परिणाम तक नहीं पहुंच सकी। कोल्हुआ जंगल में प्राकृतिक गरम और ठंडा कुंड भी है।
इनका कहना है
शबरी जल प्रपात बारिश के बाद करीब आठ माह तक विशेष आकर्षण बिखेरता है। जिले में तैनाती के बाद संज्ञान में आते ही प्रयास शुरू कर दिए हैं। सोशल मीडिया, डाक्यूमेंट्री बनवा कर प्रचार से लेकर शासन को प्रस्ताव भी भेजा गया है। -विशाख जी, जिलाधिकारी चित्रकूट।
साभार – फेसबुक वाल से