यह अकिंचन धर्मेन्द्र की फेसबुक पर पाठकीय प्रतिक्रिया है , जिसमें कविताओं का सार और संवेदना व्याप्त है.
मैं एक औरत हूँ ये क़िताब का नाम है..! पद्मा शर्मा की कविताओं का संकलन..! मैं जब-जब इस किताब के पन्ने पलटता हूँ..शब्द-शब्द पर ठिठक जाता हूँ..! एक लड़की..एक प्रेयसी..एक पत्नी..एक गृहणी..एक स्त्री होने का दर्द है-इसमें..! कहीं बचपन की स्मृतियों का उल्लास है..तो कहीं इनके पीछे छूट जाने का दर्द..! कहीं प्रेम(के अतीत)की अपरिमित वेदना है..तो कहीं इसके परिणामस्वरूप उद्भूत..विरही-मन की आत्म-साधना की सन्तुष्टि..! कहीं निर्मम परम्पराओं की जकड़न में चीख़ती..कलपती..बन्दिनी आत्मा की आर्त्त-पुकार है..तो कहीं हर हाल में स्वयं को समायोजित,सन्तुलित करने-रखने का आत्मविश्वास..स्वाभिमान भी..!
स्त्रियों के विषय में पुरुष-प्रधान समाज हमेशा से क्रूर रहा है..! ‘पैर की जूती’ तक की संज्ञा से अभिहित की गयीं..हीनता के चरम पर अपने अस्तित्व के नकार से प्रतिक्षण जूझने वाली स्त्रियों का..सम्पूर्ण जीवन-गान हैं,ये कविताएँ..! ये कविताएँ स्थिर सुख..मुक्ति का मार्ग खोजतीं दृश्यावलियों के करुण-स्वर हैं..!
सरल,सुबोध शब्दावली कवयित्री के मन की सरलता,सहजता को व्यक्त करती है..! कुछ कविताओं में कहीं-कहीं उर्दू के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं,जिनके हिन्दी अर्थ-हम जैसे पाठकों के लिए-नीचे दे दिए गए हैं..! प्रचार-प्रसार से उदासीन..एकान्त साधना का परिणाम हैं,ये कविताएँ..!
ये कविताएँ उन लड़के-लड़कियों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हैं,जो गृहस्थ-जीवन में प्रवेश कर चुके हैं या करने वाले हैं..! लड़कियों के लिए इसलिए कि इन्हें पढ़-समझकर वे भी पूरे जीवन के लिए मानसिक रूप से मज़बूत हो सकतीं हैं..और लड़कों के लिए इसलिए कि एक अब से ही सही..परिवार में एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए कैसे सामंजस्य बनाकर रहना चाहिए..!
यदि इस संकलन की कविताओं को आत्मिक-स्तर पर महसूस किया जाए तो इनकी पीड़ाएँ,आँसू,प्रतीक्षा,सन्तुष्टि,नेह,उल्लास न केवल एक स्त्री के मन के हैं..बल्कि पुरुष भी इन सबसे संवेदनात्मक स्तर पर पूरी तरह एकाकार होता है..! स्त्री-जीवन के सच के साक्षात्कार..उसके (मन का) मनोविज्ञान समझने के लिए सभी को इस पुस्तक को अवश्य पढ़नी चाहिए..!
पुस्तक से कुछ पंक्तियाँ-
मैं एक औरत हूँ
कमजोर आँकी जाती एक औरत।
क्या मैं कमज़ोर हूँ?
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स्त्री
मात्र हाड़-माँस से बना
एक शरीर ही नहीं
उसके अन्दर
एक प्रेम वृक्ष भी है
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नींद के बिस्तर पर
चैन अनसोया-सा
रात खफ़ा-सी
——–
आओ बरखा
बरसो बरखा
शांत हो जाये
ये तन-मन की ज्वाला,
भीगूँ मैं प्रेम फुहार में…
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सभी कविताएँ पठनीय हैं..! मन भीगता है..बार-बार..हर बार..!
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