By – Saurabh with bhartendra dubey
जब व्यक्ति हताश हो जाता है। उसे कोई रास्ता नहीं मिलता। दिन मे भी रात नजर आती है अर्थात चहुंओर प्रकाश हो फिर भी जिंदगी में अंधेरा व्याप्त नजर आए। ऐसी परिस्थिति में हताश व्यक्ति देवालय पहुंचता है। जहाँ ईश्वर का वास होता है वहीं से आश बंधती है कि अब जो करेंगे ईश्वर करेंगे ?
इतना बड़ा संसार , सैकड़ो रिश्ते और पास – पड़ोस के लोग फिर भी एक अदृश्य शक्ति से उम्मीद बांधनी पड़ती है। ऐसे ही एक गरीब पिता जिसने अपनी बेटी की शादी तय कर दी थी। विवाह के निमंत्रण – पत्र तैयार हो चुके थे। किन्तु पिता को बेटी के विवाह संपन्न होने की चिंता सताए जा रही थी।
वैसे विवाह करने में लाखों , अरबों और खरबों मुद्रा की जरूरत नहीं होती। बल्कि मानसिकता अच्छी हो तो अग्नि के समक्ष एक शपथ ही पर्याप्त है। किन्तु इसी संसार के लिए बहुत कुछ दिखावा करना पड़ता है , दहेज भी तय किया जाता है। यही सांसारिक दिखावा व रीति रिवाज के साथ तमाम आडंबर ही पिता की चिंता का कारण बन चुके थे। सहायतार्थ ना के बराबर लोग होते हैं बल्कि उपहास उडाने वालों की संख्या अधिक है।
वो पिता बिहारी जी के मंदिर मे आता है। मंदिर के पुजारी Bhartendra Dubey जी से अपनी व्यथा प्रकट कर देता है। उसने कहा महराज मेरे पास कुछ भी नहीं है , मैं बेटी की शादी कर रहा हूँ। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे संपन्न होगा ?
पुजारी जी भी ठहरे बिहारी जी के भक्त। उन्होंने मनमौजी अंदाज में कह दिया कि ईश्वर से प्रार्थना कर लो। मुझे महसूस हो रहा है कि तुम्हारे घर में ऐसा विवाह संपन्न होगा , जिसकी किसी ने उम्मीद ना की होगी !
मन से निकली हुई वाणी भी अमृत बन जाती है। यही शब्द वरदान बन जाते हैं। सुना है कि चौबीस घंटे में एक बार एकदम सच्ची वाणी निकलती है। फिर एक भक्त बिहारी जी के मंदिर में कुछ कह दे और वह अधूरा रह जाए , यह कैसे संभव है ?
ईश्वर स्वयं प्रकट नहीं होते। वे माध्यम देते हैं। घटना के पीछे कारण प्रदान करते हैं। सहायता के लिए कारक को जन्म देते हैं। आज जो घटित हो रहा है भविष्य में उसका परिणाम अच्छा या बुरे के रूप में प्रकट हो जाता है। बस तार से तार जोड़ना होता है। जिंदगी का रहस्य प्रकट हो जाता है।
उस पिता की परेशानी कुछ इस तरह से खत्म हुई कि बहुत पहले कोई सड़क निर्माण के लिए सर्वे हुआ था। सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण हो चुका है। इस तरह से विवाह के कुछ समय पहले ही सरकार बाबू उसके घर की ओर पहुंच जाते हैं और कुछ प्रक्रिया पूरी कर समय से अर्थ मिल जाता है। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है।
एक पिता अपनी बेटी का खुशी-खुशी विवाह करके पुनः बिहारी जी के मंदिर पर माथा टेकने आता है। पुजारी जी उसके चेहरे पर मुस्कान देखते हैं और पूंछ बैठते हैं कि क्या हुआ ?
वो पिता कहता है कि पुजारी जी आपने सच कहा था कि ऐसा विवाह संपन्न होगा , जिसकी उम्मीद किसी ने ना की होगी। यही वो वजह है जो तमाम नास्तिकता और विवाद के बावजूद भी परमात्मा पर लोगों की परम श्रद्धा है। वैसे भी ईश्वर के दर्शन के लिए दिव्य दृष्टि आवश्यक है।
ईश्वर स्वयं प्रकट नहीं होते। वे सहायता के लिए समय का चक्र चला देते हैं। घटनाएं घटित होती हैं। प्रथम दृष्टया कुछ बुरा होता है फिर भी वह मनुष्य के लिए भविष्य में अच्छाई का कारक बन जाता है। परमात्मा ऐसे ही समस्याओं का अंत करती है। यही जिंदगी में समय और परमात्मा का जादू है।