कांग्रेस नेता अधीर रंजन सदन के बाहर बातचीत मे राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कहते हुए संबोधित करते हैं। एक पत्रकार उन्हें ध्यान भी दिलाता है लेकिन वह अपनी जुबान वापस नही लेते , ना ही अपनी गलती समझते हैं। मामला प्रकाश मे आते ही बीजेपी की महिला नेता कांग्रेस पर हमलावर हुईं , वही यह मामला संसद से सड़क तक छा गया।
महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष चित्रकूट दिव्या त्रिपाठी फेसबुक पर वीडियो पोस्ट कर कांग्रेस नेता को जमकर खरी खोटी सुनाई और कांग्रेस को दलित आदिवासियों का सम्मान करने को याद दिलाने लगीं। उन्होंने कहा कि पहले भी इस देश मे महिला राष्ट्रपति थीं तब किसी विपक्षी ने राष्ट्रपत्नी संबोधित नही किया और ना ही अधीर रंजन की हिन्दी इतनी खराब थी कि वह तब की राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह पाते।
स्पष्ट है कि कांग्रेस मे अधीर रंजन जैसे नेता कुंठित हो चुके हैं। चूंकि कांग्रेस अपना धरातल खो चुकी है। जब कांग्रेस सत्ता मे रही तब वह ऐसी कोई अवधारणा नही बना सकी जैसे आज भारत के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप मे बैठी हुई है। यही कारण है कि अब कांग्रेस और वामपंथी दल आदिवासियों के मध्य किस मुद्दे के साथ जाएंगे ?
बड़ा मसला ये भी है कि इस देश मे आदिवासियों को बरगला कर उनकी गरीबी को अमीरी मे चमत्कारिक रूप से बदलने के लिए ईसाई मिशनरी व्यापक तरीके से काम करते हैं। कांग्रेस और वामपंथी दल इन्ही आदिवासियों की गरीबी को ढाल बनाकर राजनीति करते आए हैं और इनके शासनकाल के समय ईसाई मिशनरी आदिवासियों को चमत्कारिक अमीरी दिखाते हुए सरलता से धर्म परिवर्तन कराते रहे , अब ऐसा हो सकता है कि एक आदिवासी महिला अपनी मूल पहचान के साथ राष्ट्रपति है और कोई ईसाई मिशनरी कम से कम राष्ट्रपति तो नही बना सकता।
इसलिए आदिवासियो को बरगलाना अब आसान नही होगा। चूंकि वह सपने देख सकते हैं और उनके सपने पूरे हो सकते हैं उनके समाज से राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू बड़ा उदाहरण बन चुकी हैं। इसलिए कांग्रेस के लिए बेचैनी बढ़ने का सवाल तो है चूंकि एनडीए सरकार ने यहाँ सिर्फ राजनीतिक बढ़त ही नही ली अपितु राष्ट्र की एकता को स्थापित करने काम किया है जिसका वैश्विक असर शानदार होगा। चूंकि स्पष्ट हो जाएगा भारत मे जाति भेद – रंग भेद बिल्कुल भी नही है।